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आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद
के अधिपति हैं, जिनके कोष समृद्ध हैं, बत्तीस हजार राजा जिनके मार्गानुसारी हैं, ऐसे महासागररूप श्रेष्ठ मेखला पर्यन्त-पृथ्वी के अधिपति और मनुष्यों में इन्द्र सम हैं इस कारण नरदेव 'नरदेव' कहलाते हैं।
भगवन् ! धर्मदेव 'धर्मदेव' किस कारण से कहे जाते हैं ? गौतम ! जो ये अनगार भगवान् ईर्यासमिति आदि समितियों से युक्त, यावत् गुप्तब्रह्मचारी होते हैं। इस कारण से ये धर्म के देव 'धर्मदेव' कहलाते हैं । भगवन् ! देवाधिदेव 'देवाधिदेव' क्यों कहलाते हैं ? गौतम ! जो ये अरिहन्त भगवान् हैं, वे उत्पन्न हुए केवलज्ञान-केवलदर्शन के धारक हैं, यावत् सर्वदर्शी हैं, इस कारण वे यावत् धर्मदेव कहे जाते हैं | भगवन् ! किस कारण से भावदेव को 'भावदेव' कहा जाता है? गौतम! जो ये भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव हैं, जो देवगति (सम्बन्धी) नाम गोत्रकर्म का वेदन कर रहे हैं, इस कारण से, देवभव का वेदन करने वाले, वे 'भावदेव' कहलाते हैं ।
[५५५] भगवन् ! भव्यद्रव्यदेव किन में से (आकर) उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों में से उत्पन्न होते हैं, या तिर्यञ्च, मनुष्य अथवा देवों में से (आकर) उत्पन्न होते हैं । गौतम ! वे नैरयिकों में से (आकर) उत्पन्न होते हैं, तथा तिर्यञ्च, मनुष्य या देवों में से भी उत्पन्न होते हैं | व्युत्क्रान्ति पद अनुसार भेद कहना चाहिए । इन सभी की उत्पत्ति के विषय में यावत् अनुत्तरोपपातिक तक कहना चाहिए । विशेष बात यह है कि असंख्यातवर्ष की आयु वाले अकर्मभूमिक तथा अन्तद्वीपक एवं सर्वार्थसिद्ध के जीवों को छोड़कर यावत् अपराजित देवों तक से आकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु सर्वार्थसिद्ध के देवों से आकर उत्पन्न नहीं होते ।
भगवन् ! नरदेव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, देवों से भी उत्पन्न होते हैं किन्तु न तो मनुष्यों से और न तिर्यञ्चों से आकर उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! यदि वे नैरयिकों से (आकर) उत्पन्न होते हैं, तो क्या रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, (अथवा) यावत् अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों से आकर ? गौतम ! वे रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों में से उत्पन्न होते हैं, किन्तु शर्कराप्रभा-यावत् अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों से उत्पन्न नहीं होते । भगवन् ! यदि वे देवों से (आकर) उत्पन्न होते हैं, तो क्या भवनवासी देवों से उत्पन्न होते हैं ? अथवा यावत् वैमानिक देवों से उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! भवनवासी देवों से भी वाणव्ययन्तर देवों से भी । इस प्रकार सभी देवों से उत्पत्ति के विषय में यावत् सर्वार्थसिद्ध तक, व्युत्क्रान्ति-पद में कथित भेद अनुसार कहना ।
भगवन् ! धर्मदेव कहाँ से (आकर) उत्पन्न होते हैं ? पूर्ववत् प्रश्न | गौतम ! यह सभी उपपात व्युत्क्रान्ति-पद में उक्त भेद सहित यावत्-सर्वार्थसिद्ध तक कहना चाहिए । परन्तु इतना विशेष है कि तमःप्रभा, अधःसप्तम पृथ्वी तथा तेजस्काय, वायुकाय, असंख्यात वर्ष की आयुवाले अकर्मभूमिक तथा अन्तरद्वीपक जीवों को छोड़कर उत्पन्न होते हैं।
भगवन् ! देवाधिदेव कहाँ से (आ कर) उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे नैरयिकों से (आ कर) उत्पन्न होते हैं, किन्तु तिर्यञ्चों से या मनुष्यों से उत्पन्न नहीं होते । देवों से भी (आ कर) उत्पन्न होते हैं । यदि नैयिकों से आकर उत्पन्न होते हैं, तो रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों यावत् अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिकों में से आकर उत्पन्न होते हैं ? गतम ! (वे आदि की) तीन नरकपृथ्वीयों में से आ कर उत्पन्न होते हैं । भगवन् ! यदि वे देवों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या भक्नपति आदि