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________________ प्रश्नव्याकरण-१/३/१६ ७७ से गृद्ध हैं, स्त्री सम्बन्धी रूप, शब्द, रस और गंध में इष्ट रति तथा इष्ट भोग की तृष्णा से व्याकुल बने हुए हैं, जो केवल धन में ही सन्तोष मानते हैं, ऐसे मनुष्यगण-फिर भी पापकर्म के परिणाम को नहीं समझते । वे आरक्षक-वधशास्त्र के पाठक होते हैं । चोरों को गिरफ्तार करने में चतुर होते हैं । सैकड़ों बार लांच लेते हैं । झूठ, कपट, माया, निकृति करके वेषपरिवर्तन आदि करके चोर को पकड़ने तथा उससे अपराध स्वीकार कराने में अत्यन्त कुशल होते हैं वे नरकगतिगामी, परलोक से विमुख एवं सैकड़ों असत्य भाषण करने वाले, ऐसे राजकिंकरों के समक्ष उपस्थित कर दिये जाते हैं । प्राणदण्ड की सजा पाए हुए चोरों को पुरवर में श्रृंगाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, महापथ और पथ आदि स्थानों में जनसाधारण के सामने लाया जाता है । तत्पश्चात् बेतों, डंडों, लाठियों, लकड़ियों, ढेलों, पत्थरों, लम्बे लठ्ठों, पणोल्लि, मुक्कों, लताओं, लातों, घुटनों और कोहनियों से, उनके अंग-अंग भंग कर दिए जाते हैं, उनके शरीर को मथ दिया जाता है । अठारह प्रकार के चोरों एवं चोरी के प्रकारों के कारण उनके अंग-अंग पीडित कर दिये जाते हैं, करुणाजनक दशा होती है । उनके ओष्ठ, कण्ठ, गला, तालु और जीभ सूख जाती है, जीवन की आशा नष्ट हो जाती है | पानी भी नसीब नहीं होता । उन्हें धकेले या घसीटे जाते हैं । अत्यन्त कर्कश पटह-बजाते हुए, धकियाए जाते हुए तथा तीव्र क्रोध से भरे हुए राजपुरुषों के द्वारा फांसी पर चढ़ाने के लिए दृढ़तापूर्वक पकड़े हुए वे अत्यन्त ही अपमानित होते हैं । उन्हें दो वस्त्र और लाल कनेर की माला पहनायी जाती है, जो वध्यदूत सी प्रतीत होती है , पुरुष को शीघ्र ही मरणभीति से उनके शरीर से पसीना छूटता है, उनके सारे अंग भीग जाते हैं । कोयले आदि से उनका शरीर पोता है । हवा से उड़ कर चिपटी हुई धूल से उनके केश रूखे एवं धूल भरे हो जाते हैं । उनके मस्तक के केशों को कुसुंभी से रंग दिया जाता है । उनकी जीवन-आशा छिन्न हो जाती है । अतीव भयभीत होने के कारण वे डगमगाते हुए चलते हैं और वे वधकों से भयभीत बने रहते हैं । उनके शरीर के छोटे-छोटे टुकड़े कर दिये जाते हैं। उन्हीं के शरीर में से काटे हुए और रुधिर से लिप्त माँस के टुकड़े उन्हें खिलाए जाते हैं । कठोर एवं कर्कश स्पर्श वाले पत्थर आदि से उन्हें पीटा जाता है । इस भयावह दृश्य को देखने के लिए उत्कंठित, पागलों जैसी नर-नारियों की भीड़ से वे घिर जाते हैं । नागरिक जन उन्हें देखते हैं । मृत्युदण्डप्राप्त कैदी की पोशाक पहनाई जाता है और नगर के बीचों-बीच हो कर ले जाया जाता है । उस समय वे अत्यन्त दयनीय दिखाई देते हैं । त्राणरहित, अशरण, अनाथ, बन्धुबान्धवविहीन, स्वजन द्वारा परित्यक्त वे इधर-उधर नजर डालते हैं और मौत के भय से अत्यन्त घबराए हुए होते हैं । उन्हें वधस्थल पर पहुंचा दिया जाता है और उन अभागों को शूली पर चढ़ा दिया जाता है, जिससे उनका शरीर चिर जाता है । वहाँ वध्यभूमि में उनके अंग-प्रत्यंग काट डाले जाते हैं । वृक्ष की शाखाओं पर टांग दिया जाता है । चार अंगों को कस कर बांध दिया जाता है । किन्हीं को पर्वत की चोटी से गिराया जाता है । उससे पत्थरों की चोट सहेनी पड़ती है । किसी-किसी को हाथी के पैर के नीचे कुचला जाता है । उन अदत्तादान का पाप करनेवालों को कुंठित धारवाले-कुल्हाड़ों आदि से अठारह स्थानों में खंडित किया जाता है । कइयों के कान, आँख और नाक काटे जाते हैं तथा नेत्र, दांत और वृषण उखाड़े जाते हैं । जीभ खींच ली जाती है, कान या शिराएँ
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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