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ज्ञाताधर्मकथा-१/-/१/३३
गया। तत्पश्चात् श्रेणिक राजा ने कौटुम्बिक पुरुषों-सेवकों को बुलवाया और ऐसा कहा'देवानुपियो ! मेघकुमार का महान् अर्थ वाले, बहुमूल्य एवं महान् पुरुषों के योग्य विपुल राज्याभिषेक तैयार करो ।' कौटुम्बिक पुरुषों ने यावत् सब सामग्री तैयार की .
तत्पश्चात् श्रेणिक राजा ने बहुत से गणनायकों एवं दंडनायकों आदि से परिवृत होकर मेघकुमार को, एक सौ आठ सुवर्म कलशों, इसी प्रकार एक सौ आठ चाँदी के कलशों, एक सौ आठ स्वर्ण-रजत के कलशों, एक सौ आठ मणिमय कलशों, एक सौ आठ स्वर्ण-मणि के कलशों, एस सौं आठ रजत-मणि के कलशों, एक सौ आठ स्वर्ण-रजत-मणि के कलशों
और एक सौ आठ मिट्टी के कलशों-इस प्रकार आठ सौ चौसठ कलशों में सब प्रकार का जल भरकर तथा सब प्रकार की मृत्तिका से, सब प्रकार के पुष्पों से सब प्रकार के गंधों से, सब प्रकार की मालाओं स, सब प्रकार की औषधियों से तथा सरसों से उन्हें परिपूर्ण करके, सर्व समृद्धि, धुति तथा सर्व सैन्य के साथ, दुंदुभि के निर्घोष की प्रतिध्वनि के शब्दों के साथ उच्चकोटि के राज्याभिषेक से अभिषिक्त किया । अभिषेक करके श्रेणिक राजा ने दोनों हाथ जोड़ कर मस्तक पर अंजरि घुमाकर यावत् इस प्रकार कहा
___ हे नन्द ! तुम्हारी जय हो, जय हो । हे भद्र ! तुम्हारी जय है, जय हो । हे जगन्नन्द ! तुम्हारा भद्र हो । तुम न जीते हुए को जीतो और जीते हुए का पालन करो । जितोंआधारवानों के मध्य में निवास करो । नहीं जीते हुए शत्रुपक्ष को जीतो । जीते हुए मित्रपक्ष का पालन करो । यावत् देवों में इन्द्र, असुरों में चमरेन्द्र, नागों में धरण, ताराओं में चन्द्रमा एवं मनुष्यों में भरत चक्री की भांति राजगृह नगर का तथा दूसरे बहुतेरे ग्रामों, आकरों, नगरों यावत् खेट, कर्बट, द्रोणमुख, मडंब, द्रोणमुख, मडंब, पट्टन, आश्रम, निगम, संवाह और सन्निवेशों का आधिपत्य यावत् नेतृत्व आदि करते हुए विविध वाद्यों, गीत, नाटक आदि का उपयोग करते हुए विचरण करो ।' इस प्रकार कहकर श्रेणिक राजा ने जय-जयकार किया । तत्पश्चात् मेघ राजा हो गया और पर्वतों में महाहिमवन्त की तरह शोभा पाने लगा । मातापिता ने राजा मेघ से कहा- 'हे पुत्र ! बताओ, तुम्हारे किस अनिष्ट को दूर करें अथवा तुम्हारे इष्ट-जनों को क्या दें ? तुम्हें क्या दें ? तुम्हारे चित्त में क्या चाह है ?
तब राजा मेघ ने मातापिता से इस प्रकार कहा- 'हे माता-पिता ! मैं चाहता हूँ कि कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र मंगवा दीजिए और काश्यप-नापित को बुलवा दीजिए । तत्पश्चात् श्रेणिक राजा ने अपने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलवाया । बुलवाकर इस प्रकार कहा'हे देवानुप्रियो ! तुम जाओ, श्रीगृह से तीन लाख स्वर्ण-मोहरें लेकर दो लाख से कुत्रिकापण से रजोहरण और पात्र ले आओ तथा एक लाख देकर नाई को बुला लाओ । तत्पश्चात् वे कौटुम्बिक पुरुष, राजा श्रेणिक के एसा कहने पर हृष्ट-तुष्ट होकर श्रीगृह से तीन लाख मोहरें लेकर कुत्रिकापण से, दो लाख से रजोहरण और पात्र लाये और एक लाख मोहरें देकर उन्होंने नाई को बुलवाया ।
तत्पश्चात् कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा बुलाया गया वह नाई हृष्ट-तुष्ट हुआ यावत् उसका हृदय आनन्दित हुआ । उसने स्नान किया, बलिकर्म किया, मषी-तिलक आदि कौतुक, दहीं दूर्वा आदि मंगल एवं दुःस्वप्न का निवारण रूप प्रायश्चित किया. साफ और राजसभा में प्रवेश करने योग्य मांगलिक और श्रेष्ठ वस्त्र धारण किये । थोड़े और बहुमूल्य आभूषणों से शरीर को