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________________ भगवती - ३५/१/१/१०४४ ३९ रहें और उस राशि के अपहारसमय द्वापरयुग्म हो तो वह राशि द्वापरयुग्मन्त्र्योज कहलाती है । (११) दो बचें और उस राशि के अपहारसमय द्वापरयुग्म हों तो वह राशि द्वापरयुग्मद्वापरयुग्म कहलाती है । (१२) एक शेष रहे और उस राशि के अपहार - समय द्वापरयुग्म हों, तो वह राशि द्वापरयुग्मकल्योज कहलाती है, (१३) चार शेष रहें और उस राशि का अपहार - समय कल्योज (एक) हो तो वह राशि कल्योजकृतयुग्म कहलाती है, (१४) तीन शेष रहें और उस राशि का अपहार - समय कल्योज हो तो वह राशि कल्योजत्र्योज कहलाती है । (१५) दो बचें और उस राशि का अपहार समय कल्योज हो तो वह राशि कल्योजद्वापरयुग्म कहलाती है, और (१६) एक शेष रहे और उस राशि का अपहार - समय कल्योज हो तो वह राशि कल्योजकल्योज कहलाती है । इसी कारण से हे गौतम! कल्योजकल्योज तक कहा गया है । [ १०४५] भगवन् ! कृतयुग्म कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! उत्पलोद्देशक के उपपात समान उपपात कहना चाहिए । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे सोलह, संख्यात, असंख्यात या अनन्त । भगवन् ! वे अनन्त जीव समय-समय में एक-एक अपहृत किये जाएँ तो कितने काल में अपहृत होते हैं ? गौतम ! अनन्त अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी बीत जाएँ तो भी वे अपहृत नहीं होते । इनकी ऊँचाई उपलोद्देशक के अनुसार जानना । भगवन् ! वे एकेन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म के बन्धक हैं या अबन्धक हैं ? गौतम ! वे बन्धक हैं, अबन्धक नहीं हैं । वे जीव आयुष्यकर्म को छोड़ कर शेष सभी कर्मों के बन्धक हैं । आयुष्यकर्म के वे बन्धक भी हैं और अबन्धक भी हैं । भगवन् ! वे जीव ज्ञानावरणीयकर्म के वेदक हैं या अवेदक हैं ? गौतम ! वेदक हैं, अवेदक नहीं हैं । इसी प्रकार सभी कर्मों में जानना । भगवन् ! वे जीव साता के वेदक हैं अथवा असाता के ? गौतम ! वे सातावेदक भी होते हैं, अथवा असातावेदक भी एवं उत्पलोद्देशक की परिपाटी के अनुसार वे सभी कर्मों के उदय वाले हैं, वे छह कर्मों के उदीरक हैं तथा वेदनीय और आयुष्यकर्म के उदीरक भी हैं और अनुदीरक भी हैं । भगवन् ! वे एकेन्द्रिय जीव क्या कृष्णलेश्या वाले होते हैं ? इत्यादि प्रश्न । गौतम ! वे जीव कृष्णलेश्यी, नीललेश्यी, कापोतलेश्यी अथवा तेजोलेश्यी होते हैं । ये मिथ्यादृष्टि होते हैं । वे अज्ञानी होते हैं । वे नियमतः दो अज्ञान वाले होते हैं, यथा-मतिअज्ञानी और श्रुतअज्ञानी । वे काययोगी होते हैं । वे साकारोपयोग वाले भी होते हैं और अनाकारोपयोग वाले भी होते हैं । भगवन् ! उन एकेन्द्रिय जीवों के शरीर कितने वर्ण के होते हैं ? इत्यादि समग्र प्रश्न । गौतम ! उत्पलोद्देशक के अनुसार, उनके शरीर पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श वाले होते हैं । वे उच्छ्वास वाले या निःश्वास वाले अथवा नो- उच्छ्वासनिःश्वास वाले होते हैं । आहारक या अनाहारक होते हैं । वे अविरत होते हैं । क्रियायुक्त होते हैं, सात या आठ कर्मप्रकृतियों के बन्धक होते हैं । आहारसंज्ञा यावत् परिग्रहसंज्ञा वाले होते हैं । क्रोधकषायी यावत् लोभकषायी होते हैं । नपुंसकवेदी होते हैं । स्त्रीवेदबन्धक पुरुषवेद-बन्धक या नपुंसकवेद - बन्धक होते हैं । असंज्ञी होते हैं और सइन्द्रिय होते हैं । भगवन् ! वे कृतयुग्म कृतयुग्मराशिरूप एकेन्द्रिय जीव काल की अपेक्षा कितने काल तक होते हैं ? गौतम ! वे जघन्य एक समय और उत्कृष्ट अनन्तकाल - अनन्त वनस्पतिकाल
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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