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अन्तकृद्दशा - १/-/9
नमो नमो निम्मलदंसणस्स
८| अन्तकृत् - दशा
अंगसूत्र- ८ हिन्दी अनुवाद
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वर्ग - 9
[१] उस काल और उस समय में चंपा नाम की नगरी थी । पूर्णभद्र चैत्य था । उस काल और उस समय में आर्य सुधर्मा स्वामी चंपा नगरी में पधारे । नगर निवासी जन निकले। यावत् वापस लौटे । उस काल और उस समय में आर्य सुधर्मा स्वामी के आर्य जंबू पर्युपासना करते हुए इस प्रकार बोले - "हे भगवन् ! यदि श्रुतधर्म की आदि करने वाले तीर्थंकर, शाश्वत स्थान को प्राप्त श्रमण भगवान् ने सप्तम अंग उपासकदशाङ्ग का यह अर्थ प्रतिपादन किया है, हे भगवन् ! अब यह बतलाओ कि अष्टम अंग अन्तकृद्दशाङ्ग का क्या अर्थ बताया है ?" "जम्बू ! श्रमण भगवान् ने अष्टम अन्तकृद्दशांग के आठ वर्ग प्रतिपादन किए हैं ।” “भगवन् ! यदि श्रमण यावत् मोक्षप्राप्त महावीर स्वामी ने आठवें अंग अन्तकृद्दशा के आठ वर्ग कथन किये हैं, तो भगवन् ! अन्तद्दकृशांग सूत्र के प्रथम वर्ग के कितने अध्ययन प्रतिपादन किये हैं ?” “जंबू ! यावत् मोक्षप्राप्त महावीर स्वामी ने आठवें अंग अन्तकृद्दशा के प्रथम वर्ग के दश अध्ययन कहे हैं । जैसे कि
[२] गौतम, समुद्र, सागर, गंभीर, स्तिमित, अचल, काम्पिल्य, अक्षोभ, प्रसेनजित् और विष्णुकुमार ।
[३] “भगवन् ! यदि श्रमण यावत् मोक्षप्राप्त महावीर ने आठवें अंग अन्तगडसूत्र के प्रथम वर्ग के दश अध्ययन कथन किये हैं तो हे भगवन् ! अन्तगडसूत्र के प्रथम वर्ग के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ प्रतिपादन किया है ?" "जंबू ! उस काल और उस समय में द्वारका नाम की नगरी थी । वह बारह योजन लम्बी, नौ योजन चौडी, वैश्रमण देव कुबेर के कौशल से निर्मित, स्वर्ण - प्राकारों से युक्त, पंचवर्ण के मणियों से जटित कंगूरों से सुशोभित थी और कुबेर की नगरी सदृश थी । प्रमोद और क्रीडा का स्थान थी, साक्षात् देवलोक के समान देखने योग्य, चित्त को प्रसन्न करने वाली, दर्शनीय थी, अभिरूप थी, प्रतिरूप थी । उस द्वारका नगरी
बाहिर ईशान कोण में रैवतक पर्वत था । उस रैवतक पर्वत पर नन्दनवन नाम का उद्यान था ( वर्णन ) । वहाँ सुरप्रिय यक्ष का मंदिर था, वह बहुत प्राचीन था और चारों ओर से वनखंड से घिरा हुआ था । उस वनखंड के मध्य में एक सुन्दर अशोक वृक्ष था ।" उस द्वारका नगरी में कृष्ण वासुदेव राजा राज्य करते थे, वे महान् थे । वे समुद्रविजय प्रमुख दश दशार्ह, बलदेव प्रमुख पाँच महावीर, प्रद्युम्न प्रमुख साढ़े तीन करोड़ राजकुमार, शांब आदि प्रमुख ६० हजार दुर्दान्त कुमार, महासेन प्रमुख १६ हजार राजा, रुक्मिणी आदि १६ हजार रानियां, अनंगसेना आदि हजारों गणिकाएं, तथा और भी अनेकों ऐश्वर्यशाली, यावत् सार्थवाह - इन सब पर तथा द्वारका एवं आधे भारतवर्ष पर आधिपत्य करके यावत् विचरते थे । उस द्वारका नगरी में अन्धकवृष्णि राजा था । वह हिमवान् पर्वत की तरह महान् था । अन्धकवृष्णि राजा की
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