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________________ ७४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद जीव जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार अवधिदर्शनी, आहारसंज्ञोपयुक्त, यावत् परिग्रहसंज्ञोपयुक्त भी जानना स्त्रीवेदी जीव उत्पन्न नहीं होते, न पुरुषवेदी जीव उत्पन्न होते हैं । नपुंसकवेदी जीव जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार क्रोधकषायी यावत् लोभकषायी जीवों को जानना | श्रोत्रेन्द्रियोपयुक्त यावत् स्पर्शेन्द्रियोपयुक्त जीव वहाँ उत्पन्न नहीं होते । नो-इन्द्रियोपयुक्त जीव जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं । मनोयोगी और वचनयोगी जीव वहाँ उत्पन्न नहीं होते, काययोगी जीव जघन्य एक, दो, तीन और उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार साकारोपयोग वाले एवं अनाकारोपयोग वाले जीवों के विषय में भी समझना । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से संख्यात योजन विस्तार वाले नरकों में से एक समय में कितने नैरयिक उद्धर्त्तते हैं ? कितने कापोतलेश्यी नैरयिक उद्धर्तते हैं ? यावत् कितने अनाकारोपयुक्त नैरयिक उद्धर्तते हैं ? गौतम ! एक समय में जघन्य एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट संख्यात नैरयिक उद्वर्त्तते हैं । कापोतलेश्यी नैरयिक जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उद्धर्तते हैं । इसी प्रकार यावत् संज्ञी जीव तक नैरयिक-उद्धर्तना कहना । असंज्ञी जीव नहीं उद्धर्तते । भवसिद्धिक नैरयिक जीव जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उद्धर्तते हैं । इसी प्रकार यावत् श्रुत-अज्ञानी तक उद्वर्तना कहनी चाहिए । विभंगज्ञानी नहीं उद्धर्तते । चक्षुदर्शनी भी नहीं उद्धर्तते । अचक्षुदर्शनी जीव जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उद्धर्तते हैं । इसी प्रकार यावत् लोभकषायी नैरयिक जीवों तक की उद्धर्तना कहना । श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शेन्द्रिय के उपयोग वाले भी नहीं उद्धर्तते । नोइन्द्रियोपयोगयुक्त नैरयिक जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उद्धर्तते हैं । मनोयोगी और वचनयोगी भी नहीं उद्धर्तते । काययोगी जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात उद्धर्तते हैं । इसी प्रकार साकारोपयोग वाले और अनाकारोपयोग वाले नैरयिक जीवों की उद्धर्तना कहना । भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नारकावासों में से संख्यात योजन विस्तार वाले नरकों में कितने नारक कहे गए हैं ? कितने कापोतलेश्यी यावत् कितने अनाकारोपयोग वाले नैरयिक हैं ? कितने अनन्तरोपपन्नक कहे गए हैं ? कितने परम्परोपपत्रक कहे गए हैं ?, कितने अनन्तरावगाढ कहे गए हैं ? कितने परम्परावगाढ कहे गए हैं ? कितने अनन्तराहारक कहे गए हैं ?, कितने परम्पराहारक कहे गए हैं ? कितने अनन्तपर्याप्तक कहे गए हैं ? कितने परम्परपर्याप्तक कहे गए हैं ? कितने चरम कहे गए हैं ? और कितने अचरम कहे गए हैं ? गौतम ! संख्यात नैरयिक हैं । संख्यात कापोतलेश्यी जीव हैं । इसी प्रकार यावत् संख्यात संज्ञी जीव हैं । असंज्ञी जीव कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते । यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात होते हैं । भवसिद्धिक जीव संख्यात हैं । इसी प्रकार यावत् परिग्रहसंज्ञा के उपयोग वाले नैरयिक संख्यात हैं । (वहाँ) स्त्रीवेदक नहीं होते, पुरुषवेदक भी नहीं होते । (वहाँ) नपुंसकवेदी संख्यात कहे गए हैं । इसी प्रकार क्रोधकषायी भी संख्यात होते हैं । मानकषायी नैरयिक असंज्ञी नैरयिकों के समान । इसी प्रकार यावत् लोभकषायी नैरयिकों के विषय में भी कहना । श्रोत्रेन्द्रिय यावत् स्पर्शेन्द्रियोपयोगयुक्त नैरयिक संख्यात हैं । नो-इन्द्रियोपयोगयुक्त नारक, असंज्ञी नारक जीवों के समान है । मनोयोगी यावत् अनाकारोपयोग वाले नैरयिक संख्यात कहे गए हैं । अनन्तरोपपन्नक नैरयिक कदाचित् होते हैं, कदाचित् नहीं होते; यदि होते हैं तो असंज्ञी
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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