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________________ २१२ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद मत्स्यांड, मकराण्ड जार, मार आदि शुभलक्षणों और कृष्ण, नील, लाल, पीले और श्वेत इन पांच वर्णों की मणियों से उपशोभित था और उनमें कितनी ही मणियों में पुष्पलताओं, कमलपत्रों, समुद्रतरंगों, वसंतलताओं, पद्मलताओं आदि के चित्राम बने हुए थे तथा वे सभी मणियां निर्मल, चमकदार किरणों वाली उद्योत-शीतल प्रकाशवाली थी। उन मणियों में कृष्णवर्णवाली मणियां क्या सचमुच में सघन मेघ घटाओं, अंजनसुरमा, खंजन काजल, काली स्याही, काली स्याही की गोली, भैंसे के सींग की गोली, भ्रमर, भ्रमर पंक्ति, भ्रमर पंख, जामुन, कच्चे अरीठे के बीज अथवा कौए के बच्चे कोयल, हाथी, हाथी के बच्चे, कृष्ण सर्प, कृषण बकुल शरद ऋतु के मेघरहित आकाश, कृष्ण अशोक वृक्ष, कृष्ण कनेर, कृष्ण बंधुजीवक जैसी काली थीं? हे आयुष्मन् श्रमणो ! यह अर्थ समर्थ नहीं हैवे काली मणियां तो इन सभी उपमाओं से भी अधिक इष्टतर कांततर मनोज्ञतर और अतीव मनोहर कृष्ण वर्ण वाली थीं। उनमें की नील वर्ण की मणियाँ क्या भंगकीट, ग के पंख, शुक, शुकपंख, चाष पक्षी, चाष पंख, नील, नील के अंदर का भाग, नील गुटिका, सांवा, उच्चन्तक, वनराजि, बलदेव के पहनने के वस्त्र, मोर की गर्दन, कबूतर की गर्दन, अलसी के फूल, बाणपुष्प, अंजनकेशी के फल, नीलकमल, नीले अशोक, नीले कनेर. और नीले बंधजीवक जैसी नीली थीं? यह अर्थ समर्थ नहीं है । वे नीली मणियां तो इन उपमेय पदार्थों से भी अधिक इष्टतर यावत् अतीव मनोहर नील वर्ण वाली थीं । उन मणियों में लोहित रंग की मणियों का रंग सचमुच में क्या शशक के खून, भेड़ के रक्त, सुअर के रक्त, मनुष्य के रक्त, भैंस के रक्त, बाल इन्द्रगोप, प्रातः कालीन सूर्य, संध्या राग, गुंजाफल के आधे भाग, जपापुष्प, किंशुक पुष्प, परिजातकुसुम, शुद्ध हिंगलुक, प्रवाल, प्रवाल के अंकुर, लोहिताक्ष मणि, लाख के रंग, कृमिराग से रंगे कंबल, चीणा के आटे, लाल कमल, लाल अशोक, लाल कनेर अथवा रक्त बंधुजीवक जैसा लाल था ? ये बोध समर्थ नहीं हैं | वे मणियां तो इनसे भी अधिक इष्ट यावत् अत्यन्त मनोहर रक्त वर्ण की थीं । उन मणियों में पीले रंग की मणियों का पीतरंग क्या सचमुच में स्वर्ण चंपा, स्वर्ण चंपा की छाल, स्वर्ण चंपा के अंदर का भाग, हल्दी-हल्दी के अंदर का भाग, हल्दी की गोली हरताल, हरताल के अंदर का भाग, हरताल की गोली, चिकुर, चिकुर के रंग से रंगे वस्त्र, शुद्ध स्वर्ण की कसौटी पर खींची गई रेखा, वासुदेव के वस्त्रों, अल्लकी के फूल, चंपाकुसुम, कूष्मांड के फूल, कोरंटक पुष्प की माला, तडवडा के फूल घोषातिकी पुष्प, सुवर्णयूथिका, सुहिरण्य के फूल, बीजक फूल, पीले अशोक, पीली कनेर अथवा पीले बंधुजीवक जैसा पीला था ? आयुष्यमन् श्रमणो ! ये अर्थ समर्थ नहीं हैं । वे पीली मणियां तो इन से भी इष्टतर यावत् पीले वर्ण वाली थीं । हे भगवन् ! उन मणियों में जो श्वेत वर्ण की मणियाँ थीं क्या वे अंक रत्न, शंख, चन्द्रमा, कुमुद, शुद्ध जल, ओस बिन्दु, दही, दूध, दूध के फेन, क्रोंच पक्षी की पक्ति, मोतियों के हार, हंस पंक्ति, बलाका पंक्ति, चन्द्रमा की पंक्ति, शरद ऋतु के मेघ, अग्नि में तपाकर धोये गये चांदी के पतरे, चावल के आटे, कुन्दपुष्प-समूह, कुमुद पुष्प के समूह, सूखी सिम्बा फली, मयूरपिच्छ का सफेद मध्य भाग, विस-मृणाल, मृणालिका, हाथी के दाँत, लोंग के फूल, पुंडरीककमल, श्वेत अशोक, श्वेत कनेर अथवा श्वेत बंधुजीवक जैसी श्वेत वर्ण की थी ? आयुष्मन् श्रमणो ! ऐसा नहीं है । वे श्वेत माणियां तो इनसे भी अधिक इष्टतर, यावत् सरस,
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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