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________________ ३८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद - पांच प्रकार के हैं । यहाँ प्रत्येक के चार-चार भेद वनस्पतिकायिक पर्यन्त समझने चाहिए । भगवन् ! जो परम्परोपपन्नक-कृष्णलेश्यी-भवसिद्धिक अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव, इस रत्नप्रभापृथ्वी के पूर्वी-चरमान्त में यावत् उत्पन्न होता है ? गौतम ! पूर्ववत् जानना । इस अभिलाप से औधिक उद्देशक के अनुसार लोक के चरमान्त तक यहाँ सर्वत्र कृष्णलेश्यीभवसिद्धिक में उपपात कहना । भगवन् ! परम्परोपपन्नक कृष्णलेश्यीभवसिद्धिक पर्याप्त बादरपृथ्वीकायिक जीवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? गौतम ! इसी प्रकार इस अभिलाप से औधिक उद्देशक याव तुल्यस्थितिपर्यन्त जानना । इसी प्रकार इस अभिलाप से कृष्णलेश्यी-भवसिद्धिक एकेन्द्रियों के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए । | शतक-३४ शतकशतक-७ से १२ [१०४३] नीललेश्या वाले भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीवों का (सातवाँ) शतक हना । इसी प्रकार कापोतलेश्या वाले भवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव का (आठवाँ) शतक कहना । भवसिद्धि जीव के चार शतकों के अनुसार अभवसिद्धिक एकेन्द्रिय जीव के भी चार शतक कहने चाहिए । विशेष यह है कि चरम और अचरम को छोड़कर इनमें नौ उद्देशक ही कहना। इस प्रकार ये बारह एकेन्द्रिय-श्रेणी-शतक कहे हैं । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । (शतक-३५) -: शतकशतक-१ : उद्देशक-१ [१०४४] भगवन् ! महायुग्म कितने बताए गए हैं ? गौतम ! सोलह, यथाकृतयुग्मकृतयुग्म, कृतयुग्मत्र्योज, कृतयुग्मद्वापरयुग्म, कृतयुग्मकल्योज, त्र्योजकृतयुग्म, त्र्योजत्र्योज, त्र्योजद्वापरयुग्म, त्र्योजकल्योज, द्वापरयुग्मकृतयुग्म, द्वापरयुग्मत्र्योज, द्वापरयुग्मद्वापरयुग्म, द्वापरयुग्मकल्योज, कल्योजकृतयुग्म, कल्योजत्र्योज, कल्योजद्वापरयुग्म और कल्योजकल्योज । भगवन् ! क्या कारण है कि महायुग्म सोलह कहे गए हैं ? गौतम ! -जिस राशि में चार संख्या का अपहार करते हुए :- (१) चार शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय भी कृतयुग्म (चार) हों तो वह राशि कृतयुग्मकृतयुग्म कहलाती है, (२) तीन शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय कृतयुग्म हों तो वह राशि कृतयुग्मत्र्योज कहलाती है । (३) दो शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय कृतयुग्म हों तो वह राशि कृतयुग्मद्वापरयुग्म कहलाती है, (४) एक शेष रहे और उस राशि के अपहारसमय कृतयुग्म हों तो वह राशि कृतयुग्मकल्योज कहलाती है, (५) चार शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय त्र्योज हों तो वह राशि त्र्योजकृतयुग्म कहलाती है, (६) तीन शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय भी त्र्योज हों तो वह राशि त्र्योजत्र्योज कहलाती है । (७) दो बचें और उस राशि के अपहारसमय त्र्योज हों तो वह राशि त्र्योजद्वापरयुग्म कहलाती है, (८) एक बचे और उस राशि के अपहारसमय योज हों तो वह राशि त्र्योजकल्योज कहलाती है, (९) चार शेष रहें और उस राशि के अपहारसमय द्वापरयुग्म (दो) हों तो वह राशि द्वापरयुग्मकृतयुग्म कहलाती है, (१०) तीन शेष
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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