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________________ ८६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद लगे । ग्रीष्मकाल की उष्णता, सूर्य के ताप, अत्यन्त कठोर एवं प्रचंड वायु तथा-सूखे घास के पत्तों और कचरे से युक्त बवंडर के कारण भाग-दौड़ करनेवाले, मदोन्मत्त एवं घभराए सिंह आदि श्वापदों के कारण पर्वत आकुल-व्याकुल हो उठे । ऐसा प्रतीत होने लगा मानो उन पर्वतों पर मृगतृष्णा रूप पट्टबंध बंधा हो । त्रास को प्राप्त मृग, अन्य पशु और सरीसृप इधरउधर तड़फने लगे । इस भयानक अवसर पर, हे मेघ ! तुम्हारे पूर्वभव के सुमेरुप्रभ नामक हाथी का मुख-विवर फट गया । जिह्वा का अग्रभग बाहर निकल आया । बड़े-बड़े दोनों कान भय से स्तब्ध औरव्याकुलता के कारण शब्द ग्रहण करने में तत्पर हए । बड़ी और मोटी सूंड सिकुड़ गई । उसने पूंछ, ऊँची करली । पीना के समान विरस अरटि के शब्द-चीत्कार से वह आकाशतल को फोड़ता हुआ सा, सीत्कार करता हुआ, चहुँ ओर सर्वत्र बेलों के समूह को छेदता हुआ, त्रस्त और बहुसंख्यक सहस्त्रों वृक्षों को उखाड़ता हुआ, राज्य से भ्रष्ट हुए राजा के समान, वायु से डोलते हुए जहाज के समान और बवंडर के समान इधर-उधर भ्रमण करता हुआ एवं बार-बार लींड़ी त्यागता हुआ, बहुत-से हाथियों, के साथ दिशाओं और विदिशाओं में इधर-उधर भागदौड़ करने लगा। हे मेघ ! तुम वहाँ जीर्ण, जरा से जर्जरित देह वाले, व्याकुल, भूखे, त्यासे, दुबले, थके-मांदे, बहिरे तथा दिङ् मूढ होकर अपने यूथ से बिछुड़ गये । वन के दावानल की ज्वालाओं से पराभूत हुए । गर्मी से, प्यास से औरभूखसे पीड़ित होकर भय से घबरा गए, त्रस्त हुए । तुम्हारा आनन्द-रस शुष्क हो गया । इस विपत्ति से कैसे छुटकारा पाऊँ, ऐसा विचार करके उद्विग्न हए । तुम्हें पूरी तरह भय उत्पन्न हो गया । अतएव तुम इधर-उधर दौड़ने और खब दौडने लगे । इसी समय अल्प जलवाला और कीचड की अधिकता वाला एक बड़ा सरोवर तुम्हें दिखाई दिया । उसमें पानी पीने के लिए बिना घाट के ही तुम उतर गये । हे मेघ ! वहाँ तुम किनारे से तो दूर चले गये परन्तु पानी तक न पहुँच पाये और बीच ही में कीचड़ में फंस गये । हे मेघ ! 'मैं पानी पीऊँ' ऐसा सोचकर तुमने अपनी सूंड फैलाई, मगर तुम्हारी सूंड भी पानी न पा सकी । तब हे मेघ ! तुमने पुनः 'शरीर को कीचड़ से बाहर निकालूँ ऐसा विचार कर जोर मारा तो कीचड़ में और गाढ़े फँस गये । तत्पश्चात् हे मेघ ! एक बार कभी तुमने एक नौजवान श्रेष्ठ हाथी को सूंड, पैर और दाँत रूपी मूसलों से प्रहार करके मारा था और अपने झुंड में से बहुत समय पूर्व निकाल दिया था । वह हाथी पानी पीने के लिए उसी सरोवर में उतरा । उस नौजवान हाथी ने तुम्हें देखा। देखते ही उसे पूर्व वैर का स्मरण हो आया । स्मरण आते ही उसमें क्रोध के चिह्न प्रकट हुए। उसका क्रोध बढ़ गया । उसने रौद्र रूप धारण किया और वह क्रोधाग्नि से जल उठा । अतएव वह तुम्हारे पास आया । आकर तीक्ष्ण दाँत रूपी मूसलों से तीन बार तुम्हारी पीठ बींध दी और बींध कर पूर्व वैर का बदला लिया । बदला लेकर हृष्ट-तुष्ट होरक पानी पीया । पानी पीकर जिस दिशा से प्रकट हुआ था-आया था, उस दिशा में वापिस लौट गया । तत्पश्चात् हे मेघ ! तुम्हारे शरीर में वेदना उत्पन्न हुई । वह वेदना ऐसी थी कि तुम्हें तनिक भी चैन न थी, वह सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त थी और त्रितुला थी । वह वेदना कठोर यावत् बहुत ही प्रचण्ड थी, दुस्सह थी । उस वेदना के कारण तुम्हारा शरीर पित्त-ज्वर से व्याप्त हो गया और शरीर में दाह उत्पन्न हो गया । उस समय तुम इस बूरी हालत में रहे । तत्पश्चात्
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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