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________________ १२६ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद करके ये पांच दाने बो देना । बोकर दो-तान बार उत्क्षेप-निक्षेप करना अर्थात् एक जगह से उखाड़ कर दूसरी जगह रोपना । फिर क्यारी के चारों ओर बाड़ लगाना । इनकी रक्षा और संगोपना करते हुए अनुक्रम से इन्हें बढ़ाना । ___ उन कौटुम्बिक पुरुषों ने रोहिणी के आदेश को स्वीकार किया । उन चावल के पांच दानों के ग्रहण किया । अनुक्रम से उनका संरक्षण, संगोपन करते हुए रहने लगे। उन कौटुम्बिक पुरुषों ने वर्षाऋतु के प्रारम्भ में महावृष्टि पड़ने पर छोटी-सी क्यारी साफ की । पांच चावल के दान बोये । बोकर दूसरी और तीसरी बार उनका उत्क्षेप-निक्षेप किया, बाड़ लगाई। फिर अनुक्रम से संरक्षण, संगोपन और संवर्धन करते हुए विचरने लगे । संरक्षित, संगोपित और संवर्धित किए जाते हुए वे शालि-अक्षत अनुक्रम से शालि हो गये । वे श्याम कान्ति वाले यावत् निकुरंबभूत- होकर प्रसन्नता प्रदान करने वाले, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हो गये। उन शालि पौधों में पत्ते आ गये, वे वर्तित हो गये, छाल वाले हो गये, गर्भित हो गये, प्रसूत हुए, सुगन्ध वाले हुए, बद्धफल हुए, पक गए, तैयार हो गये, शल्यकित हुए, पत्रकित हुए और हरितपर्वकाण्ड हो गए । इस प्रकार वे शालि उत्पन्न हुए । तत्पश्चात् उन कौटुम्बिक पुरुषों ने वह शालि पत्र वाले यावत् शलाका वाले तथा विरल पत्र वाले जान कर तीखे और पजाये हुए हँसियों से काटे, काटकर उनका हथेलियों से मर्दन किया । साफ किया । इससे वे चोखे-निर्मल, शुचि-पवित्र, अखंड और अस्फुटिक-बिना टूटे-फूटे और सूप से झटक-झटक कर साफ किये हुए हो गए । वे मगध देश में प्रसिद्ध एक प्रस्थक प्रमाण हो गये । तत्पश्चात् कौटुम्बिक पुरुषों ने उन प्रस्थ-प्रमाण शालिअक्षतों को नवीन घड़े में भरा । भर कर उसके मुख पर मिट्टी का लेप कर दिया । लेप करके उसे लांछितमुद्रित किया-उस पर सील लगा दी । फिर उसे कोठार के एक भाग में रख दिया । रख कर उसका संरक्षण और संगोपन करने लगे । ___ तत्पश्चात् उन कौटुम्बिक पुरुषों ने दूसरी वर्षाऋतु में वर्षाकाल के प्रारम्भ में महावृष्टि पड़ने पर एक छोटी क्यारी को साफ किया । वे शालि बो दिये । दूसरी बार और तीसरी बार उनका उत्क्षेप-निक्षेप किया । यावत् लुनाई की । यावत् पैरों के तलुओं से उनका मर्दन किया, साफ किया । अब शालि के बहुत-से कुड़व हो गए, यावत् उन्हें कोठार के एक भाग में रख दिया । कोठार में रख कर उनका संरक्षण और संगोपन करते हुए विचरने लगे । तत्पश्चात् उन कौटुम्बिक पुरुषों ने तीसरी बार वर्षाऋतु में महावृष्टि होने पर बहुत-सी क्यारियाँ अच्छी तरह साफ की । यावत् उन्हें बोकर काट लिया । यावत् अब वे बहुत-से कुम्भ प्रमाण शालि हो गये । तत्पश्चात् उन कौटुम्बिक पुरुषों ने वह शालि कोठार में रखे, यावत् उनकी रक्षा करने लगे । चौथी वर्षाऋतु में इसी प्रकार करने से सैकड़ों कुम्भ प्रमाण शालि हो गए । तत्पश्चात् जब पांचवां वर्ष चल रहा था, तब धन्या सार्थवाह को मध्य रात्रि के समय इस प्रकार का विचार यावत उत्पन्न हआ-मैंने इससे पहले के-अतीत पांचवें वर्ष में चारों पुत्रवधुओं को परीक्षा करने के निमित्त, पाँच चावल के दाने उनके हाथ में दिये थे । तो कल यावत् सूर्योदय होने पर पाँच चावल के दाने माँगना मेरे लिए उचित होगा । यावत् जानूं तो सही कि किसने किस प्रकार उनका संरक्षण, संगोपन और संवर्धन किया है? धन्य-सार्थवाह दूसरे दिन सूर्योदय होने पर विपुल अशन, पान, खादिम और स्वादिम बनवाया । मित्रों,
SR No.009783
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size11 MB
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