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उपासकदशा-५/३४
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(अध्ययन-५ चुलशतक) [३४] उपोद्घातपूर्वक पांचवें अध्ययन का आरम्भ । जम्बू ! उस काल-उस समयआलभिका नगरी थी । शंखवन उद्यान था । राजा का नाम जितशत्रु था । चुल्लशतक गाथापति था । वह बड़ा समृद्ध एवं प्रभावशाली था । छह करोड़ स्वर्ण-मुद्राएं उसके खजाने में रखी थी-यावत् उसके छह गोकुल थे । प्रत्येक गोकुल में दस-दस हजार गायें थी । उसकी पत्नी का नाम बहुला था । भगवान् महावीर पधारे । आनन्द की तरह चुल्लशतक ने भी श्रावक-धर्म स्वीकार किया । आगे का घटना-क्रम कामदेव की तरह है । यावत् अंगीकृत धर्म-प्रज्ञप्ति के अनुरूप उपासना-रत हुआ ।
[३५] एक दिन की बात है, आधी रात के समय चुल्लशतक के समक्ष एक देव प्रकट हुआ । उसने तलवार निकाल कर कहा-अरे श्रमणोपासक चुल्लशतक ! यदि तुम अपने व्रतों का त्याग नहीं करोगे तो मैं आज तुम्हारे ज्येष्ठ पुत्र को घर से उठा लाऊंगा । चुलनीपिता के समान घटित हुआ । देव ने बड़े, मंझले तथा छोटे-तीनों पुत्रों को क्रमशः मारा, मांस-खण्ड किए । मांस और रक्त से चुल्लशतक की देह को छींटा । विशेषता यह कि यहां देव ने सात सात खंड किए । तब भी श्रमणोपासक चुल्लशतक निर्भय भाव से उपासनारत रहा । देव ने श्रमणोपासक चुल्लशतक को चौथी बार कहा-अरे श्रमणोपासक चुल्लशतक ! तुम अब भी अपने व्रतों को भंग नहीं करोगे तो मैं खजाने में रखी तुम्हारी छह करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं, व्यापार में लगी तुम्हारी छह करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं तथा घर के वैभव और साज-सामान में लगी छह करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं को ले आऊंगा । लाकर आलभिका नगरी के श्रृंगाटक यावत् राजमार्गों में सब तरफ बिखेर दूंगा | जिससे तुम आर्तध्यान एवं विकट दुःख से पीडित होकर असमय में ही जीवन से हाथ धो बैठोगे । उस देव द्वारा यों कहे जाने पर भी श्रमणोपासक चुल्लशतक निर्भीकतापूर्वक अपनी उपासना में लगा रहा ।
जब उस देव ने श्रमणोपासक चुल्लशतक को यों निर्भीक देखा तो उससे दूसरी बार, तीसरी बार फिर वैसा ही कहा और धमकाया-अरे ! प्राण खो बैठोगे ! उस देव ने जब दूसरी बार, तीसरी बार श्रमणोपासक चुल्लशतक को ऐसा कहा, तो उसके मन में चुलनीपिता की तरह विचार आया, इस अधम पुरुष ने मेरे बड़े, मझले और छोटे-तीनों पुत्रों को बारी-बारी से मार कर, उनके मांस और रक्त से सींचा । अब यह मेरी खजाने में रखी छह करोड़ स्वर्ण-मुद्राओं, यावत् उन्हें आलभिका नगरी के तिकोने आदि स्थानों में बिखेर देना चाहता है । इसलिए, मेरे लिए यही श्रेयस्कर है कि मैं इस पुरुष को पकड़ लूं । यों सोचकर वह उसे पकड़ने के लिए सुरादेव की तरह दौड़ा । आगे सुरादेव के समान घटित हुआ था । सुरादेव की पत्नी की तरह उसकी पत्नी ने भी उससे सब पूछा । उसने सारी बात बतलाई । आगे की घटना चुलनीपिता की तरह है । देह-त्याग कर चुल्लशतक सौधर्म देवलोक में अरुणसिद्ध विमान में देव के रूप में उत्पन्न हुआ । वहां उसकी आयुस्थिति चार पल्योपम की बतलाई गई है । यावत् वह महाविदेहक्षेत्र में सिद्ध होगा । अध्ययन-५ का मुनिदीपरत्नसागर कृत् हिन्दी अनुवाद पूर्ण
(अध्ययन-६ कुंडकोलिक) [३७] जम्बू ! उस काल-उस समय-काम्पिल्यपुर नगर था । सहस्त्राम्रवन उद्यान था।