SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १९६ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद निर्ग्रन्थों को प्रतिलाभित करता हुआ आत्मभावित है । जिसके घर के किवाड़ों में आगल नहीं लगी रहती हो, अपावृतद्वार, त्यक्तान्तःपुर गृह द्वार प्रवेश, ये तिन विशेषता थी । अम्ब परिव्राजक ने जीवन भर के लिए स्थूल प्राणातिपात, स्थूल मृषावाद, स्थूल अदत्तादान, स्थूल परिग्रह तथा सभी प्रकार के अब्रह्मचर्य का प्रत्याख्यान है। अम्बड परिव्राजक को मार्गगमन के अतिरिक्त गाड़ी की धुरी प्रमाण जल में भी शीघ्रता से उतरना नहीं कल्पता । गाड़ी आदि पर सवार होना नहीं कल्पता । यहाँ से लेकर गंगा की मिट्टी के लेप तक का समग्र वर्णन पूर्ववत् जानना । अम्बड परिव्राजक को आधार्मिक तथा औशिक - भोजन, मिश्रजात, अध्यवपूर, पूतिकर्म, क्रीतकृत, प्रामित्य, अनिसृष्ट, अभ्याहत, स्थापित, अपने लिए संस्कारित भोजन, कान्तारभक्त, दुर्भिक्षभक्त, ग्लानभक्त, वार्दलिकभक्त, प्राधूर्णक - भक्त, अम्बड परिव्राजक को खाना-पीना नहीं कल्पता । इसी प्रकार अम्बड परिव्राजक को मूल, (कन्द, फल, हरे तृण) बीजमय भोजन खाना-पीना नहीं कल्पता । अम्बड परिव्राजक ने चार प्रकार के अनर्थदण्ड - परित्याग किया । वे इस प्रकार हैं१. अपध्यानाचरित, २. प्रमादाचरित, ३. हिस्रप्रदान, ४. पापकर्मोपदेश । अम्बड को मागधमान के अनुसार आधा आढक जल लेना कल्पता है । वह भी प्रवहमान हो, अप्रवहमान नहीं । वह परिपूत हो तो कल्प्य, अनछाना नहीं । वह भी सावध, निरवद्य समझकर नहीं । सावद्य भी वह उसे सजीव, अजीव समझकर नहीं । वैसा जल भी दिया हुआ ही कल्पता है, न दिया हुआ नहीं । वह भी हाथ, पैर, चरु, चमच धोने के लिए या पौने के लिए ही कल्पता है, नहाने के लिए नहीं । अम्बड को मागधमान अनुसार एक आढक पानी लेना कल्पता है । वह भी बहता हुआ, यावत् दिया हुआ ही कल्पता है, बिना दिया नहीं । वह भी स्नान के लिए कल्पता है, हाथ, पैर, चरु, चमच, धोने के लिए या पीने के लिए नहीं । अर्हत्या अर्हत्- चैत्यों (जिनालय) अतिरिक्त अम्बड को अन्ययूथिक, उनके देव, उन द्वारा परिगृहीत चैत्य - उन्हें वन्दन करना, नमस्कार करना, उनकी पर्युपासना करना नहीं कल्पता । भगवन् ! अम्बड परिव्राजक मृत्युकाल आने पर देह त्याग कर कहाँ जायेगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! अम्बड परिव्राजक उच्चावच शीलव्रत, गुणव्रत, विरमण, प्रत्याख्यान एवं पोषधोपवास द्वारा आत्मभावित होता हुआ बहुत वर्षों तक श्रमणोपासक पर्याय का पालन करेगा । वैसा कर एक मास की संलेखना और एक मास का अनशन सम्पन्न कर, आलोचना, प्रतिक्रमण कर, मृत्यु-काल आने पर वह समाधिपूर्वक देह त्याग करेगा । वह ब्रह्मलोक कल्प में देवरूप में उत्पन्न होगा । वहाँ अनेक देवों की आयु-स्थिति दश सागरोपम - प्रमाण बतलाई गई । अम्बड देव का भी आयुष्य दश सागरोपम- प्रमाण होगा । भगवन् ! अम्बड् देव अपना आयु-क्षय, भव-क्षय, स्थिति-क्षय होने पर उस देवलोक से च्यवन कर कहाँ जायेगा ? कहाँ उत्पन्न होगा ? गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में ऐसे जो कुल हैं यथा - धनाढ्य, दीप्त, प्रभावशाली, सम्पन्न, भवन, शयन, आसन, यान, वाहन, विपुल साधन-सामग्री तथा सोना, चाँदी, सिक्के आदि प्रचुर धन के स्वामी होते हैं । वे आयोग - प्रयोग-संप्रवृत्त नीतिपूर्वक द्रव्य के उपार्जन में संलग्न होते हैं । उनके यहाँ भोजन कर चुकने के बाद भी खाने-पीने के बहुत पदार्थ बचते हैं । उनके घरों में बहुत से नौकर, नौकरानियाँ, गायें, भैंसे, बैल, पाड़े, भेड़-बकरियाँ आदि होते हैं । वे लोगों द्वारा अपरिभूत होते हैं । अम्बड ऐसे कुलों में से किसी एक में पुरुषरूप उत्पन्न होगा। अम्बड शिशु के रूप में जब गर्भ में आयेगा, तब माता-पिता की धर्म में आस्था दृढ़ होगी। नौ महीने साढ़े सात दिन व्यतीत होने पर बच्चे का जन्म होगा । उसके हाथ-पैर
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy