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________________ ७३ ज्ञाताधर्मकथा-१/-/१/२७ I अपनी उज्जवल कान्ति के समूह से हँसते हुए से प्रतीत होते थे । मणि, सुवर्ण और रत्नों की रचना से विचित्र थे । वायु से फहराती हुई और विजय को सूचित करनेवाली वैजयन्ती पताकाओं से तथा छत्रातिछत्र युक्त थे । वे इतने ऊँचे थे कि उनके शिखर आकाशतल का उल्लंघन करते थे । उनकी जालियों के मध्य में रत्नों के पंजर ऐसे प्रतीत होते थे, मानो उनके नेत्र हों । उनमें मणियों और कनक की भूमिकाएँ थीं । उनमें साक्षात् अथवा चित्रित किये हुए शतपत्र और पुण्डरीक कमल विकसित हो रहे थे । वे तिलक रत्नों एवं अर्द्ध चन्टों - एक प्रकार के सोपानों से युक्त थे, अथवा भित्तियों में चन्दन आदि के आलेख चर्चित थे । नाना प्रकार की मणिमय मालाओं से अलंकृत थे । भीतर और बाहर से चिकने थे । उनके आंगन में सुवर्णमय रुचिर वालुका बिछी थी । उनका स्पर्श सुखप्रद था । रूप बड़ा ही शोभन था । उन्हें देखते ही चित्त में प्रसन्नता होती थी । तावत् प्रतिरूप थे - अत्यन्त मनोहर थे । और एक महान् भवन बनवाया गया। वह अनेक सैंकड़ों स्तंभो पर बना हुआ था । उसमें लीलायुक्त अनेक पुतलियाँ स्थापित की हुई थीं । उसमें ऊँची और सुनिर्मित वज्ररत्न की वेदिका थी और तोरण थे । मनोहर निर्मित पुतलियों सहित उत्तम, मोटे एवं प्रशस्त वैडूर्य रत्न I स्तंभ थे, वे विविध प्रकार के मणियों, सुवर्ण तथा रत्नों से खचित होने के कारण उज्जवल दिखाई देते थे । उनका भूमिभाग बिलकुल सम, विशाल, पक्क और रमणीय था । उस भवन में ईहामृग, वृषभ, तुरंग, मनुष्य, मकर आदि के चित्र चित्रित किए हुए थे । स्तंभों पर बनी वज्ररत्न की वेदिका से युक्त होने के कारण रमणीय दिखाई पड़ता था । समान श्रेणी में स्थित विद्याधरों के युगल यंत्र द्वारा चलते दीख पड़ते थे । वह भवन हजारों किरणों से व्याप्त और हजारों चित्रों से युक्त होने से देदीप्यमान और अतीव देदीप्यमान था । उसे देखते ही दर्शक के नयन उसमें चिपक से जाते थे । उसके स्पर्श सुखप्रद था और रूप शोभासम्पन्न था । उसमें सुवर्ण, मणि एवं रत्नों की स्तूपिकाएँ बनी हुई थी । उसका प्रधान शिखर नाना प्रकार की, पांच वर्णों की एवं घंटाओं सहित पताकाओं से सुशोभित था । वह चहुँ और देदीप्यमान किरणों के समूह को फैला रहा था । वह लिपा था, धुला था और चंदेवा से युक्त था । यावत् वह भवन गंघ की वर्ती जैसा जान पड़ता था । वह चित्त को प्रसन्न करनेवाला, दर्शनीय, अभिरुप और प्रतिरूप था अतीव मनोहर था । [२८] तत्पश्चात् मेघकुमार के माता-पिता ने मेघकुमार का शुभ तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त में शरीरपरिमाण से सदृश, समान उम्रवाली, समान त्वचा वाली, समान लावण्य वाली, समान रूप वाली, समान यौवन और गुणोंवाली तथा अपने कुल के समान राजकुलों से लाई हुई आठ श्रेष्ठ राजकन्याओं के साथ, एक ही दिन एक ही साथ, आठों अंगों में अलंकार धारण करनेवाली सुहागिन स्त्रियों द्वारा किये मंगलगान एवं दधि अक्षत आदि मांगलिक पदार्थों के प्रयोग द्वारा पाणिग्रहण करवाया । मेघकुमार के माता-पिता ने इस प्रकार प्रीतिदान दिया - आठ करोड़ हिरण्य, आठ करोड़ सुवर्ण, आदि गाथाओं के अनुसार समझ लेना, यावत् आठ-आठ प्रेक्षणकारिणी तथा और भी विपुल धन, कनक, रत्न, मणि, मोची, शंख, मूंगा, रक्त रत्न आदि उत्तम सारभूत द्रव्य दिया, जो सात पीढ़ी तक दान देने के लिये, भोगने के लिए, उपयोग करने के लिए और बँटवारा करके देने के लिए पर्याप्त था । तत्पश्चात् उस मेघकुमार ने प्रत्येक पत्नी को एक-एक करोड़ हिरण्य दिया, एक-एक
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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