SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद आक्षेप, क्षेप, विक्षेप, कूटता, कुलमषि, कांक्षा, लालपन-प्रार्थना, व्यसन, इच्छामूर्छा, तृष्णागृद्धि, निकृतिकर्म और अपराक्ष । इस प्रकार पापकर्म और कलह से मलीन कार्यों की बहुलता वाले इस अदत्तादान आस्त्रव के ये और इस प्रकार के अन्य अनेक नाम हैं । [१५] उस चोरी को वे चोर-लोग करते हैं जो परकीय द्रव्य को हरण करने वाले हैं, हरण करने में कुशल हैं, अनेकों बार चोरी कर चुके हैं और अवसर को जानने वाले हैं, साहसी हैं, जो तुच्छ हृदयवाले, अत्यन्त महती इच्छावाले एवं लोभ से ग्रस्त हैं, जो वचनों के आडम्बर से अपनी असलियत को छिपानेवाले हैं आसक्त हैं, जो सामने से सीधा प्रहार करने वाले हैं, ऋण को नहीं चुकानेवाले हैं, जो वायदे को भंग करने वाले हैं, राज्यशासन का अनिष्ट करनेवाले हैं, जो जनता द्वारा बहिष्कृत हैं, जो घातक हैं या उपद्रव करनेवाले हैं, ग्रामघातक, नगरघातक, मार्ग में पथिकों को मार डालने वाले हैं, आग लगाने वाले और तीर्थं में भेद करनेवाले हैं, जो हाथ की चालाकीवाले हैं, जुआरी हैं, खण्डरक्ष हैं, स्त्रीचोर हैं, पुरुष का अपहरण करते हैं, खात खोदनेवाले हैं, गांठ काटनेवाले हैं, परकीय धन का हरण करने वाले हैं, अपहरण करनेवाले हैं, सदा दूसरों के उपमर्दक, गुप्तचोर, गो-चोर-, अश्व-चोर एवं दासी को चुराने वाले हैं, अकेले चोरी करने वाले, घर में से द्रव्य निकाल लेनेवाले, छिप कर चोरी करनेवाले, सार्थ को लूटनेवाले, बनावटी आवाज में बोलनेवाले, राजा द्वारा निगृहीत, अनेकानेक प्रकार से चोरी करके द्रव्य हरण करने की बुद्धिवाले, ये लोग और इसी कोटि के अन्य-अन्य लोग, जो दूसरे के द्रव्य को ग्रहण करने की इच्छा से निवृत्त नहीं हैं, वे चौर्य कर्म में प्रवृत्त होते हैं । इनके अतिरिक्त विपुल बल और परिग्रह वाले राजा लोग भी, जो पराये धन में गृद्ध हैं और अपने द्रव्य से जिन्हें सन्तोष नहीं है, दूसरे देश-प्रदेश पर आक्रमण करते हैं । वे लोभी राजा दूसरे के धनादि को हथियाने के उद्देश्य से चतुरंगिणी सेना के साथ (अभियान करते हैं ।) वे दृढ़ निश्चय वाले, श्रेष्ठ योद्धाओ के साथ युद्ध करने में विश्वास रखने वाले, दर्प से परिपूर्ण सैनिकों से संपरिवृत होते हैं । वे नाना प्रकार के व्यूहों की रचना करते हैं, जैसे पद्मपत्र व्यूह, शकटव्यूह, शूचीव्यूह, चक्रव्यूह, सागरव्यूह और गरुड़व्यूह । इस तरह नाना प्रकार की व्यूहरचना वाली सेना द्वारा दूसरे की सेना को आक्रान्त करते हैं, और उसे पराजित करके दूसरे की धनसम्पत्ति को हरण कर लेते हैं । दूसरे-युद्धभूमि में लड़कर विजय प्राप्त करनेवाले, कमर कसे हुए, कवच धारण किये हुए और विशेष प्रकार के चिह्नपट्ट मस्तक पर बाँधे हुए, अस्त्र-शस्त्रों को धारण किए हुए, प्रतिपक्ष के प्रहार से बचने के लिए ढाल से और उत्तम कवच से शरीर को वेष्टित किए हुए, लोहे की जाली पहने हुए, कवच पर लोहे के काँटे लगाए हुए, वक्षस्थल के साथ ऊर्ध्वमुखी बाणों की तूणीर बाँधे हुए, हाथों में पाश लिए हुए, सैन्यदल की रणोचित रचना किए हुए, कठोर धनुष को हाथों में पकड़े हुए, हर्षयुक्त, हाथों से खींच कर की जाने वाली प्रचण्ड वेग से बरसती हुई मूसलधार वर्षा के गिरने से जहाँ मार्ग अवरुद्ध गया है, ऐसे युद्ध में अनेक धनुषों, दुधारी तलवारों, त्रिशूलों, बाणों, बाएँ हाथों में पकड़ी हुई ढालों, म्यान से निकाली हुई चमकती तलवारों, प्रहार करते हुए भालों, तोमर नामक शस्त्रों, चक्रों, गदाओं, कुल्हाड़ियों, मूसलों, हलों, शूलों, लाठियों, भिंडमालों, शब्बलों, पट्टिस, पत्थरों, द्रुघणों, मौष्टिकों, मुद्गरों,
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy