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आगमसूत्र - हिन्दी अनुवाद
आत्मा, नो आत्मा और आत्मा-नो आत्मा-उभयरूप से अवक्तव्य है । इसलिए हे गौतम! त्रिप्रदेशी स्कन्ध को कथंचित् आत्मा, यावत्-आत्मा-नो आत्मा उभयरूप से अवक्तव्य कहा गया है ।
भगवन् ! चतुष्प्रदेशी स्कन्ध सद्रूप है, अथवा असद्रूप है ? गौतम ! चतुष्प्रदेशी स्कन्ध-कथंचित् आत्मा है, कथंचित् नो आत्मा है आत्मा - नोआत्मा उभयरूप होने से - अवक्तव्य है । कथंचित् आत्मा और नो आत्मा है; कथञ्चित् आत्मा और अवक्तव्य है; कथञ्चित् नो आत्मा और अवक्तव्य, कथंचित् आत्मा और नो आत्मा तथा आत्मा-नो आत्मा उभयरूप से अवक्तव्य है । कथंचित् आत्मा और नो आत्मा तथा आत्माएँ और नो- आत्माएँ उभय होने से अवक्तव्य है । कथंचित् आत्मा और नो आत्माएँ तथा आत्मा - नो आत्मा - उभयरूप होने से - ( कथंचित् ) अवक्तव्य है और कथंचित् आत्माएँ, नो-आत्मा, तथा आत्मा-नो आत्मा - उभयरूप होने से (कथंचित्) अवक्तव्य हैं । भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं ? गौतम ! अपने आदेश से सद्रूप है, पर के आदेश से नो आत्मा है; तदुभय के आदेश से अवक्तव्य है । एक देश के आदेश से सद्भाव-पर्याय की अपेक्षा से और एक देश के आदेश से असद्भाव - पर्याय की अपेक्षा से चार भंग होते हैं । सद्भावपर्याय और तदुभयपर्याय की अपेक्षा से चार भंग होते हैं । असद्भावपर्याय और तदुभयपर्याय की अपेक्षा से चार भंग होते हैं । एक देश के आदेश से सद्भावपर्याय की अपेक्षा से, एक देश के आदेश से असद्भाव - पर्याय की अपेक्षा से और बहुत देशों के आदेश से तदुभय-पर्याय की अपेक्षा से चतुष्प्रदेशी स्कन्ध, आत्मा, नो-आत्मा और आत्मा-नो-आत्मा-उभयरूप होने से अवक्तव्य है । एक देश के आदेश से सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से, एक देश के आदेश से असद्भावपर्याय की अपेक्षा से और बहुत देशों के आदेश से तदुभय-पर्याय की अपेक्षा से चतुष्प्रदेशी स्कन्ध आत्मा नो आत्मा, और आत्माएँ-नो- आत्माएँ इस उभयरूप से अवक्तव्य है । एक देश के आदेश से सद्भावपर्याय की अपेक्षा से बहुत देशों के आदेश से असद्भावपर्यायों की अपेक्षा से और एकदेश के आदेश से तदुभयपर्याय की अपेक्षा से चतुष्पदेशी स्कन्ध आत्मा, नो- आत्माएँ और आत्मा-नो आत्मा उभयरूप से अवक्तव्य है । बहुत देशों के आदेश से सद्भाव - पर्यायों की अपेक्षा से, एक देश के आदेश से असद्भावपर्याय की अपेक्षा से तथा एक देश के आदेश से तदुभयपर्याय की अपेक्षा से चतुष्प्रदेशी स्कन्ध आत्माएँ नो आत्मा और आत्मा-नो आत्मा उभयरूप से अवक्तव्य है । इस कारण हे गौतम! ऐसा कहा जाता है कि प्रदेश स्कन्ध कथंचित् आत्मा है, कथंचित् नो- आत्मा है और कथंचित् अवक्तव्य है ।
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भगवन् ! पंचप्रदेशी स्कन्ध आत्मा है, अथवा अन्य है ? गौतम ! पंचप्रदेशी स्कन्ध कथंचित् आत्मा है, कथंचित् नो आत्मा है, आत्मा-नो- आत्मा - उभयरूप होने से कथंचित् अवक्तव्य है । कथंचित् आत्मा और नो आत्मा कथंचित् आत्मा और अवक्तव्य (कथंचित्) नो आत्मा और अवक्तव्य तथा त्रिकसंयोगी आठ भंगों में एक भंग घटित नहीं होता, अर्थात् सात भंग होते हैं कुल मिला कर बावीस भंग होते हैं । भगवन् ! ऐसा क्यों कहा गया है ? गौतम ! पंचप्रदेशी स्कन्ध, अपने आदेश से आत्मा है; पर के आदेश से नो- आत्मा है, तदुभय के आदेश से अवक्तव्य है । एक देश के आदेश से, सद्भाव पर्याय की अपेक्षा से तथा एक देश के आदेश से असद्भावपर्याय की अपेक्षा से कथंचित् आत्मा है, कथंचित् नो आत्मा है । इसी प्रकार द्विक्संयोगी सभी (बारह) भंग बनते हैं । त्रिकसंयोगी (आठ भंग होते हैं, उनमें से एक आठवाँ भंग नहीं बनता ।)