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ज्ञाताधर्मकथा-१/-/१५/१५७
अन्यतर- देवलोक में देव पर्याय में उत्पन्न हुआ । देवलोक से आयु का क्षय होने पर महाविदेह क्षेत्र में सिद्धि प्राप्त करेगा, यावत् जन्म-मरण का अन्त करेगा । इस प्रकार हे जम्बू ! श्रमण भगवान् महावीर ने पन्द्रहवें ज्ञात - अध्ययन का यह अर्थ कहा है । ऐसा मैं कहता हुं । अध्ययन- १५- का मुनि दीपरत्नसागर कृत हिन्दी अनुवाद पूर्ण
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अध्ययन - १६- 'अपरकंका'
[१५८] 'भगवन् ! यदि श्रमण भगवान् महावीर ने पन्द्रहवें ज्ञात - अध्ययन का यह अर्थ कहा है, तो सोलहवें ज्ञात अध्ययन का श्रमण भगवान् महावीर ने क्या अर्थ कहा हैं ?' 'जम्बू ! उस काल और उस समय में चम्पा नामक नगरी थी । उस चम्पा नगरी से बाहर ईशान दिशा के भाग में सुभूमिभाग नामक उद्यान था । उस चम्पा नगरी में तीन ब्राह्मण-बन्धु निवास करते थे । सोम, सोमदत्त ओर सोमभूति । वे धनाढ्य थे यावत् ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद तथा अन्य ब्राह्मणशास्त्रों में अत्यन्त प्रवीण थे । उन तीन ब्राह्मणों की तीन पनियाँ थीं; नागश्री, भूतश्री और यक्ष श्री । वे सुकुमार हाथ-पैर आदि अवयवों वाली यावत् उन ब्राह्मणों की इष्ट थीं । वे मनुष्य सम्बन्धी विपुल कामभोग भोगती हुई रहती थीं ।
किसी समय, एक बार एक साथ मिले हुए उन तीनों ब्राह्मणों में इस प्रकार का समुल्लाप हुआ- 'देवानुप्रियो ! हमारे पास यह प्रभूत धन यावत् स्वापतेय-द्रव्य आदि विद्यमान है । सात पीढ़ियों तक खूब दिया जाय, खूब भोगा जाय और खूब बाँटा जाय तो भी पर्याप्त है । अतएव हे देवानुप्रियो ! हम लोगों का एक-दूसरे के घरों में प्रतिदिन बारी-बारी से विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम बनवा - बनवा कर एक साथ बैठ कर भोजन करना अच्छा रहेगा ।' तीनों ब्राह्मणबन्धुओं ने आपस की यह बात स्वीकार की । वे प्रतिदिन एक-दूसरे के घरों में प्रचुर अशन, पान, खादिम और स्वादिम बनवा कर साथ-साथ भोजन करने लगे । तत्पश्चात् एक बार नागश्री ब्राह्मणी के यहाँ भोजन की बारी आई । तब नागश्री ने विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम भोजन बनाया । सार युक्त तूंबा बहुत से मसाले जाल कर और तेल से व्याप्त कर तैयार किया उस शाक में से एक बूंद अपनी हथेली में लेकर चखा तो मालूम हुआ कि यह खारा, कड़वा, अखाद्य और विष जैसा है । यह जान कर वह मन ही मन कहने लगी- 'मुझ अधन्या, पुण्यहीना, अभागिनी, भाग्यहीन, अत्यन्त अभागिनीनिंबोली के समान अनादरणीय नागश्री को धिक्कार है, जिस ने यह रसदार तूंबा बहुत से मसारों से युक्त और तेल से छौंका हुआ तैयार किया । इसके लिए बहुत-सा द्रव्य बिगाड़ा और तेल का भी सत्यानाश किया ।
सो यदि मेरी देवरानियाँ यह वृत्तान्त जानेंगी तो मेरी निन्दा करेंगी । अतएव जब तक मेरी देवरानियाँ न जान पाएँ तब तक मेरे लिए यही उचित होगा कि इस बहुत मसालेदार और स्नेह से युक्त कटुक तुंबे को किसी जगह छिवा दिया जाय और दूसरा सारयुक्त मीठा तुंबा मसाले डाल कर और बहुत-से तेल से छौंक कर तैयार किया जाय । विचार करके उस कटुक शरदऋतु सम्बन्धी तूंबे को यावत् छिपा दिया और मीठा तुंबा तैयार किया । वे ब्राह्मणं स्नान करके यावत् सुखासन पर बैठे । उन्हें वह प्रचुर अशन, पान, खादिम और स्वादिम परोसा गया। भोजन कर चुकने के पश्चात् आचमन करके स्वच्छ होकर और परम शुचि होकर अपने