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________________ १४८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद - करते हुए समय व्यतीत कर रहे थे । शौरिकदत्त स्वयं भी उन शूलाप्रोत किये हुए, भुने हुए और तले हुए मत्स्यमांसों के साथ विविध प्रकार की सुरा सीधु आदि मदिराओं का सेवन करता हुआ जीवन यापन कर रहा था । तदनन्तर किसी अन्य समय शूल द्वारा पकाये गये, तले गए व भूने गए मत्स्य मांसों का आहार करते समय उस शौरिकदत्त मच्छीमार के गले में मच्छी का कांटा फँस गया । इसके कारण वह महती असाध्य वेदना का अनुभव करने लगा । अत्यन्त दुखी हुए शौरिक ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाकर कहा-'हे देवानुप्रियो ! शौरिकपुर नगर के त्रिकोण मार्गों व यावत् सामान्य मार्गों पर जाकर ऊँचे शब्दों से इस प्रकार घोषणा करो कि हे देवानुप्रियो ! शौरिकदत्त के गले में मत्स्य का कांटा फंस गया है, यदि कोई वैद्य या वैद्यपुत्र जानकार या जानकार का पुत्र, चिकित्सक या चिकित्सक-पुत्र उस मत्स्य-कंटक को निकाल देगा तो, शौरिकदत्त उसे बहुत सा धन देगा ।" कौटुम्बिक पुरुषों-अनुचरों ने उसकी आज्ञानुसार सारे नगर में उद्घोषणा कर दी। उसके बाद बहुत से वैद्य, वैद्यपुत्र आदि उपर्युक्त उद्घोषणा को सुनकर शौरिकदत्त का जहाँ घर था और शौरिक मच्छीमार जहाँ था वहां पर आए, आकर बहुतसी औत्पत्तिकी, वैनयिकी, कार्मिकी तथा पारिणामिकी बुद्धियों से सम्यक् परिणमन करते वमनों, छर्दनों अवपीड़नों कवलग्राहों शल्योद्धारों विशल्य-करणों आदि उपचारों से शौरिकदत्त के गले के कांटों को निकालने का तथा पीव को बन्द करने का बहुत प्रयत्न करते हैं परन्तु उसमें वे. सफल न हो सके । तब श्रान्त, तान्त, परितान्त होकर वापिस अपने अपने स्थान पर चले गये । इस तरह वैद्यों के इलाज से निराश हुआ शौरिकदत उस महती वेदना को भोगता हुआ सूखकर यावत् अस्थिपिञ्जर हो गया । वह दुःखपूर्वक समय बिता रहा है । हे गौतम ! वह शौरिकदत्त अपने पूर्वकृत अत्यन्त अशुभ कर्मों का फल भोग रहा है । अहो भगवन् ! शौरिकदत्त मच्छीमार यहाँ से कालमास में काल करके कहाँ जाएगा? कहाँ उत्पन्न होगा ? हे गौतम ! ७० वर्ष की परम आयु को भोगकर कालमास में काल करके रत्नप्रभा नरक में उत्पन्न होगा । उसका अवशिष्ट संसार-भ्रमण पूर्ववत् ही समझना यावत् पृथ्वीकाय आदि में लाखों बार उत्पन्न होगा । वहाँ से निकलकर हस्तिनापुर में मत्स्य होगा । वहाँ मच्छीमारों के द्वारा वध को प्राप्त होकर वहीं हस्तिनापुर में एक श्रेछिकुल में जन्म लेगा। वहाँ सम्यक्त्व की उसे प्राप्ति होगी । वहाँ से मरकर सौधर्म देवलोक में देव होगा । वहाँ से चय करके महाविदेह क्षेत्र जन्मेगा, चारित्र ग्रहण कर उसके सम्यक् आराधन से सिद्ध पद को प्राप्त करेगा । निक्षेप पूर्ववत् ।। अध्ययन-८ का मुनिदीपरत्नसागर कृत हिन्दी अनुवाद पूर्ण (अध्ययन-९-देवदत्ता ) [३३] 'यदि भगवन् ! यावत् नवम अध्ययन का उत्क्षेप जान लेना चाहिए । जम्बू! उस काल तथा उस समय में रोहीतक नाम का नगर था । वह ऋद्ध, स्तिमित तथा समृद्ध था । पृथिवी-अवतंसक नामक उद्यान था । उसमें धारण नामक यक्ष का यक्षायतन था । वहाँ वैश्रमणदत्त नाम का राजा था । श्रीदेवी नामक रानी थी । युवराज पद से अलंकृत पुष्पनंदी कुमार था । उस रोहीतक नगर में दत्त गाथापति रहता था । वह बड़ा धनी यावत्
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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