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विशिष्ट रचनाओं से युक्त दिव्य नाट्यविधि का अभिनय प्रदर्शित किया ।
तत्पश्चात् उन देवकुमारों और देवकुमारियों ने उक्त क्रम से चन्द्रोद्गमप्रविभक्ति, सूर्याद्गमप्रविभक्ति युक्त दिव्य नाट्यविधि को दिखाया । इसके अनन्तर उन्होंने चन्द्रागमन, सूर्यागमन की रचना वाली दिव्य नाट्यविधि का अभिनय किया । तत्पश्चात् चन्द्रावरण, सूर्यावरण, आवरणावरण नामक दिव्य नाट्यविधि को प्रदर्शित किया ।
इसके बाद चन्द्र के अस्त होने, सूर्य के अस्त होने की रचना से युक्त अस्तमयनप्रविभक्ति नामक नाट्यविधि का अभिनय किया । तदनन्तर चन्द्रमण्डल, सूर्यमण्डल, नागमण्डल, यक्षमण्डल, भूतमण्डल, राक्षसमण्डल, महोरगमण्डल और गन्धर्वमण्डल की रचना से युक्त मण्डलप्रविभक्ति नामक नाट्य अभिनय प्रदर्शित किया । तत्पश्चात् वृषभमण्डल, सिंहमण्डल की ललित गति अश्व गति, और गज की विलम्बित गति, अश्व और हस्ती की विलसित गति, मत्त अश्व और मत्त गज की विलसित गति, मत्त अश्व की विलम्बित गति, मत्त हस्ती की विलम्बित गति से युक्त द्रुतविलम्बित प्रविभक्ति नामक दिव्य नाट्यविधि का का प्रदर्शन किया ।
आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
इसके बाद सागर प्रविभक्ति, नगर प्रविभक्ति से युक्त सागर - नागर- प्रविभक्ति नामक अपूर्व नाट्यविधि का अभिनय दिखाया । तत्पश्चात् नन्दाप्रविभक्ति, चम्पा प्रविभक्ति, नन्दा - चम्पाप्रविभक्ति नामक दिव्यनाट्य का अभिनय दिखाया । तत्पश्चात् मत्स्याण्डक, मकराण्डक, जार, मार, की आकृतियों की सुरचना से युक्त मत्स्याण्ड - मकराण्ड - जार-मार प्रविभक्ति नामक दिव्यनाट्यविधि दिखलाई ।
तदनन्तर उन देवकुमारों और देवकुमारियों ने क्रमशः ककारप्रविभक्ति, खकार, गकार, धकार और ङकारप्रविभक्ति, इस प्रकार के वर्ग प्रविभक्ति नाम की दिव्य नाट्यविधियों का प्रदर्शन किया । इसी तरह से चकार - छकार-जकार- झकार - ञकार की रचना करके चकारवर्गप्रविभक्ति नामक दिव्य नाट्यविधि का अभिनय दिखाया । पश्चात् क्रमशः ट-ठ-डढ-ण के आकार की सुरचना द्वारा टकारवर्ग-प्रविभक्ति नामक नाट्यविधि का प्रदर्शन किया । टकारवर्ग के अनन्तर तकार-थकार- दकार-धकार - नकार- की रचना करके तकार-वर्गप्रविभक्ति नामक नाट्यविधि को, दिखलाया । तकारवर्ग के अनन्तर प, फ, ब, भ, म, के आकार की रचना करके पकारवर्ग-प्रविभक्ति नाम की दिव्य नाट्यविधि का अभिनय दिखाया ।
तत्पश्चात् अशोकपल्लव आम्रपल्लव, जम्बू पल्लव, कोशाम्रपल्लव पल्लवप्रविभक्ति नामक दिव्य नाट्यविधि प्रदर्शित की । तदनन्तर पद्मलता यावत् श्यामलता प्रविभक्ति नामक नाट्याभिनय प्रदर्शित किया । इसके पश्चात् द्रुत, विलंबित, द्रुतविलंबित, अंचित, रिभित, अंचितरिभित, आरभट, भसोल और आरभटभसोल नामक नाट्यविधि प्रदर्शित की । तदनन्तर उत्पात निपात, संकुचित-प्रसारित भय और हर्षवश शरीर के अंगोपांगों को सिकोड़ना और फैलाना, भ्रान्त और संभ्रान्त सम्बन्धी क्रियाओं विषयक दिव्य नाट्य-अभिनय दिखाया । तदनन्तर वे देवकुमार और देवकुमारियाँ एक साथ एक स्थान पर एकत्रित हुए यावत् दिव्य देवरमत में प्रवृत्त हो गये । तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर के पूर्व भवों संबंधी चरित्र से निबद्ध एवं वर्तमान जीवन संबंधी, च्यवनचरित्रनिबद्ध, गर्भसंहरणचरित्रनिबद्ध, जन्मचरित्रनिबद्ध, जन्माभिषेक, बालक्रीड़ानिबद्ध, यौवन-चरित्रनिबद्ध, अभिनिष्क्रमण-निबद्ध, तपश्चरण निबद्ध, ज्ञानोत्पाद चरित्र-निबद्ध, तीर्थ- प्रवर्तन चरित्र से सम्बन्धित, परिनिर्वाण चरित्रनिबद्ध तथा चरम चरित्र निबद्ध नामक अंतिम दिव्य नाट्य-अभिनय का प्रदर्शन किया ।