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________________ प्रज्ञापना-५/-/३२४ २३३ अनन्तप्रदेशी स्कन्ध द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से षट्रस्थानपतित है, अवगाहना से चतुःस्थानपतित है, तथा वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के पर्यायों से षट्स्थानपतित है । एक प्रदेश के अवगाढ पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी-प्रदेश में अवगाढ पुद्गल द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से पट्स्थानपतित है, अवगाहना से तुल्य है, स्थिति से चतुःस्थानपतित है, वर्णादि तथा उपर्युक्त चार स्पर्शों से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार दसप्रदेशावगाढ स्कन्धों तक के पर्यायों जानना । संख्यातप्रदेशावगाढ स्कन्धों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी संख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से षट्स्थानपतित है, अवगाहना से द्विस्थानपतित है, स्थिति से चतुःस्थानपतित है, वर्णादि तथा उपर्युक्त चार स्पर्शों से षट्स्थानपतित है । असंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकीअसंख्यातप्रदेशावगाढ पुद्गल द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से षट्स्थानपतित है, अवगाहना और स्थिति से चतुःस्थानपतित है, वर्णादि तथा अष्ट स्पर्शों से षट्स्थानपतित है । एक समय स्थितिवाले पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी-एक समय स्थितिवाले पुद्गल, द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से षट्स्थानपतित है, अवगाहना से चतुःस्थानपतित है, स्थिति से तुल्य है, वर्णादि से षट्स्थानपतित है । इस प्रकार यावत् दस समय की स्थितिवाले पुद्गलों समझना । संख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गलों को भी इसी प्रकार समझना । विशेष यह कि वह स्थिति से द्विस्थानपतित है । असंख्यात समय की स्थिति वाले पुद्गलों भी इसी प्रकार है । विशेषता यह कि वह स्थिति से चतुःस्थानपतित है । एकगुण काले पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी-एक गुण काले पुद्गल द्रव्य से तुल्य है, प्रदेशों से षट्स्थानपतित है, अवगाहना और स्थिति से चतुःस्थानपतित है, कृष्णवर्ण के पर्यायों से तुल्य है तथा अवशिष्ट वर्णों, गन्धों, रसों और स्पर्शों से षट्स्थानपतित है । इसी प्रकार यावत् दश गुण काले में समझना । संख्यातगुण काले का (कथन) भी इसी प्रकार जानना । विशेषता यह कि स्वस्थान में द्विस्थानपतित हैं । इसी प्रकार असंख्यातगुण काले को समझना । विशेष यह कि स्वस्थान में चतुःस्थानपतित हैं । इसी तरह अनन्तगुणे काले को जानना । विशेष यह कि स्वस्थान में षट्स्थानपतित हैं । इसी प्रकार शेष सब वर्णों, गन्धों रसों और स्पर्शों को समझना । जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशी पुद्गलों के अनन्त पर्याय कहे हैं । क्योंकी-जघन्य अवगाहना वाले द्विप्रदेशी स्कन्ध द्रव्य, प्रदेशों और अवगाहना से तुल्य है, स्थिति से चतुःस्थानपतित है, कृष्ण वर्ण के पर्यायों से षट्स्थानपतित है, शेष वर्ण, गन्ध और रस तथा शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श के पर्यायों से षट्स्थानपतित है । उत्कृष्ट अवगाहना वाले में भी इसी प्रकार कहना । अजघन्य-अनुत्कृष्ट अवगाहना वाले द्विप्रदेशी स्कन्ध नहीं होते । जघन्य अवगाहना वाले त्रिप्रदेशी पुद्गलों के अनन्त पर्याय हैं । क्योंकी- द्विप्रदेशी पुद्गलों के समान जघन्य अवगाहनावाले त्रिप्रदेशी पुद्गलों के विषय में कहना । इसी प्रकार उत्कृष्ट अवगाहनावाले त्रिप्रदेशी पुद्गलों में कहना । इसी तरह मध्यम अवगाहना वाले त्रिप्रदेशी पुद्गलों में कहना । जघन्य और उत्कृष्ट अवगाहना वाले चतुःप्रदेशी पुद्गल-पर्याय को जघन्य और उत्कृष्ट
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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