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प्रज्ञापना- ५ /-/ ३२४
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प्रकार दशप्रदेशी स्कन्ध तक में समझ लेना । विशेष यह कि इसमें एक-एक प्रदेश की क्रमशः वृद्धि करना । अवगाहना के तीनों गमों में यावत् दशप्रदेशी स्कन्ध तक ऐसे ही कहना । (क्रमशः ) नौ प्रदेशों की वृद्धि हो जाती है ।
जघन्य स्थिति वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी - जघन्य स्थिति वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्ध द्रव्य से तुल्य है, प्रदेश और अवगाहना से द्विस्थानपतित है, स्थिति से तुल्य है, वर्णादि तथा चतुःस्पर्शो से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले संख्यातप्रदेशी स्कन्धों में कहना । मध्यम स्थितिवाले संख्यातप्रदेशी स्कन्धों को भी इसी प्रकार समझना । विशेष यह कि स्थिति से चतुःस्थानपतित है ।
भगवन् ! जघन्य स्थितिवाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकीजघन्य स्थितिवाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों और अवगाहना से चतुःस्थानपतित है, स्थिति से तुल्य है, वर्णादि तथा उपर्युक्त चार स्पर्शो से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थिति वाले असंख्यातप्रदेशी स्कन्धों में कहना । मध्यम स्थितिवाले असंख्यात प्रदेशी स्कन्धों में इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि स्थिति की अपेक्षा चतुःस्थानपतित है । जघन्य स्थितिवाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी - जघन्य स्थिति वाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से षट्स्थानपतित है, अवगाहना से चतुःस्थानपतित है, स्थिति से तुल्य है और वर्णादि से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थितिवाले अनन्तप्रदेशी स्कन्ध में समझना । अजघन्य - अनुत्कृष्ट स्थितिवाले अनन्तप्रदेशी स्कन्धों को भी इसी प्रकार कहना । विशेष यह कि स्थिति से चतुः स्थानपतित है ।
जघन्यगुण काले परमाणुपुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी - जघन्यगुण काले परमाणुपुद्गल द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से षट्स्थानपतित है, अवगाहना से तुल्य है, स्थिति से चतुः स्थानपतित है, कृष्णवर्ण के पर्यायों से तुल्य है, शेष वर्ण नहीं होते तथा गन्ध, रस और दो स्पर्शो से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले को समझना । इसी प्रकार मध्यमगुण काले को भी कहना । विशेष यह कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित है ।
न्यगुण काले द्विप्रदेशिक स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी - जघन्यगुण काले द्विप्रदेशी स्कन्ध द्रव्य और प्रदेशों से तुल्य है, अवगाहना से कदाचित् हीन, कदाचित् तुल्य और कदाचित अधिक है । यदि हीन हो तो एकप्रदेश हीन, यदि अधिक हो तो एकप्रदेश अधिक है स्थिति से चतुःस्थानपतित होता है, कृष्णवर्ण के पर्यायों से तुल्य और शेष वर्णादि तथा उपर्युक्त चार स्पर्शो के पर्यायों से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार उत्कृष्टगुण काले को समझना । अजघन्य- अनुत्कृष्ट गुण काले द्विप्रदेशी स्कन्धों को भी इसी प्रकार समझना । विशेष यह कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित कहना । इसी प्रकार यावत् दशप्रदेशी स्कन्धों में समझना । विशेषता यह है कि प्रदेश की उत्तरोत्तर वृद्धि करनी चाहिए । अवगाहना से उसी प्रकार है ।
भगवन् ! जघन्यगुण काले संख्यातप्रदेशी पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकीजघन्यगुण काले संख्यातप्रदेशी स्कन्ध द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों और अवगाहना से द्विस्थानपतित है तथा स्थिति से चतुः स्थानपतित है, कृष्णवर्ण के पर्यायों से तुल्य है और अवशिष्ट वर्ण आदि