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औपपातिक-४४
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दी जाती है, जो खार के बर्तन में डाल दिये जाते हैं, जो-गीले चमड़े से बाँध दिये जाते हैं, जिनके जननेन्द्रिय काट दिये जाते हैं, जो दवाग्नि में जल जाते हैं, कीचड़ में डूब जाते हैं ।
संयम से भ्रष्ट होकर या भूख आदि से पीड़ित होकर मरते हैं, जो विषय-परतन्त्रता से पीड़ित या दुःखित होकर मरते हैं, जो सांसारिक इच्छा पूर्ति के संकल्प के साथ अज्ञानमय तपपूर्वक मरते हैं, जो अन्तःशल्य को निकाले बिना या भाले आदि से अपने आपको बेधकर मरते हैं, जो पर्वत से गिरकर मरते हैं, जो वृक्ष से गिरकर, मरुस्थल या निर्जल प्रदेश में, जो पर्वत से झंपापात कर, वृक्ष से छलांग लगा कर, मरुभूमि की बालू में गिरकर, जल में प्रवेश कर, अग्नि में प्रवेश कर, जहर खाकर, शस्त्रों से अपनेको विदीर्ण कर और वृक्ष की डाली आदि से लटककर फाँसी लगाकर मरते हैं, जो मरे हुए मनुष्य, हाथी, ऊँट, गधे आदि की देह में प्रविष्ट होकर गीधों की चाचों से विदारित होकर मरते हैं, जो जंगल में खोकर मर जाते हैं, दुर्भिक्ष में भूख, प्यास आदि से मर जाते हैं, यदि उनके परिणाम संक्लिष्ट हों तो उस प्रकार मृत्यु प्राप्त कर वे वानव्यन्तर देवलोकों में से किसी में देवरूप में उत्पन्न होते हैं । वहाँ उस लोक के अनुरूप उनकी गति, स्थिति तथा उत्पत्ति होती है, ऐसा बतलाया गया है । भगवन् ! उन देवों की वहाँ कितनी स्थिति होती है ? गौतम ! वहाँ उनकी स्थिति बारह हजार वर्ष की होती है । भगवन् ! उन देवों के वहाँ वृद्धि, द्युति, यश, बल, वीर्य तथा पुरुषकार-पराक्रम होता है या नहीं ? गौतम ! होता है । भगवन् ! क्या वे देव परलोक के आराधक होते हैं ? गौतम ! ऐसा नहीं होता ।
. (वे) जो जीव ग्राम, आकर यावत् सन्निवेश में मनुष्यरूप में उत्पन्न होते हैं, जो प्रकृतिभद्र, शान्त, स्वभावतः क्रोध, मान, माया एवं लोभ की प्रतनुता लिये हुए, मृदु मार्दवसम्पन्न, स्वभावयुक्त, आलीन, आज्ञापालक, विनीत, माता-पिता की सेवा करने वाले, माता-पिता के वचनों का अतिक्रमण नहीं करनेवाले, अल्पेच्छा, आवश्यकताएँ रखनेवाले, अल्पारंभ, अल्पपरिग्रह, अल्पारंभ-अल्पसमारंभ बहुत वर्षों का आयुष्य भोगते हुए, आयुष्य पूरा कर, मृत्यु-काल आने पर देह-त्याग कर वानव्यवन्तर देवलोकों में से किसी में देवरूप में उत्पन्न होते हैं । अवशेष वर्णन पिछले सूत्र के सदृश है । केवल इतना अन्तर है-इनकी स्थितिआयुष्यपरिमाण चौदह हजार वर्ष का होता है ।
जो ग्राम, सन्निवेश आदि में स्त्रियाँ होती हैं, जो अन्तःपुर के अन्दर निवास करती हों, जिनके पति परदेश गये हों, जिनके पति मर गये हों, बाल्यावस्था में ही विधवा हो गई हों, जो पतियों द्वारा परित्यक्त कर दी गई हों, जो मातृरक्षिता हों, जो पिता द्वारा रक्षित हों, जो भाइयों द्वारा रक्षित हों, जो कुलगृह द्वारा रक्षित हों, जो श्वसुर-कुल द्वारा रक्षित हों, जो पति या पिता आदि के मित्रों, अपने हितैषियों मामा, नाना आदि सम्बन्धियों, अपने सगोत्रीय देवर, जेठ आदि पारिवारिक जनों द्वारा रक्षित हों, विशेष संस्कार के अभाव में जिनके नख, केश, कांख के बाल बढ़ गये हों, जो धूप, पुष्प, सुगन्धित पदार्थ, मालाएँ धारण नहीं करती हों, जो अस्नान, स्वेद जल्ल, मल्ल, पंक पारितापित हों, जो दूध दही मक्खन धृत तैल गुड़ नमक मधु मद्य और मांस रहित आहार करती हों, जिनकी इच्छाएं बहुत कम हों, जिनके धन, धान्य आदि परिग्रह बहुत कम हो, जो अल्प आरम्भ समारंभ द्वारा अपनी जीविका चलाती हों, अकाम ब्रह्मचर्य का पालन करती हों, पति-शय्या का अतिक्रमण नहीं करतो हों-इस प्रकार के आचरण द्वारा जीवनयापन करती हों, वे बहुत वर्षों का आयुष्य भोगते हुए, आयुष्य पूरा कर, मृत्यु काल आने पर देह-त्याग कर वानव्यन्तर देवलोकों में से किसी में देवरूप में उत्पन्न