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प्रज्ञापना-१/-/१९
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पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक ।
[२०] वे पृथ्वीकायिक जीव कौन-से हैं ? दो प्रकार के हैं-सूक्ष्म पृथ्वीकायिक और बादर पृथ्वीकायिक ।
[२१] सूक्ष्मपृथ्वीकायिक क्या हैं ? दो प्रकार के हैं । पर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक ।।
[२२] बादरपृथ्वीकायिक क्या हैं ? दो प्रकार के हैं । श्लक्ष्ण और खरखादरपृथ्वीकायिक।
[२३] श्लक्ष्ण बादरपृथ्वीकायिक क्या हैं ? सात प्रकार के हैं । कृष्णमृत्तिका, नीलमृत्तिका, लोहितमृत्तिका, हारिद्रमृत्तिका, शुक्लमृत्तिका, पाण्डुमृत्तिका और पनकमृत्तिका ।
[२४] खर बादरपृथ्वीकायिक कितने प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के हैं ।
[२५] पृथ्वी, शर्करा, वालुका, उपल, शिला, लवण, ऊष, अयस्, ताम्बा, त्रपुष्, सीसा, रौप्य, सुवर्ण, वज्र । तथा
[२६] हड़ताल, हींगुल, मैनसिल, सासग, अंजन, प्रवाल, अभ्रपटल । तथा
[२७] गोमेजक, रुचकरत्न, अंकरत्न, स्फटिकरत्न, लोहिताक्षरत्न, मरकतरत्न, मसारगल्लरत्न, भुजमोचकरत्न, इन्द्रनीलमणि । तथा
[२८] चन्दनरत्न, गैरिकरत्न, हंसरत्न, पुलकरत्न, सौगन्धिकरत्न, चन्द्रप्रभरत्न, वैडूर्यरत्न, जलकान्तमणि और सूर्यकान्तमणि ।
[२१] इनके अतिरिक्त जो अन्य भी तथा प्रकार के हैं, वे भी खर बादरपृथ्वीकायिक जानना । बादरपृथ्वीकायिक संक्षेप में दो प्रकार के हैं-पर्याप्तक और अपर्याप्तक । उनमें से जो पर्याप्तक हैं, इनके वर्ण-गंध-रस और स्पर्श की अपेक्षा से हजारों भेद हैं । संख्यात लाख योनिप्रमुख हैं । पर्याप्तकों के निश्रा में, अपर्याप्तक उत्पन्न होते हैं । जहाँ एक (पर्याप्तक) होता है, वहाँ नियम से असंख्यात अपर्याप्तक (उत्पन्न होते हैं ।) यह हुआ खर बादरपृथ्वीकायिकों का निरूपण ।
[३०] वे अप्कायिक जीव कितने प्रकार के हैं ? दो प्रकार के हैं । सूक्ष्म और बादर। वे सूक्ष्म अप्कायिक किस प्रकार के हैं ? दो प्रकार के – पर्याप्तक और अपर्याप्तक । बादरअप्कायिक क्या हैं ? अनेक प्रकार के हैं । ओस, हिम, महिका, ओले, हरतनु, शुद्धोदक, शीतोदक, उष्णोदक, क्षारोदक, खट्टोदक, अम्लोदक, लवणोदक, वारुणोदक, क्षीरोदक, घृतोदक, क्षोदोदक, और रसोदक | ये और तथाप्रकार के और भी जितने प्रकार हों, वे सब बादरअप्कायिक समझना ।
वे बादर अप्कायिक संक्षेप में दो प्रकार के हैं-पर्याप्तक और अपर्याप्तक । उनमें से जो अपर्याप्तक हैं, वे असम्प्राप्त हैं । उनके वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श की अपेक्षा से हजारों भेद होते हैं । उनके संख्यात लाख योनिप्रमुख हैं । पर्याप्तक जीवों के आश्रय से अपर्याप्तक आकर उत्पन्न होते हैं । जहाँ एक पर्याप्तक है, वहाँ नियम से असंख्यात अपर्याप्तक उत्पन्न होते हैं ।
[३१] वे तेजस्कायिक जीव किस प्रकार के हैं ? दो प्रकार के हैं । सूक्ष्म और बादर। सूक्ष्म तेजस्कायिक जीव किस प्रकार के हैं ? दो प्रकार के हैं । पर्याप्तक और अपर्याप्तक । वे बादर तेजस्कायिक किस प्रकार के हैं ? अनेक प्रकार के हैं । अंगार, ज्वाला, मुर्मुर, अर्चि,