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________________ - हिन्दी अनुवाद आगमसूत्र - 1 ९६ के भार को वहन करने के लिए प्राणों को धारण करने के उद्देश्य से साधु को सम्यक् प्रकार से भोजन करना चाहिए । इस प्रकार आहारसमिति में समीचीन रूप से प्रवृत्ति के योग से अन्तरात्मा भावित करने वाला साधु, निर्मल, संक्लेशरहित तथा अखण्डित चारित्र की भावना वाला अहिंसक संयमी होता है । अहिंसा महाव्रत की पाँचवीं भावना आदान- - निक्षेपणसमिति है । इस का स्वरूप इस प्रकार है- संयम के उपकरण पीठ, चौकी, फलक पाट, शय्या, संस्तारक, वस्त्र, पात्र, कम्बल, दण्ड, रजोहरण, चोलपट्ट, मुखवस्त्रिका, पादप्रोंछन, ये अथवा इनके अतिरिक्त उपकरण संयम की रक्षा या वृद्धि के उद्देश्य से तथा पवन, धूप, डांस, मच्छर और शीत आदि से शरीर की रक्षा के लिए धारण- ग्रहण करना चाहिए । साधु सदैव इन उपकरणों के प्रतिलेखन, प्रस्फोटन और प्रमार्जन करने में, दिन में और रात्रि में सतत अप्रमत्त रहे और भाजन, भाण्ड, उपधि तथा अन्य उपकरणों को यतनापूर्वक रक्खे या उठाए । इस प्रकार आदान-निक्षेपणसमिति के योग से भावित अन्तरात्मा - अन्तःकरण वाला साधु निर्मल, असंक्लिष्ट तथा अखण्ड चारित्र की भावना से युक्त अहिंसक संयमशील सुसाधु होता है । इस प्रकार मन, वचन और काय से सुरक्षित इन पाँच भावना रूप उपायों से यह अहिंसा-संवरद्वार पालित होता है । अतएव धैर्यशाली और मतिमान् पुरुष को सदा सम्यक् प्रकार से इसका पालन करना चाहिए । यह अनास्रव है, दीनता से रहित, मलीनता से रहित और अनास्रवरूप है, अपरिस्रावी है, मानसिक संक्लेश से रहित है, शुद्ध है और सभी तीर्थंकरों द्वारा अनुज्ञात है । पूर्वोक्त प्रकार से प्रथम संवरद्वार स्पृष्ट होता है, पालित होता है, शोधित होता है, तीर्ण होता है, कीर्त्तित, आराधित और आज्ञा के अनुसार पालित होता है । ऐसा ज्ञातमुनि - महावीर ने प्रज्ञापित किया है एवं प्ररूपित किया है । यह सिद्धवरशासन प्रसिद्ध है, सिद्ध है, बहुमूल्य है, सम्यक् प्रकार से उपदिष्ट है और प्रशस्त है । अध्ययन - ६ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण अध्ययन- ७ संवरद्वार- २ [३६] हे जम्बू ! द्वितीय संवर सत्यवचन है | सत्य शुद्ध, शुचि, शिव, सुजात, सुभाषित होता है । यह उत्तम व्रतरूप है और सम्यक् विचारपूर्वक कहा गया है । इसे ज्ञानी जनों ने कल्याण के समाधान के रूप में देखा है । यह सुप्रतिष्ठित है, समीचीन रूप में संयमयुक्त वाणी से कहा गया है । सत्य सुरवरों, नरवृषभों, अतिशय बलधारियों एवं सुविहित द्वारा बहुमत है । श्रेष्ठ मुनियों का धार्मिक अनुष्ठान है । तप एवं नियम से स्वीकृत किया गया है । सद्गति के पथ का प्रदर्शक है और यह सत्यव्रत लोक में उत्तम है । सत्य विद्याधरों की आकाशगामिनी विद्याओं को सिद्ध करने वाला है । स्वर्ग तथा मुक्ति के मार्ग का प्रदर्शक है । यथातथ्य रहित है, ऋजुक है, कुटिलता रहित है । यथार्थ पदार्थ का ही प्रतिपादक है, सर्व प्रकार से शुद्ध है, विसंवाद रहित है । मधुर है और मनुष्यों का बहुत-सी विभिन्न प्रकार की अवस्थाओं में आश्चर्यजनक कार्य करने वाले देवता के समान है । किसी महासमुद्र में, जिस में बैठे सैनिक मूढधी हो गए हों, दिशाभ्रम से ग्रस्त हो जाने
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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