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________________ १७६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद से उत्कृष्ट और शरीर से भी उत्कृष्ट थी । ___ एक बार किसी समय पोट्टिला दारका स्नान करके और सब अलंकारों से विभूषित होकर, दासियों के समूह से परिवृत होकर, प्रासाद के ऊपर रही हुई अगासी की भूमि में सोने की गेंद से क्रीड़ा कर रही थी । इधर तेतलिपुत्र अमात्य स्नान करके, उत्तम अश्व के स्कंध पर आरूढ़ होकर, बहुत-से सुभटों के समूह के साथ घुड़सवारी के लिए निकला । वह कलाद मूषिकारदारक के घर के कुछ समीप होकर जा रहा था । उस समय तेतलिपुत्र ने मूषिकारदारक के घर के कुछ पास से जाते हुए प्रासाद की ऊपर की भूमि पर अगासी में सोने की गेंद से क्रीड़ा करती पोट्टिला दारिका को देखा । देखकर पोट्टिला दारिका के रूप, यौवन और लावण्य में यावत् अतीव मोहित होकर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया और उनसे पूछा-देवानुप्रियो ! यह किसी लड़की है ? इसका नाम क्या हैं ? तब कौटुम्बिक पुरुषों ने तेतलिपुत्र से कहा'स्वामिन् ! यह कलाद मूषकारदारक की पुत्री, भद्रा की आत्मजा पोट्टिला नामक लड़की है । रूप, लावण्य और यौवन से उत्तम है और उत्कृष्ट शरीरवाली है ।' तत्पश्चात् तेतलिपुत्र घुड़सवारी से पीछे लौटा तो उसने अभ्यन्तर-स्थानीय पुरुषों को बुलाकर कहा-'देवानुप्रियो ! तुम जाओ और कलाद मूषिकारदारक की पुत्री, भद्रा की आत्मजा पोट्टिला दारिका की मेरी पत्नी के रूप में मंगनी करो । तब वे अभ्यन्तर-स्थानीय पुरुष तेतलिपुत्र के इस प्रकार कहने पर हृष्ट-तुष्ट हुए । दसों नखों को मिलाकर, दोनों हाथ जोड़कर और मस्तक पर अंगुलि करके विनयपूर्वक आदेश स्वीकार किया और मूषिकारदारक कलाद के घर आये | मूषिकारदारक कलाद ने उन पुरुषों को आते देखा तो वह हृष्ट-तुष्ट हुआ, आसन से उठ खड़ा हुआ, सात-आठ कदम आगे गया; बैठने के लिए आमन्त्रण किया । जब वे आसन पर बैठे, स्वस्थ हुए और विश्राम ले चुके तो मूषिकारदारक ने पूछा-'देवानुप्रियों ! आज्ञा दीजिए । आपके आने का क्या प्रयोजन है ? तब उन अभ्यन्तर-स्थानीय पुरुषों ने कलाद मूषिकारदारक से कहा-'देवानुप्रिय ! हम तुम्हारी पुत्र, पोट्टिला दारिका की तेतलिपुत्र की पत्नी के रूप में मंगनी करते हैं । देवानुप्रिय ! अगर तुम समझते हो कि यह सम्बन्ध उचित हैं, प्राप्त या पात्र हैं, प्रशंसनीय है, दोनों का संयोग सदृश है, तो तेतलिपुत्र को पोट्टिला दारिका प्रदान करो । कहो, इसके बदले क्या शुल्क दिया जाए ? तत्पश्चात् कलाद मूषिकारदारक ने उन अभ्यन्तर-स्थानीय पुरुषों से कहा- 'देवानुप्रियो ! यही मेरे लिए शुल्क है जौ तेतलिपुत्र दारिका के निमित्त से मुझ पर अनुग्रह कर रहे हैं ।' उस प्रकार कहकर उसने उन का विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम से तथा पुष्प, वस्त्र, गंध से एवं माला और अलंकार से सत्कार-सम्मान करके उन्हें विदा किया । तत्पश्चात् वे अभ्यन्तर-स्थानीय पुरुष कलाद मूषिकारदारक के घर से निकले । तेतलिपुत्र अमात्य के पास पहुँचे । तेतलिपुत्र को यह पूर्वोक्त अर्थ निवेदन किया । तत्पश्चात् कलाद मूषिकारदारक ने अन्यदा शुभ तिथि, नक्षत्र और मुहूर्त में पोट्टिला दारिका को स्नान करा कर और समस्त अलंकारों से विभूषित करके शिविका में आरूढ़ किया । वह मित्रों और ज्ञातिजनों से परिवृत होकर अपने घर से निकल कर, पूरे ठाठ के साथ, तेतारपुर के बीचोंबीच होकर तेतलिपुत्र अमात्य के पास पहुँचा । पहुँच कर पोट्टिला दारिका को स्वयमेव तेतलिपुत्र की पत्नी के रूप में प्रदान किया ।
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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