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________________ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद घर में बहुत-सा भोजन-पानी तैयार होता था । उस धन्य सार्थवाह की पत्नी का नाम भद्रा था । उसके हाथ पैर सुकुमार थे । पाँचों इन्द्रियाँ हीनतासे रहित परिपूर्ण थीं । वह स्वस्तिक आदि लक्षणों तथा तिल मसा आदि व्यंजनों के गुणों से युक्त थी । मान, उन्मान और प्रमाण से परिपूर्ण थी । अच्छी तरह उत्पन्न हुए-सुन्दर सब अवयवों के कारण वह सुन्दरांगी थी । उसका आकार चन्द्रमा के समान सौम्य था । वह अपने पति के लिए मनोहर थी । देखने में प्रिय लगती था । सुरूपवती थी । मुट्ठी में समा जानेवाला उसका मध्य भाग त्रिवलि से सुशोभित था । कुण्डलों से उसके गंडस्थलों की रेखा घिसती रहती थी । उसका मुख पूर्णिमा के चन्द्र के समान सौम्य था । वह श्रृंगार का आगार थी । उसका वेष सुन्दर था । यावत् वह प्रतिरूप थी मगर वह वन्ध्या थी, प्रसव करने के स्वभाव से रहित थी । जाने और कूपर की ही माता थी । [४४] उस धन्य सार्थवाह का पंथक नामक एक दास-चेटक था । वह सर्वांग-सुन्दर था, माँस से पुष्ट था और बालकों को खेलाने में कुशल था । वह धन्य सार्थवाह राजगृह नगर में बहुत से नगर के व्यापारियों, श्रेष्ठियों और सार्थवाहों के तथा अठारहों श्रेणियों और प्रश्रेणियों के बहुत से कार्यों में, कुटुम्बों में कुटुम्ब सम्बन्धी विषयों में और मंत्रणाओं में यावत् चक्षु के समान मार्गदर्शक था, अपने कुटुम्ब में भी बहुत से कार्यों में यावत् चक्षु समान था । [४५] उस राजगृह में विजय नामक एक चोर था । वह पाप कर्म करनेवाला, चाण्डाल के समान रूपवाला, अत्यन्त भयानक और क्रूर कर्म करनेवाला था । क्रुद्ध हुए पुरुष के समान देदीप्यमान और लाल उसके नेत्र थे । उसकी दाढ़ी या दाढ़े अत्यन्त कठोर, मोटी, विकृत और बीभत्स थीं । उसके होठ आपस में मिलते नहीं थे, उसके मस्तक के केश हवा से उड़ते रहते थे, बिखरे रहते थे और लम्बे थे । वह भ्रयर और राहु के समान काला था । वह दया और पश्चात्ताप से रहित था । दारुण था और इसी कारण भय उत्पन्न करता था । वह नृशंसनरसंघातक था । उसे प्राणियों पर अनुकम्पा नहीं थी । वह साँप की भाँति एकान्त दृष्टि वाला था, वह छुरे की तरह एक धार वाला था, वह गिद्ध की तरह मांस का लोलुप था और अग्नि के समान सर्वभक्षी था जल के समान सर्वग्राही था, वह उत्कंचन में वंचन में, माया में, निकृति में, कूट में था । साति-संप्रयोग में निपुण था । वह चिरकाल में नगर में उपद्रव कर रहा था । उसका शील, आचार और चरित्र अत्यन्त दूषित था । वह चूत से आसक्त था, मदिरापन में अनुरत था, अच्छा भोजन करने में गृद्ध था और मांस में लोलुप था । लोगों के हृदय को विदारण कर देनेवाला, साहसी सेंध लगानेवाला, गुप्त कार्य करनेवाला, विश्वासघाती और आग लगा देनेवाला था । तीर्थ रूप देवद्रोणी आदिका भेदन करके उसमें से द्रव्य हरण करनेवाला और हस्तलाघव वाला था । पराया द्रव्य हरण करने में सदैव तैयार रहता था तीव्र वैर वाला था । वह विजय चोर राजगृह नगर के बहुत से प्रवेश करने के मार्गों, निकलने के मार्गों, दरवाजों, पीछे की खिड़कियों, छेड़ियों, किलों की छोटी खिड़कियों, मोरियों, रास्ते मिलने की जगहों, रास्ते, अलग-अलग होने के स्थानों, जुआ के अखाड़ों, मदिरापन के अड्डों, वेश्या के घरों, उनके घरों के द्वारों, चोरों के घरों, श्रृंगाटकों-सिंघाड़े के आकार के मार्गों, तीन मार्ग मिलने के स्थानों, चौकों, अनेक मार्ग मिलने के स्थानों, नागदेव के गृहों, भूतों के गृहों, यक्षगृहों, सभास्थानों, प्याउओं, दुकानों ओर शून्यगृहों को देखता फिरता था । उनकी मार्गणा
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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