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________________ प्रश्नव्याकरण- १/३/१५ ७३ प्रबल आगलों, गोफणों, द्रुहणों, बाणों के तूणीरों, कुवेणियों और चमचमाते शस्त्रों को आकाश में फेंकने से आकाशतल बिजली के समान उज्ज्वल प्रभावाला हो जाता है । उस संग्राम में प्रकट शस्त्र प्रहार होता है । महायुद्ध में बजाये जानेवाले शंखों, भेरियों, उत्तम वाद्यों, अत्यन्त स्पष्ट ध्वनिवाले ढोलों के बजने के गंभीर आघोष से वीर पुरुष हर्षित होते हैं और कायर पुरुषों को क्षोभ होती है । वे कांपने लगते हैं । इस कारण युद्धभूमि में हो-हल्ला होता है । घोड़े, हाथी, रथ और पैदल सेनाओं के शीघ्रतापूर्वक चलने से चारों ओर फैली - धूल के कारण वहाँ सघन अंधकार व्याप्त रहता है । वह युद्ध कायर नरों के नेत्रों एवं हृदयों को आकुल-व्याकुल देता है । ढीला होने के कारण चंचल एवं उन्नत उत्तम मुकुटों, तिरीटों-ताजों, कुण्डलों तथा नक्षत्र नामक आभूषणों की उस युद्ध में जगमगाहट होती है । पताकाओं, ध्वजाओं, वैजयन्ती पताकाओं तथा चामरों और छत्रों के कारण होने वाले अन्धकार के कारण वह गंभीर प्रतीत होता है । अश्वों की हिनहिनाहट से, हाथियों की चिंघाड़ से, रथों की घनघनाहट से, पैदल सैनिकों की हर-हराहट से, तालियों की गड़गड़ाहट से, सिंहनाद की ध्वनियों से, सीटी बजाने की सी आवाजों से, जोर-जोर की चिल्लाहट से जोर की किलकारियों से और एक साथ उत्पन्न होनेवाली हजारों कंठों की ध्वनि से वहाँ भयंकर गर्जनाएँ होती हैं । उसमें एक साथ हँसने, रोने और कराहने के कारण कलकल ध्वनि होती रहती है । वह रौद्र होता है । उस युद्ध में भयानक दांतों से होठों को जोर से काटने वाले योद्धाओं के हाथ अचूक प्रहार करने के लिए उद्यत रहते हैं । योद्धाओं के नेत्र रक्तवर्ण होते हैं । उनकी भौहें तनी रहती हैं उनके ललाट पर तीन सल पड़े हुए होते हैं । उस युद्ध में, मार-काट करते हुए हजारों योद्धाओं के पराक्रम को देख कर सैनिकों के पौरुष पराक्रम की वृद्धि हो जाती है । हिनहिनाते हुए अश्वों और रथों द्वारा इधर-उधर भागते हुए युद्धवीरों तथा शस्त्र चलाने में कुशल और सधे हुए हाथोंवाले सैनिक हर्ष-विभोर होकर, दोनों भाजुएँ ऊपर उठाकर, खिलखिलाकर हँस रहे होते हैं । किलकारियाँ मारते हैं । चमकती हुई ढालें एवं कवच धारण किए हुए, मदोन्मत्त हाथियों पर आरूढ प्रस्थान करते हुए योद्धा, शत्रुयोद्धाओं के साथ परस्पर जूझते हैं तथा युद्धकला में कुशलता के कारण अहंकारी योद्धा अपनी-अपनी तलवारें म्यानों में से निकाल कर, फुर्ती के साथ रोषपूर्वक परस्पर प्रहार करते हैं । हाथियों की सूंडें काट रहे होते हैं । ऐसे भयावह युद्ध में मुद्गर आदि द्वारा मारे गए, काटे गए या फाड़े गए हाथी आदि पशुओं और मनुष्यों के युद्धभूमि में बहते हुए रुधिर के कीचड़ से मार्ग लथपथ हो रहे होते हैं । कूंख के फट जाने से भूमि पर बिखरी हुई एवं बाहर निकलती हुई आंतों से रक्त प्रवाहित होता रहता है । तथा तड़फड़ाते हुए, विकल, मर्माहत, बुरी तरह से कटे हुए, प्रगाढ प्रहार से बेहोश हुए, इधर-उधर लुढकते हुए, विह्वल मनुष्यों के विलाप के कारण वह युद्ध बड़ा ही करुणाजनक होता है । उस युद्ध में मारे गए योद्धाओं के इधर-उधर भटकते घोड़े, मदोन्मत्त हाथी और भयभीत मनुष्य, मूल से कटी हुई ध्वजाओं वाले टूटे-फूटे रथ, मस्तक कटे हुए हाथियों के धड़-कलेवर, विनष्ट हुए शस्त्रास्त्र और बिखरे हुए आभूषण इधर-उधर पड़े होते हैं । नाचते हुए बहुसंख्यक कलेवरों पर काक और गीध मंडराते रहते हैं । तब उनकी छाया के अन्धकार के कारण वह युद्ध गंभीर बन जाता है । ऐसे संग्राम में स्वयं प्रवेश करते हैं - केवल
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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