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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
के भी अट्ठाईस उद्देशक जानना । विशेष यह है कि ‘उत्पन्न' के स्थान पर 'उद्वर्तित' कहना । शेष पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।' शतक-३२ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(शतक-३३) -: शतकशतक-१ :
उद्देशक-१ [१०१८] भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पांच प्रकार के पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक । भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के सूक्ष्मपृथ्वीकायिक और बादरपृथ्वीकायिक । भगवन् ! सूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! दो प्रकार के पर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक
और अपर्याप्त सूक्ष्मपृथ्वीकायिक । भगवन् ! बादरपृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे हैं ? गौतम ! पूर्ववत् । इसी प्रकार अप्कायिक जीवों के चार भेद जानने चाहिए । इसी प्रकार वनस्पतिकायिक जीव पर्यन्त जानना ।
भगवन् ! अपर्याप्तसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही हैं ? गौतम ! आठ । ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायकर्म । भगवन् ! पर्याप्तसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही हैं ? गौतम ! आठ । ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायकर्म । भगवन् ! अपर्याप्तबादर पृथ्वीकायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही हैं ? गौतम ! पूर्ववत् आठ । भगवन् ! पर्याप्तबादरपृथ्वीकायिक जीवों के कितनी कर्मप्रकृतियाँ कही हैं ? गौतम ! पूर्ववत् आठ । इसी प्रकार से यावत् पर्याप्तबादर वनस्पतिकायिक जीवों की कर्मप्रकृतियों समझना ।
भगवन् ! अपर्याप्तसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधते हैं ? गौतम ! सात भी बांधते हैं और आठ भी । सात बांधते हुए आयुकर्म को छोड़कर शेष सात तथा आठ बांधते हुए सम्पूर्ण आठ बांधते हैं । भगवन् ! पर्याप्तसूक्ष्मपृथ्वीकायिक कितनी कर्मप्रकृतियां बांधते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् सात या आठ । भगवन् ! इसी प्रकार शेष सभी पर्याप्तबादरवनस्पतिकायिक पर्यन्त कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् ।
भगवन् ! अपर्याप्तसूक्ष्मपृथ्वीकायिक जीव कितनी कर्मप्रकृतियों को वेदते हैं । गौतम ! वे चौदह कर्मप्रकृतियां वेदते हैं, यथा-ज्ञानावरणीय यावत् अन्तरायकर्म, श्रोत्रेन्द्रियावरण, चक्षुरिन्द्रियावरण, घ्राणेन्द्रियावरण, जिह्वेन्द्रियावरण, स्त्रीवेदावरण और पुरुषवेदावरण । इसी प्रकार चारों भेदों सहित, यावत्-हे भगवन् ! पर्याप्तबादरवनस्पतिकायिक जीव कितनी कर्मप्रकृतियां वेदते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् चौदह । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।'
| शतक-३३ शतकशतक-१
उद्देशक-२ [१०१९] भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक एकेन्द्रिय जीव कितने प्रकार के हैं ? गौतम ! पांच प्रकार के-पृथ्वीकायिक यावत् वनस्पतिकायिक । भगवन् ! अनन्तरोपपन्नक पृथ्वीकायिक जीव कितने प्रकार के कहे गए हैं ? गौतम ! दो प्रकार के सूक्ष्मअनन्तरोपपन्नक पृथ्वीकायिक