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भगवती-११/-/११/५२२
आठ अवनतासन, आठ दीर्घासन, आठ भद्रासन, आठ पक्षासन, आठ मकरासन, आठ पद्मासन, आठ दिकस्वस्तिकासन, आठ तेल के डिब्बे, इत्यादि यावत् आठ सर्षप के डिब्बे, आठ कुब्जा दासियाँ आदि यावत् आठ पारस देश की दासियाँ, आठ छत्र, आठ छत्रधारिणी दासियाँ, आठ चामर, आठ चामरधारिणी दासियाँ, आठ पंखे, आठ पंखाधारिणी दासियाँ, आठ करोटिका, आठ करोटिकाधारिणी दासियाँ, आठ क्षीरधात्रियाँ, यावत् आठ अंकधात्रियाँ, आठ अंगमर्दिका, आठ उन्मर्दिका, आठ स्नान कराने वाली दासियाँ, आठ अलंकार पहनाने वाली दासियाँ, आठ चन्दन घिसने वाली दासियाँ, आठ ताम्बूल चूर्ण पीसने वाली, आठ कोष्ठागार की रक्षा करने वाली, आठ परिहास करने वाली, आठ सभा में पास रहने वाली, आठ नाटक करने वाली, आठ कौटुम्बिक, आठ रसोई बनाने वाली, आठ भण्डार की रक्षा करने वाली, आठ तरुणियाँ, आठ पुष्प धारण करने वाली, आठ पानी भरने वाली, आठ बलि करने वाली, आठ शय्या बिछाने वाली, आठ आभ्यन्तर और बाह्य प्रतिहारियाँ, आठ माला बनाने वाली और आठ-आठ आटा आदि पीसने वाली दासियाँ दी । बहुत-सा हिरण्य, सुवर्ण, कांस्य, वस्त्र एवं विपुल धन, कनक, यावत् सारभूत द्रव्य दिया । जो सात कुल-वंशों तक इच्छापूर्वक दान देने, उपभोग करने और बांटने के लिए पर्याप्त था ।
इसी प्रकार महाबल कुमार ने भी प्रत्येक भार्या को एक-एक हिरण्यकोटि, एक-एक स्वर्णकोटि, एक-एक उत्तम मुकुट, इत्यादि पूर्वोक्त सभी वस्तुएँ दी यावत् सभी को एक-एक पेषणकारी दासी दी तथा बहुत-सा हरिण्य, सुवर्ण आदि दिया, जो यावत् विभाजन करने के लिए पर्याप्त था । तत्पश्चात् वह महाबल कुमार जमालि कुमार के वर्णन के अनुसार उन्नत श्रेष्ठ प्रासाद में अपूर्व भोग भोगता हुआ जीवनयापन करने लगा। - [५२३] उस काल और उस समय में तेरहवें तीर्थकर अर्हन्त विमलनाथ के धर्मघोष अनगार थे । वे जातिसम्पन्न इत्यादि केशी स्वामी के समान थे, यावत् पांच सौ अनगारों के परिवार के साथ अनुक्रम से विहार करते हुए हस्तिनापुर नगर में सहलाम्रवन उद्यान में पधारे और यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करके संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरण करने लगे । हस्तिनापुर नगर के श्रृंगाटक, त्रिक यावत् राजमार्गों पर बहुत-से लोग मुनि-आगमन की परस्पर चर्चा करने लगे यावत् जनता पर्युपासना करने लगी।
बहुत-से मनुष्यों का कोलाहल एवं चर्चा सुनकर जमालिकुमार के समान महाबल कुमार को भी विचार हुआ । उसने अपने कंचुकी पुरुष को बुलाकर कारण पूछा । कंचुकी पुरुष ने भी निवेदन किया-देवानुप्रिय ! विमलनाथ तीर्थंकर के प्रशिष्य श्री धर्मघोष अनगार यहाँ पधारे हैं । इत्यादि सब वर्णन पूर्ववत् यावत् महाबल कुमार भी जमालिकुमार की तरह उत्तम रथ पर बैठकर उन्हें वन्दना करने गया । धर्मघोषअनगार ने भी केशीस्वामी के समान धर्मोपदेश दिया । सुनकर महाबल कुमार को भी जमालिकुमार के समान वैराग्य उत्पन्न हुआ । उसी प्रकार माता-पिता से
अनगार धर्म में प्रव्रजित होने की अनुमति मांगी । विशेष यह है कि धर्मघोष अनगार से मैं मुण्डित होकर आगारवास से अनगार धर्म से प्रव्रजित होना चाहता हूँ । जमालिकुमार के समान उत्तर-प्रत्युत्तर हुए । विशेष यह है कि माता-पिता ने महाबल कुमार से कहा-हे पुत्र ! यह विपुल धर्म और उत्तम राजकुल में उत्पन्न हुई कलाकुशल आठ कुलबालाएँ छोड़कर तुम क्यों दीक्षा ले रहे हो ? इत्यादि यावत् माता-पिता ने अनिच्छापूर्वक महाबल कुमार से कहा-“हे पुत्र ! हम एक