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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
[५० ] इस भांति काली आर्या ने रत्नावली तप की पांच वर्ष दो मास और अट्ठाईस दिनों में सूत्रानुसार यावत् आराधना पूर्ण करके जहाँ आर्या चन्दना थीं वहाँ आई और आर्या चंदना को वंदना - नमस्कार किया । तदनन्तर बहुत से उपवास, बेला, तेला, चार, पाँच आदि अनशन तप से अपनी आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी ।
तत्पश्चात् काली आर्या यावत् नसों से व्याप्त हो गयी थी । जैसे कोई कोयलों से भरी गाड़ी हो, यावत् भस्म के समूह से आच्छादित अग्नि की तरह तपस्या के तेज से देदीप्यमान वह तपस्तेज की लक्ष्मी से अतीव शोभायमान हो रही थी । एक दिन रात्रि के पिछले प्रहर में काली आर्या के हृदय में स्कन्दकमुनि के समान विचार उत्पन्न हुआ - " जब तक मेरे इस शरीर में उत्थान, कर्म, बल, वीर्य और पुरुषकार - पराक्रम है, मन में श्रद्धा, धैर्य एवं वैराग्य है तब तक मेरे लिये उचित है कि कल सूर्योदय होने के पश्चात् आर्या चंदना से पूछकर, उनकी आज्ञा प्राप्त होने पर, संलेखना झूषणा का सेवन करती हुई भक्तपान का त्याग करके मृत्यु के प्रति निष्काम हो कर विचरण करूँ ।" ऐसा सोचकर वह अगले दिन सूर्योदय होते ही जहाँ आर्या चंदना थी वहाँ आई वंदना - नमस्कार कर इस प्रकार बोली- “हे आर्ये ! आपकी आज्ञा हो तो मैं संलेखना झूषणा करती हुई विचरना चाहती हूँ । “हे देवानुप्रिये ! जैसे तुम्हें सुख हो, वैसा करो । सत्कार्य में विलम्ब न करो ।” तब आर्या चन्दना की आज्ञा पाकर काली आर्या संलेखना झूषणा ग्रहण करके यावत् विचरने लगी ।
काली आर्या ने सामायिक से लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और पूरे आठ वर्ष तक चारित्रधर्म का पालन करके एक मास की संलेखना से आत्मा को झूषित कर साठ भक्त का अनशन पूर्ण कर, जिस हेतु से संयम ग्रहण किया था यावत् उसको अन्तिम श्वासोच्छ्वास तक पूर्ण किया और सिद्ध बुद्ध और मुक्त हो गई ।
वर्ग - ८ अध्ययन - २
[५१] उस काल और उस समय में चंपा नाम की नगरी थी । पूर्णभद्र चैत्य था कोणिक राजा था । श्रेणिक राजा की रानी और कोणिक राजा की छोटी माता सुकाली नाम की रानी थी । काली की तरह सुकाली भी प्रव्रजित हुई और बहुत से उपवास आदि तपों से आत्मा को भावित करती हुई विचरने लगी । फिर वह सुकाली आर्या अन्यदा किसी दिन आर्य-चन्दना आर्या के पास आकर इस प्रकार बोली- "हे आर्ये ! आपकी आज्ञा हो तो मैं कनकावली तप अंगीकार करके विचरना चाहती हूँ ।" आर्या चन्दना की आज्ञा पाकर रत्नावली के समान सुकाली ने कनकावली तप का आराधन किया । विशेषता इसमें यह थी कि तीनों स्थानों पर अष्टम-तेले किये जब कि रत्नावली में षष्ठ-बेले किये जाते हैं । एक परिपाटी में एक वर्ष, पाँच मास और बारह अहोरात्रियां लगती हैं । इस एक परिपाटी में ८८ दिन का पारणा और 9 वर्ष, २ मास १४ दिन का तप होता है । चारों परिपाटी का काल पांच वर्ष, नव मास और अठारह दिन होते हैं । शेष वर्णन काली आर्या के समान है । नव वर्ष तक चारित्र का पालन कर यावत् सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गई ।
वर्ग -८ अध्ययन- ३
[५२] काली की तरह महाकाली ने भी दीक्षा अंगीकार की । विशेष यह कि उसने
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