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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
दर्शन - विनय क्या है - दो प्रकार का शुश्रूषा - विनय, अनत्याशातना - विनय । शुश्रूषाविनय क्या है - अनेक प्रकार का है, अभ्युत्थान, आसनानिगह, आसन- प्रदान, गुरुजनों का सत्कार करना, सम्मान करना, यथाविधि वन्दन - प्रणमन करना, कोई बात स्वीकार या अस्वीकार करते समय हाथ जोड़ना, आते हुए गुरुजनों के सामने जाना, बैठे हुए गुरुजनों के समीप बैठना, उनकी सेवा करना, जाते हुए गुरुजनों को पहुँचाने जाना । यह शुश्रूषा - विनय है । अनत्याशातना-विनय क्या है- पैंतालीस भेद हैं । १. अर्हतों की, २. अर्हत्-प्रज्ञप्त धर्म की, ३. आचार्यों की, ४. उपाध्यायों की, ५. स्थविरों, ६. कुल, ७. गण, ८. संघ, ९. क्रियावान् की, १०. सांभोगिक - श्रमण की, ११. मति - ज्ञान की, १२. श्रुत - ज्ञान की, १३. अवधिज्ञान, १४. मनः पर्यव - ज्ञान की तथा १५. केवल - ज्ञान की आशातना नहीं करना । इन पन्द्रह की भक्ति, उपासना, बहुमान, गुणों के प्रति तीव्र भावानुरागरूप पन्द्रह भेद तथा इन की यशस्विता, प्रशस्ति एवं गुणकीर्तन रूप और पन्द्रह भेद-यों अनत्याशातना - विनय के कुल पैंतालीस भेद होते हैं ।
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चारित्रविनय क्या है - पाँच प्रकार का है - सामायिकचारित्र - विनय, छेदोपस्थापनीयचारित्रविनय, परिहारविशुद्धिचारित्र - विनय, सूक्ष्मसंपरायचारित्र - विनय, यथाख्यातचारित्र - विनय । यह चारित्र - विनय है ।
मनोविनय क्या है - दो प्रकार का - १. प्रशस्त मनोविनय, २. अप्रशस्त मनोविनय । अप्रशस्त मनोविनय क्या है ? जो मन सावद्य, सक्रिय, कर्कश, कटुक, निष्ठुर, परुष, सूखा, आस्रवकारी, छेदकर, भेदकर, परितापनकर, उपद्रवणकर, भूतोपघातिक, है, वह अप्रशस्त मन है । वैसी मनःस्थिति लिये रहना अप्रशस्त मनोविनय है । प्रशस्त मनोविनय किसे कहते हैं ? जैसे अप्रशस्त मनोविनय का विवेचन किया गया है, उसी के आधार पर प्रशस्त मनोविनय को समझना चाहिए । अर्थात् प्रशस्त मन, अप्रशस्त मन से विपरीत होता है । वचन - विनय को भी इन्हीं पदों से समझना चाहिए । अर्थात् अप्रशस्त-वचन- विनय तथा प्रशस्त-वचनविनय ।
काय-विनय क्या है ? काय-विनय दो प्रकार का बतलाया गया है- १. प्रशस्त कायविनय, २. अप्रशस्त काय-विनय । अप्रशस्त काय-विनय क्या है-सात भेद हैं, 9. अनायुक्त गमन, २. अनायुक्त स्थान, ३. अनायुक्त निषीदन, ४. अनायुक्त त्वग्वर्तन, ५. अनायुक्त उल्लंघन, ६. अनायुक्त प्रलंघन, ७. अनायुक्त सर्वेन्द्रियकाययोग योजनता यह अप्रशस्त काय - विनय है । प्रशस्त काय-विनय क्या है ? प्रशस्त काय-विनय को अप्रशस्त काय-विनय की तरह समझ लेना चाहिए । यह प्रशस्त काय - विनय है । इस प्रकार यह काय-विनय का विवेचन है ।
लोकोपचार - विनय क्या है - लोकोपचार- विनय के सात भेद हैं :- १. अभ्यासवर्तिता, २. परच्छन्दानुवर्तिता, ३ कार्यहेतु, ४. कृत प्रतिक्रिया, ५. आर्त- गवेषणता, ६. देशकालज्ञता, ७. सर्वार्थाप्रतिलोमता- यह लोकोपचार - विनय है । इस प्रकार यह विनय का विवेचन है । वैयावृत्त्य क्या है-वैयावृत्त्य के दश भेद हैं । १. आचार्य का वैयावृत्त्य, २. उपाध्याय का वैयावृत्त्य, ३. शैक्ष- नवदीक्षित श्रमण का वैयावृत्त्य, ४. ग्लान - रुग्णता आदि से पीडित का वैयावृत्त्य, ५. तपस्वी-तेला आदि तप-निरत का वैयावृत्त्य, ६. स्थविर - वय, श्रुत और दीक्षा - पर्याय में ज्येष्ठ का वैयावृत्त्य, ७. साधर्मिक का वैयावृत्त्य, ८. कुल का वैयावृत्त्य, ९. गण का वैयावृत्त्य, १०. संघ का वैयावृत्त्य ।