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भगवती-४१/-/५ से २८/१०७२
उद्देशक कहना । विशेष नैरयिकों का उपपात रत्नप्रभापृथ्वी के समान जानना चाहिए । शेष पूर्ववत् । भगवन् ! तेजोलेश्या वाले राशियुग्म-कृतयुग्मरूप असुरकुमार कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् जानना, किन्तु जिनमें तेजोलेश्या पाई जाती हो उन्हीं के जानना। इस प्रकार ये भी कृष्णलेश्या-सम्बन्धी चार उद्देशक कहना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यह इसी प्रकार है'।
इसी प्रकार पद्मलेश्या के भी चार उद्देशक जानने चाहिए । पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और वैमानिकदेव, इनमें पद्मलेश्या होती है, शेष में नहीं होती । पद्मलेश्या के अनुसार शुक्ललेश्या के भी चार उद्देशक जानने चाहिए । विशेष यह है कि मनुष्यों के लिए औधिक उद्देशक के अनुसार जानना । शेष पूर्ववत् । इस प्रकार इन छह लेश्याओं-सम्बन्धी चौबीस उद्देशक होते हैं तथा चार औधिक उद्देशक हैं । ये सभी मिलकर अट्ठाईस उद्देशक होते हैं । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' ।
| शतक-४१ उद्देशक-२९ से ५६ । [१०७३] भगवन् ! भवसिद्धिक राशियुग्म-कृतयुग्मराशि नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पहले के चार औधिक उद्देशकों अनुसार सम्पूर्ण चारों उद्देशक जानना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' | भगवन् ! कृष्णलेश्यी भवसिद्धिक राशियुग्म-कृतयुग्मराशियुक्त नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! कृष्णलेश्या-सम्बन्धी चार उद्देशक अनुसार भवसिद्धिक कृष्णलेश्यी जीवों के भी चार उद्देशक कहना । इसी प्रकार नीललेश्यी कापोतलेश्यी, पद्मलेश्यी, शुक्ललेश्यी भवसिद्धिक के भी चार उद्देशक कहना । इस प्रकार भवसिद्धिकजीव-सम्बन्धी अट्ठाईस उद्देशक होते हैं । 'हे भगवन् ! यह इस प्रकार है०' ।
| शतक-४१ उद्देशक-५७ से ८४ | [१०७४] भगवन् ! अभवसिद्धिक-राशियुग्म-कृतयुग्मराशियुक्त नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! प्रथम उद्देशक के समान कथन करना । विशेष यह है कि मनुष्यों
और नैरयिकों की वक्तव्यता समान जाननी चाहिए । शेष पूर्ववत् । “हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' । इसी प्रकार चार युग्मों के चार उद्देशक कहना ।
भगवन् ! कृष्णलेश्यी-अभवसिद्धिक-राशियुग्म-कृतयुग्मराशिरूप नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं । पूर्ववत् चार उद्देशक कहना । इसी प्रकार नीललेश्या यावत् शुक्ललेश्या वाले अभवसिद्धिक जीवों के भी चार उद्देशक जानना । इस प्रकार इन अट्ठाईस अभवसिद्धिक उद्देशकों में मनुष्यों-सम्बन्धी कथन नैरयिकों के आलापक के समान जानना चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यह इसी प्रकार है'।
|शतक-४१ उद्देशक-८५ से ११२ | [१०७५] भगवन् ! सम्यग्दृष्टि-राशियुग्म-कृतयुग्मराशियुक्त नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? प्रथम उद्देशक समान यह उद्देशक जानना । इसी प्रकार चारों युग्मों में भवसिद्धिक के समान चार उद्देशक कहने चाहिए । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है०' ।
भगवन् ! कृष्णलेश्यी सम्यग्दृष्टि राशियुग्म-कृतयुग्मराशि नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न .