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________________ १०० आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद जल की वर्षा इस ढंग से करते हैं जिससे न तो पानी अधिक होकर बहता है, न कीचड़ होता है । जिससे रजकण और धूलि दब जाती है । कोई देव उस विजया राजधानी को निहतरज वाली, नष्ट रज वाली, भ्रष्ट रज वाली, प्रशान्त रज वाली, उपशान्त, रजवाली बनाते हैं । कोई देव उस विजया राजधानी को अन्दर और बाहर से जल का छिडकाव कर, सम्मार्जन कर, गोमयादि से लीपकर तथा उसकी गलियों और बाजारों को छिड़काव से शुद्ध कर साफ-सुथरा करने में लगे हुए हैं । कोई देव विजया राजधानी में मंच पर मंच बनाने में लगे हुए हैं । कोई देव जयसूचक विजयवैजयन्ती नामक पताकाओं लगाकर विजया राजधानी को सजाने में लगे हुए हैं, कोई देव विजया राजधानी को चूना आदि से पोतने में और चंदवा आदि बांधने में तत्पर हैं । कोई देव गोशीर्ष चन्दन आदि से अपने हाथों को लिप्त करके पाँचों अंगुलियों के छापे लगा रहे हैं । कोई देव घर-घर के दरवाजों पर चन्दन के कलश रख रहे हैं । कोई देव चन्दन घट और तोरणों से दरवाजे सजा रहे हैं, कोई देव पुष्पमालाओं से उस राजधानी को सजा रहे हैं, कोई देव पांच वर्णों के श्रेष्ठ सुगन्धित पुष्पों के पुंजों से युक्त कर रहे हैं, कोई देव काले अगुरु आदि से उसे मघमघायमान कर रहे हैं, कोई कोई स्वर्ण की, चांदी की, रत्न की, वज्र की, फूल, मालाएँ, सुगन्धित द्रव्य, सुगन्धित चूर्ण, वस्त्र और कोई आभरणों की वर्षा कर रहे है । कोई कोई देव हिरण्य, यावत् आभरण बांट रहे हैं । कोई कोई देव द्रुत, विलम्बित, द्रुतविलम्बित, अंचित, रिभित, अंचित-रिभित, आरभट, भसोल, आरभट - भसोल, उत्पात - निपातप्रवृत्त, संकुचित-प्रसारित, रेक्करचित भ्रान्त-संभ्रान्त नामक नाट्यविधियाँ प्रदर्शित करते हैं । कोई देव चार प्रकार के वाजिंत्र बजाते हैं । तत, वितत, घन और झुषिर । कोई देव चार प्रकार के गेय गाते हैं । उत्क्षिप्त, प्रवृत्त, मंद और रोचितावसान। कोई देव चार प्रकार के अभिनय करते हैं । दान्तिक, प्रतिश्रुतिक, सामान्यतोविनिपातिक और लोकमध्यावसान । कोई देव स्वयं को पीन बना लेते हैं-फुला लेते हैं, ताण्डवनृत्य करते हैं, लास्यनृत्य करते हैं, छु-छु करते हैं, उक्त चारों क्रियाएँ करते हैं, कई देव आस्फोटन, वल्गन, त्रिपदीछेदन और उक्त तीनों क्रियाएँ करते हैं, कोई देव घोड़े की तरह हिन हिनाते हैं, हाथी की तरह गुड़गुड़ आवाज करते हैं, रथ की आवाज निकालते हैं, कोई देव उक्त तीनों तरह की आवाजें निकालते हैं, कोई देव उछलते हैं, कोई देव छलांग लगाते हैं, कोई देव उक्त तीनों क्रियाएँ करते हैं, कोई देव सिंहनाद करते हैं, कोई देव आघात करते हैं, प्रहार करते हैं, कोई देव उक्त तीनों क्रियाएँ करते हैं । कोई देव हक्कार करते हैं, वुक्कार करते हैं, थक्कार करते हैं, पुत्कार करते हैं, नाम सुनाने लगते हैं, कोई देव उक्त सब क्रियाएँ करते हैं । कोई देव ऊपर उछलते हैं, नीचे गिरते हैं, तिरछे गिरते हैं, कोई देव ये तीनों क्रियाएँ करते हैं । कोई जलने लगते हैं, कोई ताप से तप्त होने लगते हैं, गर्जना करते हैं, बिजलियां चमकाते हैं, वर्षा करने लगते हैं, देवों का सम्मेलन करते हैं, देवों को हवा में नचाते हैं, कहकहा मचाते हैं, हर्षोल्लास प्रकट करते हैं, देवोद्योत करते हैं, देवविद्युत् करते हैं, चेलोत्क्षेप करते हैं । किन्हीं देवों के हाथों में उत्पल कमल हैं यावत् सहस्रपत्र कमल हैं, किन्हीं के हाथों में घंटाएँ हैं, यावत् धूप के कडुच्छक हैं । इस प्रकार वे देव हृष्ट-तुष्ट हैं यावत् हर्ष के कारण उनके हृदय विकसित हो रहे हैं । वे उस विजयाराजधानी में चारों ओर इधर-उधर दौड़ रहे हैंभाग रहे है । तदनन्तर वे चार हजार सामानिक देव, परिवार सहित चार अग्र महिषियाँ यावत्
SR No.009785
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages241
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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