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________________ भगवती - ३१/-/१३ से १६/१०१२ २५ शतक - ३१ उद्देशक - १३ से १६ [१०१२] इसी प्रकार लेश्या सहित सम्यग्दृष्टि के चार उद्देशक कहना । विशेष यह है कि सम्यग्दृष्टि का प्रथम और द्वितीय, इन दो उद्देशकों में कथन है । पहले और दूसरे उद्देशक में अधः सप्तमनरकपृथ्वी में सम्यग्दृष्टि का उपपात नहीं कहना। 'भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।' शतक - ३१ उद्देशक - १७ से २० [१०१३] मिथ्यादृष्टि के भी भवसिद्धिकों के समान चार उद्देशक कहने चाहिए । शतक - ३१ उद्देशक- २० से २४ [१०१४] इसी प्रकार कृष्णपाक्षिक के लेश्याओं सहित चार उद्देशक भवसिद्धिकों के समान कहना । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।' शतक - ३१ उद्देशक - २५ से २८ [१०१५] इसी प्रकार शुक्लपाक्षिक के भी लेश्या सहित चार उद्देशक कहने चाहिए । यावत् भगवन् ! वालुकाप्रभापृथ्वी के कापोतलेश्या वाले शुक्लपाक्षिक क्षुद्रकल्योजराशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! पूर्ववत् । यावत् वे परप्रयोग से उत्पन्न नहीं हो । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है ।' ये सब मिला कर अट्ठाईस उद्देशक हुए । शतक - ३१ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण शतक- ३२ उद्देशक- १ [१०१६] भगवन् ! क्षुद्रकृतयुग्म- राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से उवर्तित होकर (मर कर) तुरन्त कहाँ जाते हैं और कहाँ उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं यावत् देवों में उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! इनका उद्वर्त्तन व्युत्क्रान्तिक पद अनुसार जानना । भगवन् ! वे जीव एक समय में कितने उद्वर्त्तित होते हैं ? गौतम ! चार, आठ, बारह, सोलह, संख्यात या असंख्यात उद्वर्त्तित होते हैं । भगवन् ! वे जीव किस प्रकार उद्वर्त्तित होते हैं ? गौतम ! जैसे कोई कूदने वाला इत्यादि पूर्ववत् यावत् वे आत्मप्रयोग से उवर्त्तित होते हैं, परप्रयोग से नहीं । भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के क्षुद्रकृतयुग्म- राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से उद्वर्त्तित होकर तुरन्त कहाँ जाते हैं ? गौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी के समान इनकी उद्वर्त्तना जानना । इसी प्रकार अधः सप्तमपृथ्वी तक उद्वर्त्तना जानना । इस प्रकार क्षुद्रत्र्योज, क्षुद्रद्वापरयुग्म और क्षुद्रकल्योज जानना । परन्तु इनका परिमाण पूर्ववत् पृथक्-पृथक् कहना । शेष पूर्ववत् । 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है । शतक - ३२ उद्देशक - २ से २८ [१०१७] भगवन् ! कृष्णलेश्या वाले क्षुद्रकृतयुग्म - राशिप्रमाण नैरयिक कहाँ से निकल कर कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? इसी प्रकार उपपातशतक के समान उद्वर्त्तनाशतक
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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