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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
_ नमो नमो निम्मलदसणस्स १५/१/-प्रज्ञापना
उपांगसूत्र-४/१-हिन्दी अनुवाद ।
(पद-१-प्रज्ञापना) [१] जरा, मृत्यु और उभय से रहित सिद्धों को त्रिविध अभिवन्दन करके त्रैलोक्यगुरु जिनवरेन्द्र श्री भगवान् महावीर को वन्दन करता हूँ ।
[२] भव्यजनों को निवृत्ति करनेवाले जिनेश्वर भगवान ने श्रुतरत्ननिधिरूप सर्वभावों की प्रज्ञापना का उपदेश दिया है ।
__ [३वाचक श्रेष्ठवंशज ऐसे तेईसमें धीरपुरुष, दुर्धर एवं पूर्वश्रुत से जिनकी बुद्धि समृद्ध हुई है ऐसे मुनि द्वारा
[४] श्रुतसागर से संचित करके उत्तम शिष्यगण को जो दिया है, ऐसे आर्य श्यामाचार्य को नमस्कार हो ।
[५] दृष्टिवाद के निःस्यन्द रूप विचित्र श्रुतरत्नरूप इस प्रज्ञापना-अध्ययन का श्रीतीर्थंकर भगवान् ने जैसा वर्णन किया है, मैं भी उसी प्रकार वर्णन करूंगा ।
[६] (प्रज्ञापनासूत्र में छत्तीस पद हैं ।) १. प्रज्ञापना, २. स्थान, ३. बहुवक्तव्य, ४. स्थिति, ५. विशेष, ६. व्युत्क्रान्ति, ७. उच्छ्वास, ८. संज्ञा, ९. योनि, १०. चरम ।।
[७] ११. भाषा, १२. शरीर, १३. परिणाम, १४. कषाय, १५. इन्द्रिय, १६. प्रयोग, १७. लेश्या, १८. कायस्थिति, १९. सम्यक्त्व और २०. अन्तक्रिया ।
[८] २१. अवगाहना-संस्थान, २२. क्रिया, २३. कर्म, २४. कर्म का बन्धक, २५. कर्म का वेदक, २६. वेद का बन्धक, २७. वेद-वेदक ।
[९] २८. आहार, २९. उपयोग, ३०. पश्यत्ता, ३१. संज्ञी, ३२. संयम, ३३. अवधि, ३४. प्रविचारणा, ३५. वेदना, एवं ३६. समुद्घात ।
[१०] प्रज्ञापना क्या है ? दो प्रकार की है । जीवप्रज्ञापना और अजीव प्रज्ञापना ।
[११] वह अजीव-प्रज्ञापना क्या है । दो प्रकार की है । रूपी-अजीव-प्रज्ञापना और अरूपी-अजीव-प्रज्ञापना ।
[१२] वह अरूपी-अजीव-प्रज्ञापना क्या है ? दस प्रकारकी है । धर्मास्तिकाय, धर्मास्तिकाय का देश, धर्मास्तिकाय के प्रदेश, अधर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय का देश, अधर्मास्तिकाय के प्रदेश, आकाशास्तिकाय, आकाशस्तिकाय का देश, आकाशास्तिकाय के प्रदेश और अद्धाकाल ।
[१३] वह रूपी-अजीव-प्रज्ञापना क्या है ? चार प्रकार की है । स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्धप्रदेश और परमाणुपुद्गल । वे संक्षेप से पांच प्रकार के हैं, वर्णपरिणत, गन्धपरिणत, रसपरिणत, स्पर्शपरिणत और संस्थानपरिणत ।।
जो वर्णपरिणत होते हैं, वे पांच प्रकार के हैं । काले वर्ण के रूप में, नीले वर्ण के