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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
समान उस उदार तप के प्रभाव से हवन की अग्नि के समान प्रकाशमान मुख से विराजमान हुए | धन्य अनगार के पैरों का तप से ऐसा लावण्य हो गया जैसे सूखी वृक्ष की छाल, लकड़ी की खड़ाऊं या जीर्ण जूता हो । धन्य अनगार के पैर केवल हड्डी, चमड़ा और नसों से ही पहचाने जाते थे, न कि मांस और रुधिर से । पैरों की अंगुलियों कलाय धान्य की फलियां, मूंग की अथवा माष की फलिया कोमल ही तोड़कर धूप में डाली हुई मुरझा जाती हैं ऐसी हो गई । उन में केवल हड्डी, नस और चमड़ा ही नजर आता था, मांस और रुधिर नहीं ।
धन्य अनगार की जवाएं तप के कारण इस प्रकार निर्मास हो गई जैसे काक की, कङ्क पक्षी की और ढंक पक्षी की जडाएं होती हैं | वे सूख कर इस तरह की हो गई कि मांस और रुधिर देखने को भी नहीं रह गया । धन्य अनगार के जानु कालि वनस्पति, मयूर और ढेणिक पक्षी के पर्व समान हो गई । वे भी मांस और रुधिर से नहीं पहचाने जाते थे । धन्य अनगार के ऊरुओं प्रियंगु, बदरी, शल्यकी और शाल्मली वृक्षों की कोमल कोंपल तोड़कर धूप में रखी हुई मुरझा जाती हैं ऐसे मांस और रक्त से रहित हो कर मुरझा गये थे ।
_____धन्य अनगार के कटि-पत्र ऊँट का पैर हो, बूढ़े बैल का पैर जैसा हो गया । उसमें मांस और रुधिर का सर्वथा अभाव था । उदर-भाजन सूखी मशक, चने आदि भूनने का भाण्ड हो अथवा लकड़ी का, बीच में मुड़ा हुआ पात्र की तरह सूख गया था । पार्श्व की अस्थियां दर्पणों की पाण नामक पात्रों की अथवा स्थाणुओं की पंक्ति समान हो गए । पृष्ठ-प्रदेश के उन्नत भाग कान के भूषणों की, गोलक-पाषाणों की, अथवा वर्तक खिलौनों की पंक्ति समान। सूख कर निर्मास हो गये थे । धन्य अनगार के वक्षःस्थल गौ के चरने के कुण्ड का अधोभाग, बांस आदि का अथवा ताड़ के पत्तों का पङ्खा समान सूख कर मांस और रुधिर से रहित हो गया था ।
मांस और रुधिर के अभाव से अन्य अनगार की भुजाएं शमी, बाहाय और अगस्तिक वृक्ष की सूखी हुई फलियां समान हो गए । हाथ सूख कर सूखे गोबरसमान हो गए अथवा वट और पलाश के सूखे पत्ते समान हो गए । अंगुलियां भी सूख कर कलाय, मूंग अथवा माष की मुरझाई हुई फलियां समान उनकी अंगुलियां भी मांस और रुधिर के अभाव से मुरझा कर सूख गई थीं । ग्रीवा मांस और रुधिर के अभाव से सूख कर सुराई, कण्डिका और किसी ऊंचे मुख वाले पात्र समान दिखाई देती थी । उनका चिबुक भी इसी प्रकार सूख गया था
और तुम्बे या हकुब के फल अथवा आम की गुठली जैसा हो गया था । ओठों भी सूख कर सूखी हुई जोंक होती अथवा श्लेष्म या मेंहदी की गुटिका जैसे हो गए । जिह्वा में भी बिलकुल रक्त का अभाव हो गया था, वह वट वृक्ष अथवा पलाश के पत्ता या सूखे हुए शाक के समान हो गए थे ।
धन्य अनगार की नासिका तप के कारण सूख कर एक आम, आम्रातक या मातुलुंग फल की कोमल फांक काट कर धूप में सुखाइ हो ऐसी हो गई । धन्य अनगार की आंखें वीणा के छिद्र अथवा प्रभात काल का टिमटिमाता हुआ तारा समान भीतर धंस गई थीं । कान मूली का छिल्का अथवा चिर्भटी की छाल या करेले का छिल्का समान सूखकर मुरझा गये थे। शिड़ सुखे हुए कोमल तुम्बक, कोमल आलू और सेफालक समान सूख गया था, रूखा हो गया था और उसमें केवल अस्थि, चर्म और नासा-जाल ही दिखाई देता था किन्तु मांस और रुधिर