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________________ जीवाजीवाभिगम-२/-/५८ खेचरतिर्यक्योनि की स्त्रियां असंख्यातगुणी, उनसे स्थलचरित्रयां संख्यातगुणी, उनसे जलचरस्त्रियां संख्यातगुणी, उनसे वानव्यन्तरदेवियां संख्यातगुणी, उनसे ज्योतिष्कदेवियां संख्यातगुणी हैं । [५९] हे भगवन् ! स्त्रीवेदकर्म की कितने काल की बन्धस्थिति है ? गौतम ! जघन्य से पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम देढ सागरोपम के सातवें भाग और उत्कर्ष से पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम की बन्धस्थिति है । पन्द्रह सौ वर्ष का अबधाकाल है । अबाधाकाल से रहित जो कर्मस्थिति है वही अनुभवयोग्य होती है, अतः वही कर्मनिषेक है । हे भगवन् ! स्त्रीवेद किस प्रकार का है ? गौतम ! स्त्रीवेद फुफु अग्नि के समान होता है । [६०] पुरुष कितने प्रकार के हैं ? तीन प्रकार के, तिर्यक्योनिक पुरुष मनुष्य पुरुष और देव पुरुष । तिर्यक्योनिक पुरुष तीन प्रकार के हैं, जलचर, स्थलचर और खेचर । इस प्रकार जैसे स्त्री अधिकार में भेद कहे गये हैं, वैसे यावत् खेचर पर्यन्त कहना । मनुष्य पुरुष तीन प्रकार के हैं-कर्मभूमिक, अकर्मभूमिक और अन्तीपक । देव पुरुष चार प्रकार के हैं । इस प्रकार पूर्वोक्त स्त्री अधिकार में कहे गये भेद कहना यावत् सर्वार्थसिद्ध तक देव भेदों का कथन करना । [११] हे भगवन् ! पुरुष की कितने काल की स्थिति है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्ष से तेतीस सागरोपम । तिर्यंचयोनिक पुरुषों की और मनुष्य पुरुषों की स्थिति उनकी स्त्रियों के समान है । देवयोनिक पुरुषों की यावत् सर्वार्थसिद्ध विमान के देव पुरुषों की स्थिति प्रज्ञापना के स्थितिपद समान है । [६२] हे भगवन् ! पुरुष, पुरुषरूप में कितने काल तक रह सकता है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से सागरोपम शतपृथक्त्व से कुछ अधिक काल तक । भगवन् ! तिर्यंचयोनि-पुरुष ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक । इस प्रकार से जैसे स्त्रियों की संचिट्ठणा कही, वैसे खेचर तिर्यंचयोनिपुरुष पर्यन्त की संचिट्ठणा है । भगवन् ! मनुष्यपुरुष उसी रूप में काल से कितने समय तक रह सकता है ? गौतम ! क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक। धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहुर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि । इसी प्रकार पूर्वविदेह, पश्चिमविह कर्मभूमिक मनुष्य-पुरुषों तक कहना । अकर्मभूमिक मनुष्यपुरुषों के लिए अकर्मभूमिक मनुष्यस्त्रियों के समान । इसी प्रकार अन्तरद्वीपों के अकर्मभूमिक मनुष्यपुरुषों तक जानना । देवपुरुषों की जो स्थिति कही है, वही उसका संचिट्ठणा काल है । ऐसा ही कथन सर्वार्थसिद्ध के देवपुरुषों तक कहना । [६३] भंते ! पुरुष, पुरुष-पर्याय छोड़ने के बाद फिर कितने काल पश्चात् पुरुष होता है ? गौतम ! जघन्य से एक समय और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल । भगवन् ! तिर्यक्योनिक पुरुष ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल का अन्तर है । इसी प्रकार खेचर तिर्यकयोनि पर्यन्त जानना । भगवन् ! मनुष्य पुरुषों का अन्तर कितने काल का है ? गौतम ! क्षेत्र की अपेक्षा जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल, धर्माचरण की अपेक्षा जघन्य से एक समय और उत्कृष्ट से अनन्त काल यावत् वह देशोन अर्धपुद्गल परावर्तकाल
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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