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जीवाजीवाभिगम-३/द्वीप./१८७
१०७ नीलवंतद्रह नामक द्रह में यहाँ-वहाँ बहुत से त्रिसोपानप्रतिरूपक हैं । उस नीलवंत नामक द्रह के मध्यभाग में एक बड़ा कमल है । वह कमल एक-एक योजन लम्बा चौड़ा है । उसकी परिधि इससे तिगुनी से कुछ अधिक है । इसकी मोटाई आधा योजन है । यह इस योजन जल के अन्दर है और दो कोस जल से ऊपर है । दोनों मिलाकर साढे दस योजन की इसकी ऊँचाई है ।
उस कमल का मूल वज्रमय है, कंद रिष्टरत्नों का है, नाल वैडूर्यरत्नों की है, बाहर के पत्ते वैडूर्यमय हैं, आभ्यन्तर पत्ते जंबूनद के हैं, उसके केसर तपनीय स्वर्ण के हैं, स्वर्ण की कर्णिका है और नानामणियों की पुष्कर-स्तिबुका है । वह कर्णिका आधा योजन की लम्बीचौड़ी है, इससे तिगुनी से कुछ अधिक इसकी परिधि है, एक कोस की मोटाई है, यह पूर्णरूप से कनकमयी है, स्वच्छ है, श्लक्ष्ण है यावत् प्रतिरूप है । उस कर्णिका के ऊपर एक बहुसमरमणीय भूमिभाग है । उस के ठीक मध्य में एक विशाल भवन है जो एक कोस लम्बा, आधा कोस चौड़ा और एक कोस से कुछ कम ऊँचा है । वह अनेक सैकड़ों स्तम्भों पर आधारित है । उस भवन में तीन द्वार हैं-पूर्व, दक्षिण और उत्तर में । वे द्वार पांच सौ धनुष ऊँचे हैं, ढाई सौ धनुष चौड़े हैं और इतना ही इनका प्रवेश है । ये श्वेत हैं, श्रेष्ठ स्वर्ण की स्तूपिका से युक्त हैं यावत् उन पर वनमालाएँ लटक रही हैं । उस भवन में बहुसमरमरणीय भूमिभाग है । उस के ठीक मध्य में एक मणिपीठिका है, जो पांच सौ धनुष की लम्बी-चौड़ी है और ढाई सौ योजन मोटी है और सर्वमणियों की बनी हुई है । उस मणिपीठिका के ऊपर एक विशाल देवशयनीय है ।
___वह कमल दूसरे एक सौ आठ कमलों से सब ओर से घिरा हुआ है । वे कमल उस कमल से आधे ऊँचे प्रमाण वाले हैं । आधा योजन लम्बे-चौड़े और इससे तिगुने से कुछ अधिक परिधि वाले हैं । उनकी मोटाई एक कोस की है । वे दस योजन पानी में ऊंडे हैं
और जलतल से एक कोस ऊँचे हैं । जलांत से लेकर ऊपर तक समग्ररूप में वे कुछ अधिक दस योजन के हैं । वज्ररत्नों के उनके मूल हैं, यावत् नानामणियों की पुष्करस्तिबुका है । कमल की कणिकाएँ एक कोस लम्बी-चौड़ी हैं और उससे तिगुने से अधिक उनकी परिधि है, आधा कोस की मोटाई है, सर्व कनकमयी हैं, स्वच्छ यावत् प्रतिरूप हैं । उस कमल के पश्चिमोत्तर में, उत्तर में और उत्तरपूर्व में नीलवंतद्रह के नागकुमारेन्द्र नागकुमार राज के चार हजार सामानिक देवों के चार हजार पद्म हैं । वह कमल अन्य तीन पद्मवरपरिक्षेप से सब ओर से घिरा हुआ है । आभ्यन्तर पद्म परिवेश में बत्तीस लाख पद्म हैं, मध्यम पद्मपरिवेश में चालीस लाख पद्म हैं और बाह्य पद्मपरिवेश में अड़तालीस लाख पद्म हैं । इस प्रकार सब पद्मों की संख्या एक करोड़ बीस लाख हैं ।
हे भगवन् ! नीलवंतद्रह नीलवंतद्रह क्यों कहलाता है ? गौतम ! नीलवंतद्रह में यहाँ वहाँ स्थान स्थान पर नीलवर्ण के उत्पल कमल यावत् शतपत्र-सहस्रपत्र कमल खिले हुए हैं तथा वहाँ नीलवंत नामक नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज महर्द्धिक देव रहता है, इस कारण नीलवंतद्रह नीलवंतद्रह कहा जाता है ।
[१८८] हे भगवंत ! नीलवंतद्रहकुमार की नीलवंत राजधानी कहां है ? हे गौतम ! नीलवंत पर्वत की उत्तर में तिर्छा असंख्यात द्वीसमुद्र पार करने के बाद अन्य जंबूद्वीप में