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प्रज्ञापना-२/-/२२५
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[२५५] वे मुक्त जीव सिद्ध हैं, बुद्ध हैं, पारगत हैं, परम्परागत हैं, कर्मरूपी कवच से उन्मुक्त हैं, अजर, अमर और असंग हैं । उन्होंने सर्वदुःखों को पार कर दिया है ।
[२५६] वे जन्म, जरा, मरण के बन्धन से सर्वथा मुक्त, सिद्ध (होकर) अव्याबाध एवं शाश्वत सुख का अनुभव करते हैं ।
पद-२ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(पद-३-"अल्पबहत्व") [२५७] दिक्, गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, लेश्या, सम्यक्त्व, ज्ञान, दर्शन, संयत, उपयोग, आहार । तथा
[२५८] भाषक, परीत, पर्याप्त, सूक्ष्म, संज्ञी, भव, अस्तिक, चरम, जीव, क्षेत्र, बन्ध, पुद्गल और महादण्डक, (तृतीय पद में ये २७ द्वार हैं) ।
[२५९] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े जीव पश्चिमदिशा में हैं, (उनसे) विशेषाधिक पूर्वदिशा में हैं, (उनसे) विशेषाधिक दक्षिणदिशा में हैं, (और उनसे) विशेषाधिक (जीव) उत्तरदिशा में है ।
[२६०] दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े पृथ्वीकायिक जीव दक्षिणदिशा में हैं, उत्तर में विशेषाधिक हैं, पूर्वदिशा में विशेषाधिक हैं, पश्चिम में विशेषाधिक हैं । दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े अप्कायिक जीव पश्चिम में हैं, विशेषाधिक पूर्व में हैं, विशेषाधिक दक्षिण में हैं और विशेषाधिक उत्तरदिशा में हैं । दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े तेजस्कायिक जीव दक्षिण और उत्तर में हैं, पूर्व में संख्यातगुणा अधिक हैं, पश्चिम में विशेषाधिक हैं । दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम वायुकायिक जीव पूर्वदिशा में हैं, विशेषाधिक पश्चिम में हैं, विशेषाधिक उत्तर में हैं और भी विशेषाधिक दक्षिण में हैं । दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े वनस्पतिकायिक जीव पश्चिम में हैं, विशेषाधिक पूर्व में हैं, विशेषाधिक दक्षिण में हैं, विशेषाधिक उत्तर में हैं ।
दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम द्वीन्द्रिय जीव पश्चिम में हैं, विशेषाधिक पूर्व में हैं, विशेषाधिक दक्षिण में हैं, विशेषाधिक उत्तरदिशा में हैं । दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम त्रीन्द्रिय जीव पश्चिमदिशा में हैं, विशेपाधिक पूर्व में हैं, विशेषाधिक दक्षिण में हैं और विशेषाधिक उत्तर में हैं । दिशाओं की अपेक्षा से सबसे कम चतुरिन्द्रिय जीव पश्चिम में हैं, विशेषाधिक पूर्वदिशा में हैं, विशेपाधिक दक्षिण में हैं, विशेषाधिक उत्तरदिशा में हैं ।
दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े नैरयिक पूर्व, पश्चिम और उत्तर दिशा में हैं, असंख्यातगुणे अधिक दक्षिणदिशा में हैं । ईसी तरह रत्नप्रभा यावत् अधःसप्तमा के नैरयिको के विषय में भी दिशाओ की अपेक्षा से यही अल्पबहुत्व जानना ।
दक्षिणदिशा के अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों से छठी तमःप्रभापृथ्वी के नैरयिक पूर्व, पश्चिम और उत्तर में असंख्यातगुणे हैं, और (उनसे भी) असंख्यातगुणे दक्षिणदिशा में हैं । ईसी तरह दक्षिणदिशा के साथ तमःप्रभापृथ्वी से लेकर शर्कराप्रभा पृथ्वी के नैरयिको का पीछे पीछे की नरक यावत् रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के साथ अल्पबहुत्व जानना ।
दिशाओं की अपेक्षा से सबसे थोड़े पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीव पश्चिम में हैं । पूर्व