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________________ ११४ नमो नमो निम्मलदंसणस्स ११ विपाकश्रुत अंगसूत्र - ११ - हिन्दी अनुवाद आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद 5 श्रुतस्कन्ध- १ फ अध्ययन- १ - मृगापुत्र [१] उस काल तथा उस समय में चम्पा नाम की एक नगरी थी । उस काल उस समय में श्रमण भगवान महावीर स्वामी के शिष्य- जातिसम्पन्न यावत् चौदह पूर्वों के ज्ञाता, चार ज्ञान के धारक, पांच सौ अनगारों से घिरे हुए सुधर्मा अनगार-मुनि क्रमशः विहार करते हुए चम्पानगरी के पूर्णभद्र नामक चैत्य-उ - उद्यान में विचरने लगे ! धर्मकथा सुनने के लिये जनता वहाँ आयी । धर्मकथा श्रवण कर और हृदय में अवधारण कर जिस ओर से आयी थी उसी ओर चली गई । उस काल उस समय में आर्य सुधर्मास्वामी के शिष्य जम्बूस्वामी थे, जो सात हाथ प्रमाण शरीरखाले तथा गौतमस्वामी के समान थे । यावत् बिराजमान हो रहे हैं। तदन्तर श्रद्धावत् जिस स्थान पर आर्य सुधर्मास्वामी बिराजमान थे, उसी स्थान पर पधार गये । तीन बार प्रदक्षिणा करने के पश्चात् वन्दना - नमस्कार करके इस प्रकार बोले [२] हे भगवन् ! यदि मोक्ष को प्राप्त हुए श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने प्रश्नव्याकरण नामक ग्यारहवें अङ्ग का यह अर्थ प्रतिपादित किया है तो विपाकश्रुत नामक ग्यारहवें अङ्ग का यावत् क्या अर्थ प्रतिपादित किया है ? तदनन्तर आर्य सुधर्मास्वामी ने श्री जम्बू अनगार को इस प्रकार कहा- हे जम्बू मोक्षसंलब्ध भगवान् श्रीमहावीर स्वामी मे विपाकश्रुत नाम के ग्यारहवें अङ्ग के दो श्रुतस्कन्ध प्रतिपादित किये हैं, जैसे कि - दुःखविपाक और सुखविपाक । हे भगवन् ! यदि मोक्ष को उपलब्ध श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने विपाकश्रुत संज्ञक एकादशवें अङ्ग के दुःखविपाक और सुखविपाक नामक दो श्रुतकन्ध कहे हैं, तो हे प्रभो ! दुःखविपाक नामक प्रथम श्रुतस्कन्ध के कितने अध्ययन प्रतिपादित किये हैं ? तत्पश्चात् आर्य सुधर्मास्वामी ने अपने अन्तेवासी श्री जम्बू अनगार को इस प्रकार कहा - ' हे जम्बू ! दुखविपाक के दस अध्ययन फरमाये हैं जैसे कि [३] मृगापुत्र, उज्झितक, अभग्नसेन, शकट, बृहस्पति, नन्दिवर्धन, उम्बरदत्त, शौरिकदत्त, देवदत्ता और अज्जू | [४] अहो भगवन् ! यदि धर्म की आदि करनेवाले, तीर्थप्रवर्तक मोक्ष को समुपलब्ध श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दुखविपाक के मृगापुत्र से लेकर अञ्जु पर्यन्त दश अध्ययन कहे हैं तो, प्रभो ! दुखविपाक के प्रथम अध्ययन का क्या अर्थ कहा है ? हे जम्बू ! उस काल उस समय में मृगाग्राम नाम का एक नगर था उस नगर के बाहर ईशान कोण में सब ऋतुओं में होनेवाले फल पुष्प आदि से युक्त चन्दन- पादप नामक एक उपवन था । उस उद्यान में सुधर्मा नामक यक्ष का एक पुरातन यक्षायतन था जिसका वर्णन पूर्णभद्र यक्षायतन की तरह
SR No.009784
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size17 MB
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