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________________ अन्तकृद्दशा - ८/६/५५ अंगीकार करके विचरने लगी, उपवास किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर बेला, तेला, चौला और पचौला किया और सबमें सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके तेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, चौला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, पचौला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, बेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, पचौला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, उपवास किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, बेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, तेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, चौला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, बेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, तेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, चौला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, पचौला किया करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, उपवास किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, बेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया तेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया । ४७ इस प्रकार यह लघु सर्वतोभद्र तप कर्म की प्रथम परिपाटी तीन माह और दस दिनों में पूर्ण होती है । इसकी सूत्रानुसार सम्यग् रीति से आराधना करके आर्या महाकृष्णा ने इसकी दूसरी परिपाटी में उपवास किया और विगय रहित पारणा किया । जैसे रत्नावली तप में चार परिपाटियां बताई गई है वैसे ही इस में भी होती हैं । पारणा भी उसी प्रकार समझना चाहिये । इस की प्रथम परिपाटी में पूरे सौ दिन लगे, जिसमें पच्चीस दिन पारणा के और ७५ दिन उपवास के होते हैं । चारों परिपाटियों का सम्मिलित काल एक वर्ष, एक मास और दस दिन होता है । वर्ग -८ अध्ययन - ७ [ ५६ ] आर्या काली की तरह आर्या वीरकृष्णा ने भी दीक्षा अंगीकार की । विशेष यह कि उसने महत्सर्वतो भद्र तप कर्म अंगीकार किया, जो इस प्रकार है-उपवास किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, यावत् सात उपवास किए सब में सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया। यह प्रथम लता हुई । चोला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, इसी क्रम से पांच-छ- सात - एक-दो और तीन उपवास कीऐ । सबमें सर्व कामगुणयुक्त पारणा किया । यह दूसरी लता हुई । सात उपवास किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया इसी क्रम से एक-दो यावत् छ उपवास कीए । सबमें सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया । यह तीसरी लता हुई तेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर चार-पांच-छ- सात- एक और दो उपवास किए । सबमें सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया । यह चौथी लता हुई । छह उपवा किये, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया फिर सात एक-दो यावत् पांच उपवास किए । सबमें सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया । यह पांचवीं लता हुई । बेला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, फिर तीन-चार यावत् सात और एक उपवास किया सबमें सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया । इस तरह छठी लता पूर्ण हुई । पचोला किया, करके सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया, करके छ सात - एक-दो यावत् पांच उपवास किए । सबमें सर्वकामगुणयुक्त पारणा किया। यह सातवीं लता पूर्ण हुई । इस प्रकार सात लताओं की परिपाटी का काल आठ मा
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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