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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
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धारिणी नाम की रानी थी । कभी वह धारिणी रानी अन्यत्र वर्णित उत्तम शय्या पर शयन कर रही थी, जिसका वर्णन महाबल समान समझलेना चाहिये । तत्पश्चात्
[४] स्वप्न-दर्शन, पुत्रजन्म, उसकी बाल-लीला, कलाज्ञान, यौवन, पाणिग्रहण, रम्य प्रासाद एवं भोगादि-(यह सब वर्णन महाबल जैसा ही समझना) ।
[५] विशेष यह कि उस बालक का नाम गौतम रखा गया, उसका एक ही दिन में आठ श्रेष्ठ राजकुमारियों के साथ पाणिग्रहण करवाया गया तथा दहेज में आठ-आठ प्रकार की वस्तुएं दी गई । उस काल तथा उस समय श्रुत-धर्म का आरंभ करने वाले, धर्म के प्रवर्तक अरिष्टनेमि भगवान् यावत् विचरण कर रहे थे । चार प्रकार के देव उपस्थित हुए । कृष्ण वासुदेव भी वहाँ आये । तदनन्तर उनके दर्शन करने को गौतम कुमार भी तैयार हुए । मेघ कुमार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास गये थे वैसे गौतम कुमार भी भगवान् अरिष्टनेमि से धर्मश्रवण किया । विशेष यह कि मैं अपने मातापिता से पूछकर आपके पास दीक्षा ग्रहण करूंगा । जिस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के पास मेघ कुमार दीक्षित हुए थे यावत् उसी प्रकार गौतम कुमार ने भी पंचमुष्टिक लोच किया । गौतम निर्ग्रन्थ-प्रवचन को सन्मुख रखकर भगवान् की आज्ञाओं का पालन करते हुए विचरने लगे ।
इसके पश्चात् गौतम अनगार ने अन्यदा किसी समय भगवान् अरिष्टनेमि के सान्निध्य में रहने वाले आचार, विचार की उच्चता को पूर्णतया प्राप्त स्थविरों के पास सामायिक से लेकर आचारांगादि ११ अंगों का अध्ययन किया यावत आत्मा को भावित करते हुए विचरने लगे। अरिहंत भगवान् अरिष्टनेमि ने अब द्वारका नगरी के नन्दनवन से विहार कर दिया और वे अन्य जनपदों में विचरण करने लगे । गौतम मुनि अवसर पाकर भगवान् अरिष्टनेमि की सेवा में उपस्थित हुए । विधिपूर्वक वंदना, नमस्कार करने के अनन्तर उन्होंने भगवान् से निवेदन किया-"भगवन् ! मेरी इच्छा है यदि आप आज्ञा दें तो मैं मासिकी भिक्षु-प्रतिमा की आराधना करूँ ।" भगवान् से आज्ञा पाकर वे साधना में लीन हो गए । स्कन्धक मुनि के समान मुनि गौतमने भी बारह भिक्षुप्रतिमाओं का आराधन करके गुणरत्न नामक तप का भी वैसे ही आराधन किया, चिंतन किया, भगवान से पूछा तथा स्थविर मुनियों के साथ वैसे ही शत्रुजय पर्वत पर चढ़े । १२ वर्ष की दीक्षा पर्याय पूर्ण कर एक मास की संलेखना द्वारा यावत् सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, सकल कर्मजन्य सन्तापों से रहित एवं सब प्रकार के दुःखों से विमुक्त हो गए ।
[६] “हे जंबू ! भगवान् महावीर ने आठवें अंतगड सूत्र के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययनों का यह अर्थ कहा है । जिस प्रकार गौतम का वर्णन किया गया है, उसी प्रकार समुद्र, सागर, गम्भीर, स्तिमित, अचल, कांपिल्य, अक्षोभ, प्रसेनजित और विष्णु, इन नव अध्ययनों का अर्थ भी समझलेना । सबके पिता अन्धकवृष्णि थे । माता धारिणी थी । सब का वर्णन एक जैसा है । इस प्रकार दस अध्ययनों के समुदाय रूप प्रथम वर्ग का वर्णन किया
गया है ।"
वर्ग-१ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(वर्ग-२) [७] हे जंबू ! श्रमण भगवान् महावीर ने द्वितीय वर्ग के आठ अध्ययन फरमाये हैं ।