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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
[९३] इस प्रकार उन जितशत्रु प्रभृति छहों राजाओं के दूत, जहाँ मिथिला नगरी थी वहाँ जाने के लिए रवाना हो गये । छहों दूत जहाँ मिथिला थी, वहाँ आये । मिथिला के प्रधान उद्यान में सब ने अलग-अलग पड़ाव डाले । फिर मिथिला राजधानी में प्रवेश करके कुम्भ राजा के पास आये । प्रत्येक-प्रत्येक ने दोनों हाथ जोड़े और अपने-अपने राजाओं के वचन निवेदन किये । कुम्भ राजा उन दूतों से यह बात सुनकर एकदम क्रुद्ध हो गया । यावत् ललाट पर तीन सल डाल कर उसने कहा- 'मैं तुम्हें विदेहराज की उत्तम कन्या मल्ली नहीं देता ।' छहों का सत्कार-सम्मान न करके उन्हें पीछे के द्वार से निकाल दिया ।
कुम्भ राजा के द्वारा असत्कारित, असम्मानित और अपद्वार से निश्कासित वे छहों राजाओं के दूत जहाँ अपने-अपने जनपद थे, जहाँ अपने-अपने नगर थे और जहाँ अपनेअपने राजा थे, वहाँ पहुँच कर हाथ जोड़ कर एवं मस्तक पर अंजलि करके इस प्रकार कहने -'इस प्रकार हे स्वामिन् ! हम जितशत्रु वगैरह छह राजाओं के दूत एक ही साथ जहाँ मिथिला नगरी थी, वहाँ पहुँचे । मगर यावत् राजा कुम्भ ने सत्कार-सम्मान न करके हमें अपद्वार से निकाल दिया । सो हे स्वामिन् ! कुम्भ राजा विदेहराजवरकन्या मल्ली आप को नहीं देता ।' दूतों ने अपने-अपने राजाओं से यह अर्थ-वृत्तान्त निवेदन किया । तत्पश्चात् वे जितशत्रु वगैरह छहों राजा उन दूतों से इस अर्थ को सुनकर कुपित हुए । उन्होंने एक दूसरे के पास दूत भेजे और इस प्रकार कहलवाया - 'हे देवानुप्रिय ! हम छहों राजाओं के दूत एक साथ ही यावत् निकाल दिये गये । अतएव हे देवानुप्रिय ! हम लोगों के कुम्भ राजा की और प्रयाण करना चाहिए । इस प्रकार कहकर उन्होंने एक दूसरे की बात स्वीकार की । स्वीकार करके स्नान किया सन्नद्ध हुए । हाथी के स्कन्ध पर आरूढ़ हुए । कोरंट वृक्ष के फूलों की माला वाला छत्र धारण किया । श्वेत चामर उन पर ढोरे जाने लगे । बड़े-बड़े घोड़ों, हाथियों, रथों
और उत्तम योद्धाओं सहित चतुरंगिणी सेना से परिवृत होकर, सर्व ऋद्धि के साथ, यावत् दुंदुभि की ध्वनि के साथ अपने-अपने नगरों के निकले । एक जगह इकट्ठे होकर जहाँ मिथिला नगरी थी, वहाँ जाने के लिए तैयार हुए ।
तत्पश्चात् कुम्भ राजा ने इस कथा का अर्थ जानकर अपने सेनापति को बुलाकर कहा- 'हे देवानुप्रिय ! शीघ्र ही घोड़ों, हाथियों, रथों और उत्तम योद्धाओं से युक्त चतुरंगी सेना तैयार करो ।' यावत् सेनापति ने सेना तैयार करके आज्ञा वापिस लौटाई । तत्पश्चात् कुम्भ राजा ने स्नान किया । कवच धारण करके सन्नद्ध हुआ । श्रेष्ठ हाथी के स्कन्ध पर आरूढ़ हुआ । कोरंट के फूलों की माला वाला छत्र धारण किया । उसके ऊपर श्रेष्ठ और श्वेत चामर ढोरे जाने लगे । यावत् मिथिला राजधानी के मध्य में होकर निकला । विदेह जनपद के मध्य में होकर जहाँ अपने देश का अन्त था, वहाँ आया । वहाँ पड़ाव डाला । जितशत्रु प्रभृति छहों राजाओं की प्रतीक्षा करता हुआ युद्ध के लिए सज्ज होकर ठहर गया । तत्पश्चात् वे जितशत्रु प्रभृति छहों राजा, जहाँ कुम्भ राजा था, वहाँ आकर कुम्भ राजा के साथ युद्ध करने में प्रवृत्त हो गये ।
। तत्पश्चात् उन जितशत्रु प्रभृति छहों राजाओं ने कुम्भ राजा के सैन्य का हनन किया, मंथन किया, उसके अत्युत्तम योद्धाओं का घात किया,उसकी चिह्न रूप ध्वजा और पताका को छिन्न-भिन्न करके नीचे गिरा दिया । उसके प्राण संकट में पड़ गये । उसकी सेना चारों