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________________ २०२ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद विस्तीर्ण कर कपाटाकार करते हैं। तीसरे समय में केवली उन्हें विस्तीर्ण कर मन्थानाकार करते हैं । चौथे समय केवली लोकशिखर सहित इनके अन्तराल की पूर्ति हेतु आत्मप्रदेशों को विस्तीर्ण करते हैं । पांचवें समय में अन्तराल स्थित आत्मप्रदेशों को प्रतिसंहत करते हैं । छठे समय में मथानी के आकार में अवस्थित आत्मप्रदेशों को, सातवें समय में कपाट के आकार में स्थित आत्मप्रदेशों को और आठवें समय में दण्ड के आकार में स्थित आत्मप्रदेशों को प्रतिसंहृत करते हैं । तत्पश्चात् वे (पूर्ववत् ) शरीरस्थ हो जाते हैं । भगवन् ! समुद्घातगत केवली क्या मनोयोग का, वचन - योग का, क्या काय योग का प्रयोग करते हैं ? गौतम ! वे मनोयोग का प्रयोग नहीं करते । वचन- योग का प्रयोग नहीं करते । वे काय-योग का प्रयोग करते हैं । भगवन् ! काय योग को प्रयुक्त करते हुए क्या वे औदारिक- शरीर- काय - योग का प्रयोग करते हैं ? क्या औदारिक- मिश्र - औदारिक और कार्मण- दोनों शरीरों से क्रिया करते हैं ? क्या वैक्रिय शरीर से क्रिया करते हैं ? क्या वैक्रिय - मिश्र - कार्मण - मिश्रित या औदारिक- मिश्रित वैक्रिय शरीर से क्रिया करते हैं ? क्या आहारक शरीर से क्रिया करते हैं ? क्या आहारक-मिश्रऔदारिक- मिश्रित आहारक शरीर से क्रिया करता है ? क्या कार्मण शरीर से क्रिया करते हैं ? अर्थात् सात प्रकार के काययोग में से किस काययोग का प्रयोग करते हैं ? गौतम ! वे औदारिक- शरीर-काय - योग का प्रयोग करते हैं, औदारिक- मिश्र शरीर से भी क्रिया करते हैं । वैक्रिय शरीर से क्रिया नहीं करते । वैक्रिय - मिश्र शरीर से क्रिया नहीं करते । आहारक शरीर से क्रिया नहीं करते । आहारक - मिश्र शरीर से भी क्रिया नहीं करते । पर औदारिक तथा औदारिक- मिश्र के साथ-साथ कार्मण- शरीर- काय योग का भी प्रयोग करते हैं । पहले और आठवें समय में वे औदारिक शरीर- काययोग का प्रयोग करते हैं । दूसरे, छठे और सातवें समय में वे औदारिक मिश्र शरीर- काययोग का प्रयोग करते हैं । तीसरे, चौथे और पाँचवें समय में वे कार्मण शरीर- काययोग का प्रयोग करते हैं । भगवन् ! क्या समुद्घातगत कोई सिद्ध होते हैं ? बुद्ध होते हैं ? मुक्त होते हैं ? परिनिर्वृत होते हैं ? सब दुःखों का अन्त करते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता । वे उससे वापस लौटते हैं । लौटकर अपने ऐहिक शरीर में आते हैं । तत्पश्चात् मनोयोग, वचनयोग तथा योग का भी प्रयोग करते हैं-भगवन् ! मनोयोग का उपयोग करते हुए क्या सत्य मनोयोग का उपयोग करते हैं ? क्या मृषा मनोयोग का उपयोग करते हैं ? क्या सत्य- मृषा मनोयोग का उपयोग करते हैं ? क्या अ-सत्य-अ-मृषा व्यवहार- मनोयोग का उपयोग करते हैं ? गौतम ! वे सत्य मनोयोग का उपयोग करते हैं । असत्य मनोयोग का उपयोग नहीं करते । सत्य-असत्य - मिश्रित मनोयोग का उपयोग नहीं करते । किन्तु अ - सत्य-अमृषा-मनोयोगव्यवहार मनोयोग का वे उपयोग करते हैं । भगवन् ! वाक्योग को प्रयुक्त करते हुए क्या सत्य वाक्-योग को प्रयुक्त करते हैं । मृषावाक्-योग को प्रयुक्त करते हैं ? सत्य - मृषा वाक् योग को प्रयुक्त करते हैं ? क्या असत्यअमृषावाक्-योग को प्रयुक्त करते हैं ? गौतम ! वे सत्य - वाक्-योग को प्रयुक्त करते हैं । मृषावाक्-योग को प्रयुक्त नहीं करते । न वे सत्य - मृषा - वाक्-योग को ही प्रयुक्त करते हैं । वे असत्य-अमृषा-वाक्-योग-व्यवहार-वचन - योग को भी प्रयुक्त करते हैं । वे काययोग को प्रवृत्त करते हुए आगमन करते हैं, स्थित होते हैं- बैठते हैं, लेटते हैं, उल्लंघन करते हैं, प्रलंघन करते हैं, उत्क्षेपण करते हैं, अवक्षेपण करते हैं तथा तिर्यक् क्षेपण करते हैं । अथवा ऊँची, नीची और तिरछी गति करते हैं । काम में ले लेने के बाद प्रातिहारिक आदि लौटाते हैं ।
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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