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________________ ६४ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद हो चुके हैं ?) हाँ, गौतम ! इसी प्रकार है । इसी प्रकार स्तनितकुमारों तक कहना चाहिए । किन्तु उनके आवासों की संख्या में अन्तर है । भंते ! क्या यह जीव असंख्यात लाख पृथ्वीकायिक-आवासों में से प्रत्येक पृथ्वीकायिकआवास में पृथ्वीकायिकरूप में यावत् वनस्पतिकायिकरूप में पहले उत्पन्न हो चुका है ? हाँ गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हो चुका है । इसी प्रकार सर्वजीवों के (विषय में कहना ।) इसी प्रकार यावत् वनस्पतिकायिकों के आवासों को जानना । __ भगवन् ! क्या यह जीव असंख्यात लाख द्वीन्द्रिय-आवासों में से प्रत्येक द्वीन्द्रियावास में पृथ्वीकायिकरूप में यावत् वनस्पतिकायिकरूप में और द्वीन्द्रियरूप में पहले उत्पन्न हो चुका है ? हाँ, गौतम यावत् अनेक बार अथवा अनन्त बार (उत्पन्न हो चुका है ।) इसी प्रकार सभी जीवों के विषय में (कहना चाहिए ।) इसी प्रकार यावत् मनुष्यों तक विशेषता यह है कि त्रीन्द्रियों में यावत् वनस्पतिकायिकरूप में, यावत् त्रीन्द्रियरूप में, चतुरिन्द्रियों में यावत् चतुरिन्द्रियरूप में, पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिकों में यावत् पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्चरूप में तथा मनुष्यों में यावत् मनुष्यरूप में उत्पत्ति जानना। शेष समस्त कथन द्वीन्द्रियों के समान जानना । ____ असुरकुमारों (की उत्पत्ति) के समान वाणव्यन्तर; ज्योतिष्क तथा सौधर्म एवं ईशान देवलोक तक कहना | भगवन् ! क्या यह जीव सनत्कुमार देवलोक के बारह लाख विमानवासों में से प्रत्येक विमानावास में पृथ्वीकायिक रूप में यावत् पहले उत्पन्न हो चुका है ? (हाँ, गौतम !) सब कथन असुरकुमारों के समान, यावत् अनेक बार अथवा अनन्त बार उत्पन्न हो चुके हैं; यहाँ तक कहना । किन्तु वहाँ वे देवीरूप में उत्पन्न नहीं हुए । इसी प्रकार सर्व जीवों के विषय में कहना । इसी प्रकार यावत् आनत और प्राणत तथा आरण और अच्युत तक जानना । भगवन् ! क्या यह जीव तीन सौ अठारह ग्रैवेयक विमानावासों में से प्रत्येक विमानावास में पृथ्वीकायिक के रूप में यावत् उत्पन्न हो चुका है ? हाँ गौतम ! उत्पन्न हो चुका है । भगवन् ! क्या यह जीव पांच अनुत्तरविमानों में से, यावत् उत्पन्न हो चुका है ? हाँ, किन्तु वहाँ (अनन्त बार) देवरूप में, वा देवीरूप में उत्पन्न नहीं हुआ । इसी प्रकार सभी जीवों के विषय में जानना । भगवन् ! यह जीव, क्या सभी जीवों के माता-रूप में, पिता-रूप में, भाई के रूप में, भगिनी के रूप में, पत्नी के रूप में, पुत्र के रूप में, पुत्री के रूप में, तथा पुत्रवधू के रूप में पहले उत्पन्न हो चुका है ? हाँ गौतम ! अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चुका है । भगवन् ! सभी जीव क्या इस जीव के माता के रूप में यावत् पुत्रवधू के रूप में पहले उत्पन्न हुए हैं ? हाँ गौतम ! सब जीव, इस जीव के माता आदि के रूप में यावत् अनेक बार अथवा अनन्त बार पहेल उत्पन्न हुए हैं । भगवन् ! यह जीव क्या सब जीवों के शत्रु रूप में, वैरी रूप में, घातक रूप में, वधक रूप में, प्रत्यनीक रूप में, शत्रु-सहायक के रूप में पहले उत्पन्न हुआ है ? हाँ गौतम! अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चुका है । भगवन् ! क्या सभी जीव (इस जीव के पूर्वोक्त शत्रु आदि रूपों में) पहले उत्पन्न हो चुके हैं ? हाँ गौतम ! पूर्ववत् समझना। भगवन् ! यहजीव, क्या सब जीवों के राजा के रूप में, युवराज के रूप में, यावत् सार्थवाह के रूप में पहले उत्पन्न हो चुका है ? गौतम ! अनेक बार या अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चुका है । इस जीव के राजा आदि के रूप में सभी जीवों की उत्पत्ति भी पूर्ववत् ।
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
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