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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
कर देवलोक में उत्पन्न होते हैं । अन्तर इतना है कि इनकी ऊँचाई छह हजार धनुष की होती है । दो सौ छप्पन इनकी पसलियां होती हैं । तीन दिन के बाद इन्हें आहार की इच्छा होती है । इनकी जघन्य स्थिति पल्योपम का असंख्यातवां भाग कम-देशोन तीन पल्योपम की है
और उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की है । ये ४९ दिन तक अपत्य की अनुपालन करते हैं। उत्तराकुरा क्षेत्र में छह प्रकार के मनुष्य पैदा होते हैं, पद्मगंध, मृगगन्ध, अमम, सह, तेयालीस और शनैश्चारी ।
[१८६] हे भगवन् ! उत्तरकुरु नामक क्षेत्र में यमक नामक दो पर्वत कहाँ पर हैं ? गौतम ! नीलवंत वर्षधर पर्वत के दक्षिण में ८३४ योजन और एक योजन के ४/७ भाग आगे जाने पर शीता महानदी के पूर्व-पश्चिम के दोनों किनारों पर उत्तरकुरु क्षेत्र में हैं । ये एकएक हजार योजन ऊँचे हैं, २५० योजन जमीन में हैं, मूल में एक-एक हजार योजन लम्बेचौड़े हैं, मध्य में ७५० योजन लम्बे-चौड़े हैं और ऊपर पांच सौ योजन आयाम-विष्कंभवाले हैं । मूल में इनकी परिधि ३१६२ योजन से कुछ अधिक है । मध्य में इनकी परिधि २३७२ योजन से कुछ अधिक है और ऊपर १५८१ योजन से कुछ अधिक की परिधि है । ये मूल में विस्तीर्ण, मध्य में संक्षिप्त और ऊपर में पतले हैं । ये गोपुच्छ के आकार के हैं, सर्वात्मना कनकमय हैं, स्वच्छ हैं, यावत् प्रतिरूप हैं । ये प्रत्येक पर्वत पद्मवरवेदिका से परिक्षिप्त हैं और प्रत्येक पर्वत वनखंड से युक्त हैं । उन यमक पर्वतों के ऊपर बहुसमरमणीय भूमिभाग है । यावत् वहाँ बहुत से वानव्यन्तर देव और देवियाँ ठहरती हैं, लेटती हैं यावत् पुण्य-फल का अनुभव करती हुई विचरती हैं । उन दोनों बहुसमरमणीय भूमिभागों के मध्यभाग में अलगअलग प्रासादावतंसक हैं । वे साढे बासठ योजन ऊँचे और इकतीस योजन एक कोस के चौड़े हैं, वहाँ दो योजन की मणिपीठिका है । उस पर श्रेष्ठ सिंहासन है । ये सिंहासन सपरिवार हैं। यावत् उन पर यमक देव बैठते हैं ।
हे भगवन् ! ये यमक पर्वत यमक पर्वत क्यों कहलाते हैं ? गौतम ! उन यमक पर्वतों पर जगह-जगह बहुत-सी छोटी छोटी बावडियां यावत् बिलपंक्तियां हैं, उनमें बहुत से उत्पल कमल यावत् सहस्रपत्र हैं जो यमक के आकार के हैं, यमक के समान वर्ण वाले हैं और यावत् पल्योपम की स्थिति वाले दो महान् ऋद्धि वाले देव रहते हैं । वे देव वहाँ अपने चार हजार सामानिक देवों का यावत्, यमक राजधानियों का और बहुत से अन्य वानव्यन्तर देवों और देवियों का आधिपत्य करते हुए यावत् उनका पालन करते हुए विचरते हैं । इसलिए चमक पर्वत कहलाते हैं । ये यमक पर्वत शाश्वत हैं यावत् नित्य हैं । हे भगवन् ! इन यमक देवों की यमका नामक राजधानियां कहाँ हैं ? गौतम ! इन यमक पर्वतों के उत्तर में तिर्यक् असंख्यात द्वीप-समुद्रों को पार करने के पश्चात् प्रसिद्ध जम्बूद्वीप से भिन्न अन्य जम्बूद्वीप में बारह हजार योजन आगे जाने पर हैं यावत् यमक नाम के दो महर्द्धिक देव उनके अधिपति हैं ।
[१८७] भगवन् ! उत्तरकुरु नामक क्षेत्र में नीलवंत द्रह कहाँ है ? गौतम ! यमक पर्वतों के दक्षिण में ८३४-४/७ योजन आगे जाने पर सीता महानदी के ठीक मध्य में है । एक हजार योजन इसकी लम्बाई है और पांच सौ योजन की चौड़ाई है । यह दस योजन गहरा है, स्वच्छ है, श्लक्ष्ण है, रजतमय इसके किनारे हैं, यह चतुष्कोण और समतीर है यावत् प्रतिरूप है । यह दोनों ओर से पद्मवरवेदिकाओं और वनखण्डों से चौतरफ घिरा हुआ है ।