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राजप्रश्नीय-२४
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नर्तकों के पादक्षेप से बराबर मेल खाता था । वीणा के लय के अनुरूप था । वीणा आदि वाद्य धुनों का अनुकरण करने वाला था । कोयल की कुहू कुहू जैसा मधुर तथा सर्व प्रकार से सम, सललित मनोहर, मृदु, रिभित पदसंचार युक्त, श्रोताओं को रतिकर, सुखान्त ऐसा उन नर्तकों का नृत्यसज्ज विशिष्ट प्रकार का उत्तमोत्तम संगीत था ।
मधुर संगीत-गान के साथ-साथ नृत्य करने वाले देवकुमार और कुमारिकाओं में से शंख, श्रृंग, शंखिका, खरमुखी, पेया पिरिपिरका के वादक उन्हें उद्धमानित करते, पणव और पटह पर आघात करते, भंभा और होरंभ पर टंकार मारते, भेरी झल्लरी और दुन्दुभि को ताड़ित करते, मुरज, मृदंग और नन्दीमृदंग का आलाप लेते, आलिंग कुस्तुम्ब, गोमुखी और मादल पर उत्ताडन करते, वीणा विपंची और वल्लकी को मूर्च्छित करते, महती वीणा कच्छपीवीणा और चित्रवीणा को कूटते, बद्धीस, सुघोषा, नन्दीघोष का सारण करते, भ्रामरी-षड् भ्रामरी और परिवादनी वीणा का स्फोटन करते, तूण, तुम्बवीणा का स्पर्श करते, आमोट झांझ कुम्भ और नकुल को खनखनाते, मृदंग-हडुक्क-विचिक्की को धीमे से छूते, करड़ डिंडिम किणित और कडम्ब को बजाते, दर्दरक, दर्दरिका कुस्तुंबुरु, कलशिका मड्ड को जोर-जोर से ताडित करते, तल, ताल कांस्यताल को धीरे से ताडित करते, रिंगिरिसका लत्तिका, मकरिका और शिशुमारिका का घट्टन करते तथा वंशी, वेणु वाली परिल्ली तथा बद्धकों को फूंकते थे । इस प्रकार वे सभी अपने-अपने वाद्यों को बजा रहे थे ।
इस प्रकार का वह वाद्य सहजरित दिव्य संगीत दिव्य वादन और दिव्य नृत्य आश्चर्यकारी होने से अद्भुत, श्रृंगारसोपेत होने से श्रृंगाररूप, परिपूर्ण गुण-युक्त होने से उदार, दर्शकों के मनोनुकूल होने से मनोज्ञ था कि जिससे वह मनमोहक गीत, मनोहर नृत्य और मनोहर वाद्यवादन सभी के चित्त का आक्षेपक था । दर्शकों के कहकहों के कोलाहल से नाट्यशाला को गुंजा रहा था । इस प्रकार से वे देवकुमार और कुमारिकायें दिव्य देवक्रीड़ा में प्रवृत्त हो रहे थे । तत्पश्चात् उस दिव्य नृत्य क्रीड़ा में प्रवृत्त उन देवकुमारों और कुमारिकाओं ने श्रमण भगवान् महावीर एवं गौतमादि श्रमण निर्ग्रन्थों के समक्ष स्वस्तिक, श्रीवत्स, नन्दावर्त, वर्धमानक, भद्रासन, कलश, मत्स्य और दर्पण, इन आठ मंगल द्रव्यों का आकार रूप दिव्य नाट्य दिखलाया ।
___ तत्पश्चात् दूसरी नाट्यविधि दिखाने के लिए वे देवकुमार और देवकुमारियां एकत्रित हुई और दिव्य देवरमण में प्रवृत्त होने पर्यन्त की पूर्वोक्त समस्त वक्तव्यता का वर्णन करना । तदनन्तर उन देवकुमारों और देवकुमारियों ने श्रमण भगवान् महावीर के सामने आवर्त, प्रत्यावर्त, श्रेणि, प्रश्रेणि, स्वस्तिक, सौवस्तिक, पुष्प, माणवक, वर्धमानक, मत्स्यादण्ड, मकराण्डक, जार, मार, पुष्पावलि, पद्मपत्र, सागरतरंग, वासन्तीलता और पद्मलता के आकार की रचनारूप दिव्य नाट्यविधि का अभिनय करके बतलाया । इसी प्रकार से उन देवकुमारों और देवकुमारियों के एक साथ मिलने से लेकर दिव्य देवक्रीड़ा में प्रवृत्त होने तक की समस्त वक्तव्यता पूर्ववत् ।
। तदनन्तर उन सभी देवकुमारों और देवकुमारियों ने श्रमण भगवान् के समक्ष ईहामृग, वृषभ, तुरग, नर, मगर, विहग, व्याल, किन्नर, रुरु, सरभ, चमर, कुंजर, वनलता और पद्मलता की आकृति-रचना-रूप दिव्य नाट्यविधि का अभिनय दिखाया । इसके बाद उन देवकुमारों
और देवकुमारियों ने एकतोवक्र, एकतश्चक्रवाल, द्विघातश्चक्रवाल ऐसी चक्रार्ध-चक्रवाल नामक दिव्य नाट्यविधि का अभिनय दिखाया । इसी प्रकार अनुक्रम से उन्होंने चन्द्रावलि, सूर्यावलि, वलयावलि, हंसावलि, एकावलि, तारावलि, मुक्तावलि, कनकावलि और रत्नावलि की प्रकृष्ट