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________________ १३६ आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद सांयात्रिक नौवणिक् रहते थे । वे ऋद्धिसम्पन्न थे और किसी से पराभूत होने वाले नहीं थे । उनके अर्हन्त्रक श्रमणोपासक भी था, वह जीव- अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता था । वे अर्हन्नक आदि सांयात्रिक नौवणिक् किसी समय एक बार एक जगह इकट्ठे हुए, तब उनमें आपस में इस प्रकार कथासंलाप हुआ हमें गणिम, धरिम, मेय और परिच्छेद्य यह चार प्रकार का भांड लेकर, जहाज द्वारा लवणसमुद्र में प्रवेश करना चाहिए ।' इस प्रकार विचार करके उन्होनें परस्पर में यह बात अंगीकार करके गणिम, धरिम, मेय और परिच्छेद्य भांड को ग्रहण करके छकडीछकड़े भरे । शुभ तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त में अशन, पान, खादिम और स्वादिन आहार बनवाया । भोजन की वेला में मित्रों, ज्ञातिजनों, निजजनों, स्वजनों सम्बन्धीजनों एवं परिजनों को जिमाया, यावत् उनकी अनुमति लेकर गाड़ी - गाड़े जोते । चम्पा नगरी से निकल कर जहां गंभीर नामक पोतपट्टन था, वहां आये । गंभीर नामक पोतपट्टन में आकर उन्होंने गाड़ी गाड़े छोड़ दिए । जहाज सज्जित करके गणिम, धरिम, मेय और परिच्छेद्य चार प्रकार का भांड भरा । भरकर उसमें चावल, आटा, तेल, घी, गोरस, पानी, पानी के बरतन, औषध, भेषज, घास, लकड़ी, वस्त्र, शस्त्र तथा और भी जहाज में रखने योग्य अन्य वस्तुएँ जहाज में भरीं । प्रशस्त तिथि, करण, नक्षत्र और मुहूर्त में अशन, पान, खाद्य तैयार करवा कर मित्रों, ज्ञातिजनों, निजजनों, स्वजनों, सम्बन्धियों एवं परिजनों को जिमा कर उनसे अनुमति ली । जहाँ नौका का स्थान था, वहाँ आये । तत्पश्चात् उन अर्हन्नक आदि यावत् नौका- वणिकों के परिजन यावत् वचनों से अभिनन्दन करते हुए और उनकी प्रशंसा करते हुए इस प्रकार बोले- 'हे आर्य ! हे तात ! हे भ्रात ! हे मामा ! हे भागिनेय ! आप इस भगवान् समुद्र द्वारा पुनः पुनः रक्षण किये जाते हुए चिरंजीवी हों । आपका मंगल हो । हम आपको अर्थ का लाभ करके, इष्ट कार्य सम्पन्न करके, निर्दोष-विना किसी विघ्न के और ज्यों का त्यों घर पर आया शीघ्र देखें ।' इस प्रकार कह कर सोम, स्नेहमय, दीर्घ, पिपासा वाली सतृष्ण और अश्रुप्लावित दृष्टि से देखते-देखते वे लोग मुहूर्तमात्र अर्थात् थोड़ी देर तक वहीं खड़े रहे । तत्पश्चात् नौका में पुष्वबलि समाप्त होने पर, सरस रक्तचंदन का पांचों उंगलियों का थापा लगाने पर, धूप खेई जाने पर, समुद्र की वायु की पूजा हो जाने पर, बलयवाहा यथास्थान संभाल कर रख लने पर, श्वेत पताकाएँ ऊपर फहरा देने पर, वाद्यों की मधुर ध्वनि होने परह विजयकारक सब शकुन होने पर, यात्रा के लिए राजा का आदेशपत्र प्राप्त हो जाने पर, महान् और उत्कृष्ट सिंहनाद यावत् ध्वनि से अत्यन्त क्षुब्ध हुए महासमुद्र की गर्जना के समान पृथ्वी को शब्दमय करते हुए एक तरफ से नौका पर चढ़े । तत्पश्चात् वन्दीजन ने इस प्रकार वचन कहा - 'हे व्यापारियों ! तुम सब को अर्थ की सिद्धि हो, तुम्हें कल्याण प्राप्त हुए हैं, तुम्हारें समस्त पाप नष्ट हुए हैं । इस समय पुष्य नक्षत्र चन्द्रमा से युक्त हैं और विजय नामक मुहूर्त है, अतः यह देश और काल यात्रा के लिए उत्तम है । तत्पश्चात् वन्दीजन के द्वारा इस प्रकार वाक्य कहने पर हृष्ट-तुष्ट हुए कुक्षिधार - नौका की बगल में रहकर बल्ले चलानेवाले, कर्णधार गर्भज-नौका के मध्य में रहकर छोटे-मोटे कार्य करनेवाले और वे सांयात्रिक नौकावणिक् अपने-अपने कार्य में लग गये । फिर भांडों से परिपूर्ण मध्यभाग वाली और मंगल से परिपूर्ण अग्रभाग वाली उस नौका को बन्धनों से मुक्त किया ।
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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