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भगवती-परिशेष
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[१०८२] गौतम आदि गणधरों को नमस्कार हो । भगवती व्याख्याप्रज्ञप्ति को नमस्कार हो तथा द्वादशांग-गणिपिटक को नमस्कार हो ।
[१०८३] कच्छप के समान संस्थितं चरण वाली तथा अम्लान कोरंट की कली के समान, भगवती श्रुतदेवी मेरे मति अन्धकार को विनष्ट करे ।
[१०८४] जिसके हाथमें विकसित कमल है, जिसने अज्ञानान्धकार का नाश किया है, जिसको बुध और विबुधों ने सदा नमस्कार किया है, ऐसी श्रुताधिष्ठात्री देवी मुझे भी बुद्धि प्रदान करे ।
[१०८५] जिसकी कृपा से ज्ञान सीखा है, उस श्रुतदेवता को प्रणाम करता हूँ तथा शान्ति करने वाली उस प्रवचनदेवी को नमस्कार करता हूँ ।
[१०८६] श्रुतदेवता, कुम्भधर यक्ष, ब्रह्मशान्ति, वैरोट्यादेवी, विद्या और अन्तहंडी, लेखक के लिए अविघ्न प्रदान करे ।
[१०८७] व्याख्याप्रज्ञप्ति के प्रारम्भ के आठ शतकों के दो-दो उद्देशकों का उद्देश एक-एक दिन में दिया जाता है, किन्तु चतुर्थ शतक के आठ उद्देशकों का उद्देश पहले दिन किया जाता है, जबकि दूसरे दिन दो उद्देशों का किया जाता है । नौवें शतक से लेकर आगे यावत् बीसवें शतक तक जितना-जितना शिष्य की बुद्धि में स्थिर हो सके, उतना-उतना एक दिन में उपदिष्ट किया जाता है । उत्कृष्टतः एक दिन में एक शतक का भी उद्देश दिया जा सकता है, मध्यम दो दिन में और जघन्य तीन दिन में एक शतक का पाठ दिया जा सकता है । किन्तु ऐसा बीसवें शतक तक किया जा सकता है । विशेष यह है कि इनमें से पन्द्रहवें गोशलकशतक का एक ही दिन में वाचन करना चाहिए । यदि शेष रह जाए तो दूसरे दिन आयंबिल करके वाचन करना चाहिए । फिर भी शेष रह जाए तो तीसरे दिन दो आयम्बिल करके वाचन करना चाहिए । इक्कीसवे, बाईसवें और तेईसवें शतक का एक-एक दिन में उद्देश करना चाहिए । चौबीसवें शतक के छह-छह उद्देशकों का प्रतिदिन पाठ करके चार दिनों में पूर्ण करना चाहिए । पच्चीसवें शतक के प्रतिदिन छह-छह उद्देशक बांच कर दो दिनों में पूर्ण करना चाहिए ।
एक समान पाठ वाले बन्धीशतक आदि सात शतक का पाठवाचन एक दिन में, बारह एकेन्द्रियशतकों का वाचन एक दिन में बारह श्रेणीशतकों का वाचन एक दिन में तथा एकेन्द्रिय के बारह महायुग्मशतकों का वाचन एक ही दिन में करना चाहिए । इसी प्रकार द्वीन्द्रिय के बारह, त्रीन्द्रिय के बारह, चतुरिन्द्रिय के बारह, असंज्ञीपंचेन्द्रिय के बारह शतकों का तथा इक्कीस संज्ञीपंचेन्द्रियमहायुग्म शतकों का वाचन एक-एक दिन में करना चाहिए । इकतालीसवें राशियुग्मशतक की वाचना भी एक दिन में दी जानी चाहिए ।
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| ५ | भगवती अगसूत्र-५ हिन्दी अनुवाद पूर्ण