SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भगवती-१२/-/२/५३६ हे जयन्ती ! इसी कारण से ऐसा कहा जाता है, कि कुछ जीवों का दक्षत्व अच्छा है और कुछ जीवों का आलसीपन अच्छा है। भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय के वश-आर्त बना हुआ जीव क्या बाँधता है ? इत्यादि प्रश्न । जयन्ती ! जिस प्रकार क्रोध के वश-आर्त बने हुए जीव के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार यावत् वह संसार में बार-बार पर्यटन करता है, (यहाँ तक कहना ।) इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय-वशात बने हुए जीव के विषय में भी कहना । इसी प्रकार यावत् स्पर्शेन्द्रियवशात बने हुए जीव के विषय में कहना । तदनन्तर वह जयन्ती श्रमणोपासिका, श्रमण भगवान् महावीर से यह अर्थ सुन कर एवं हृदय में अवधारण करके हर्षित और सन्तुष्ट हुई, इत्यादि शेष समस्त वर्णन देवानन्दा के समान है, यावत् जयन्ती श्रमणोपासिका प्रव्रजित हुई यावत् सर्व दुःखों से रहित हुई । हे भगवन् ! यह इसी इसी प्रकार है । यह इसी प्रकार है । | शतक-१२ उद्देशक-३ [५३७] राजगृह नगर में यावत् गौतम स्वामी ने वन्दन-नमस्कार करके इस प्रकार पूछाभगवन् ! पृथ्वीयाँ (नरक-भूमियाँ) कितनी कही गई हैं ? गौतम ! पृथ्वीयाँ सात कही गई हैं, वे इस प्रकार हैं-प्रथमा, द्वितीया यावत् सप्तमी । भगवन् ! प्रथमा पृथ्वी किस नाम और किस गौत्र वाली है ? गौतम ! प्रथमा पृथ्वी का नाम 'धम्मा' है, और गौत्र ‘रत्नप्रभा' । शेष वर्णन जीवाभिगम सूत्र के नैरयिक उद्देशक के समान यावत् अल्पबहुत्व तक कहना । हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है। | शतक-१२ उद्देशक-४ [५३८] राजगृह नगर में, यावत् गौतमस्वामी ने पूछा- भगवान् ! दो परमाणु जब संयुक्त होकर एकत्र होते हैं, तब उनका क्या होता है ? गौतम ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध बन जाता है । यदि उसका भेदन हो तो दो विभाग होने पर एक ओर एक परमाणुपुद्गल और दूसरी ओर भी एक परमाणु-पुद्गल हो जाता है । भगवन् ! जब तीन परमाणु एकरूप में इकट्ठे होते हैं, तब उन का क्या होता है ? गौतम ! त्रिप्रदेशिक स्कन्ध होता है । भेदन होने पर दो या तीन विभाग होते हैं । दो विभाग हों तो एक ओर एक परमाणु-पुद्गल और दूसरी ओर द्विप्रदेशिक स्कन्ध हो जाता है । उसके तीन विभाग हों तो तीन परमाणु-पुद्गल पृथक्-पृथक् हो जाते हैं । भगवन् ! चार परमाणुपुद्गल इकट्ठे होते हैं, तब उनका क्या होता है ? गौतम ! उन का चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध बन जाता है । उनका भेदन होने पर दो तीन अथवा चार विभाग होते हैं । दो विभाग होने पर एक ओर (एक) परमाणुपुद्गल और दूसरी ओर त्रिप्रदेशिकस्कन्ध होता है, अथवा पृथक्-पृथक् दो द्विप्रदेशिक स्कन्ध हो जाते हैं । तीन विभाग होने पर एक ओर पृथक्-पृथक् दो परमाणुपुद्गल और एक ओर द्विप्रदेशिक स्कन्ध रहता है । चार विभाग होने पर चार परमाणुपुद्गल पृथक्-पृथक् होते हैं । भगवन् ! पांच परमाणुपुद्गल एकत्र संहत होने पर क्या स्थिति होती है ? पंचप्रदेशिक स्कन्ध बनता है । भेदन होने पर दो, तीन, चार अथवा पांच विभाग होते हैं । यदि दो विभाग किये जाएँ तो एक ओर एक परमाणुपुद्गल और दूसरी ओर एक चतुष्प्रदेशिक स्कन्ध हो जाता है । अथवा एक ओर द्विप्रदेशिक स्कन्ध और दूसरी ओर त्रिप्रदेशिक स्कन्ध हो जाता है । तीन
SR No.009782
Book TitleAgam Sutra Hindi Anuvad Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherAgam Aradhana Kendra
Publication Year2001
Total Pages306
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy