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ज्ञाताधर्मकथा - १/-/१/३०
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वाले अश्वरथ से नीचे उतरा । पाँच प्रकार के अभिगम करके श्रमण भगवान् महावीर के सन्मुख चला । वह पाँच अभिगम उस प्रकार है- सचित्त द्रव्यों का त्याग । अचित्त द्रव्यों का अत्याग । एक शाटिका उत्तरासंग । भगवान् पर दृष्टि पड़ते ही दोनों हाथ जोड़ना । मन को एकाग्र करना । जहां भगवान् महावीर थे, वहाँ आया । श्रमण भगवान् महावीर की दक्षिण दिशा से आरम्भ करके प्रदक्षिणा की । भगवान् को स्तुति रूप वन्दन किया और काय से नमस्कार किया । श्रमण भगवान् महावीर के अत्यन्त समीप नहीं और अति दूर भी नहीं, ऐसे समुचित स्थान पर बैठकर धर्मोपदेश सुनने की इच्छा करता हुआ, नमस्कार करता हुआ, दोनों हाथ जोड़े, सन्मुख रह कर विनयपूर्वक प्रभु की उपासना करने लगा ।
तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर ने मेघकुमार को और उस महती परिषद् को परिषद् के मध्य में स्थित होकर विचित्र प्रकार के श्रुतधर्म और चारित्रधर्म का कथन किया । जिस प्रकार जीव कर्मो से बद्ध होते हैं, जिस प्रकार मुक्त होते हैं और जिस प्रकार संक्लेश को प्राप्त होते हैं, यावत् धर्मदेशना सुनकर परिषद् वापिस लौट गया ।
[३१] तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर के पास से मेघकुमार ने धर्म श्रवण करके और उसे हृदय में धारण करके, हृष्ट-तुष्ट होकर श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार दाहिनी ओर से आरम्भ करके प्रदक्षिणा की । प्रदक्षिणा करके वन्दन - नमस्कार किया । इस प्रकार कहा- भगवन् ! मैं निर्ग्रन्थ प्रवचन पर श्रद्धा करतू हूँ, उसे सर्वोत्तम स्वीकार करता हूँ, मैं उस पर प्रतीति करता हूँ । मुझे निर्ग्रन्थ प्रवचन रुचता है, मैं निर्ग्रन्थ प्रवचन को अंगीकार करना चाहता हूँ, भगवन् ! यह ऐसा ही हैं यह उसी प्रकार का है । भगवन् ! मैंने इसकी इच्छा की है, पुनःपुनः इच्छा की है, भगवन् ! यह इच्छित और पुनः पुनः इच्छित है । यह वैसा ही है जैसा आप कहते | विशेष बात यह है कि हे देवानुप्रिय मैं अपने माता-पिता की आज्ञा ले लूँ, तत्पश्चात् मुण्डित होकर दीक्षा ग्रहण करूंगा । भगवान् ने कहा- 'देवानुप्रिय ! जिससे तुझे सुख उपजे वह कर, उसमें विलम्ब न करना ।'
तत्पश्चात् मेघकुमार ने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन किया, नमस्कार किया, वन्दन-नमस्कार करके जहाँ चार घंटाओं वाला अश्वरथ था, वहां आया। आकर चार घंटाओं वाले अश्व रथ पर आरूढ हुआ । आरूढ होकर महान् सुभटों और बड़े समूह वाले परिवार के साथ राजगृह के बीचो-बीच होकर अपने घर आया । चार घंटाओं वाले अश्व रथ से उतरा । उतरकर जहाँ उसके माता-पिता थे, वहीं पहुंचा । पहुंचकर माता-पिता के पैरों में प्रणाण किया। प्रणाम करके उसने इस प्रकार कहा - 'हे माता-पिता ! मैने श्रमण भगवान् महावीरके समीप धर्म श्रवण किया है और मैंने उस धर्म की इच्छा की है, बार-बार इच्छा की है । वह मुझे रुचा है ।' तब मेघकुमार के माता-पिता इस प्रकार बोले- 'पुत्र ! तुम धन्य हो, पुत्र ! तुम पूरे पुण्यवान् हो, हे पुत्र ! तुम कृतार्थ हो कि तुमने श्रमण महावीर के निकट धर्म श्रमण किया है और वह धर्म तुम्हें इष्ट, पुनःपुनः इष्ट और रुचिकर भी हुआ हैं ।'
तत्पश्चात् मेघकुमार माता-पिता से दूसरी बार और तीसरी बार इस प्रकार कहने लगा 'हे माता - पिता ! मैंने श्रमण भगवान् महावीर से धर्म श्रवण किया है । उस धर्म की मैंने इच्छा की है, बार-बार इच्छा की है, वह मुझे रुचिकर हुआ है । अतएव हे माता-पिता ! मैं आपकी अनुमति प्राप्त करके श्रमण भगवान् महावीर के समीप मुण्डित होकर, गृहवास त्याग कर